ग़र मैं संग हूँ माँ तुम्हारे
शिला क्या पर्वत उठा लूं।
मुझमें कितनी शक्ति है माँ
इस जहाँ को मैं दिखा दूं...?
गीत धीरज का तुमने ही सिखाया
प्रबंधन का गुर माँ तुम ही से पाया ।
हाथ मेरा थामे रहना,भटक न जाऊं कहीं
मीत अपना मैंने तुममे ही पाया...!
कौन हूँ मैं रुको मैं जग को दिखा दूं....!!
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