Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

6.5.08

गधा

ठीक रहा भइये रजनीश जो अपने आप ही अपने को गधा स्वीकार कर लिया वर्ना यहा जितने भी है वे सभी पहले आप को यही बनाते तभी तो आप और हम सब एक जैसे दिखते। अब देखो हम सब बिल्कुल एक जैसे दिखते है। वैसे भी घोड़ो की तरह नहीं है जिनका रंग रुप आकार सब अलग अलग होता है हम गधे ही प्रकृति में ऐसे हैं जिनका रुप, रंग, आकार सब एक जैसा होता है। बाकी सब प्राणी आपस में ही भिन्न भिन्न होते है।

आपका

आपकी तरह एक प्राणी

3 comments:

Anonymous said...

अजीत भाई,
अब रुपेश भाई ने भी कह दिया है, ससुर के हम गधे में फिट नहीं बैठते हैं. क्योँ बेचारे गधे का नाम खराब करें, भडासी हैं सो भडासी ही बने रहें.
आप निकालो हम निकालें आपनी अपनी भडास, कर दें सबको खल्लास
जय जय भडास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

यार आप लोग ये खल्लास शब्द इस्तेमाल करा ही मत करो मुझे ईशा कोप्पिकर याद आने लगती है बेचारी ने कैसे छटपटा-लटपटा कर नाचा था पूरे गाने में बस यही शब्द याद रह गया....

Anonymous said...

रुपेश भाई,
अब कोई नया देखिये ई ससुरी तो बुढा गयी, अरे हम पंडित जी और हरे दादा के कविता से बड़े रोमांटिक हुए जा रहे हैं. अब तो नयी नयी ही चाहिए. जिसको हम कर सकें खल्लास.
अररर गलत मत समझिए नयी नयी बोले तो नए मुद्दे, आप का समझ बैठी हाउ का ;-)

जय जय भडास.