परहित धर्मं नही रह गया !
कांपते हुए स्वर में एक व्यक्ति
भीख की तरह मदद मांग रहा था
यह देख मन विचलित हो गया
रोम रोम कांप गया
कई सवाल उठे मन में
क्या मदद भी भीख कि तरह मांगी जायेगी
अब इस दुनिया में
क्यों आयी ऎसी स्थिथिक्यों
सबल निर्बल पर दया करना भूल गया
क्यों मदद भीख में दी जाने लगी
तुलसी के वचनों को भूल गए हैं क्या लोग
क्या अब परहित को धर्म नहीं माना जाता
अगर ऐसा है तो भला लोगों की मानसिकता
कहाँ जा रही है और कितनी नीचे तक गिरकर रुकेगी
क्या इसका अनुमान लगाया जा सकता है?
-बलराम दुबे
९८६८११९९८८
13.5.08
परहित धर्मं नही रह गया !
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2 comments:
भाई अभिव्यक्ति इनको बोलो मांगने का नहीं, और अगर डंडा करना है तो भडासी से मिल लो.
मदद माँगना और भीख माँगना दोनों बहुत अलग नहीं हैं. हाँ , मदद करना जरूर परहित है और यकीन मानिए ये अभी ख़त्म नहीं हुआ है नही तो मदद या भीख मांगने वालों की संख्या दिन-ब-दिन बढती नहीं. और ये जो परहित में कमी जान पड़ती है वो इसलिए कि भीख माँगना अब एक व्यवसाय बन चुका है और वास्तविक जरूरतमंदों और प्रोफेशनल भिखमंगों में अन्तर करना मुश्किल हो गया है.
वरुण राय
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