Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

1.7.08

भगवान इतना निर्दयी नहीं है कि मेरी गोद सूनी कर दे : मनीषा दीदी

बड़प्पन और महानता जैसे शब्द हमारी दीदी के व्यक्तित्व के सामने बौने से लगने लगते हैं। आज जब मनीषा दीदी घर पर आयीं तो मैंने उन्हें करुणाकर के बारे में बताया तो इतनी भावुक हैं कि शुरू हो गयी तेलुगू में पता नही कौन कौन सी दुआएं करना...। बड़ी-बड़ी सुन्दर बंद आंखों से आंसू गिर रहे थे और फिर मुझे रुपए देकर बोली कि कि किसी को मत बताना कि मैंने रुपए दिये हैं लेकिन दीदी माफ करें मैं आप से किया हुआ वायदा तोड़ रहा हूं। मुझसे बोलती हैं रोते हुए कि मेरे बच्चे को कुछ नहीं होगा भाई मैं उसे गोद ले लूंगी, भगवान इतना निर्दयी नहीं है कि मेरी गोद सूनी कर दे......। एक दीदी हैं और वहीं दूसरी तरफ तमाम बड़े(?) मुंबापुरी के ब्लागर जिनसे मैंने सुबह पोस्ट डाल कर अपील करी थी हो सकता है कि अब तक किसी की नजर ही भड़ास पर न पड़ी हो या फिर नजरें चुरा रहे हों। खैर किसी से जबरई तो है नहीं पर धन्य हैं भड़ासमाता मुनव्वर आपा और हमारी मनीषा दीदी जो मेरे हाथ पर आकर पैसे रख गयी और आपा तो मेरे साथ दवा में लगने वाला हीरा भस्म के लिये हीरा कनी और स्वर्ण भस्म के लिये शुद्ध सोना खरीदने के लिये अपना डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड लेकर सर्राफ़ा बाजार चल पड़ीं कि अगर जैसी जरूरत हो पेमेंट करते चलेंगे....... इसे कहते हैं किसी के दुःख को दिल से महसूस करना। इस पोस्ट के द्वारा मैं मुनव्वर आपा और मनीषा दीदी के बारे में क्या कह सकूंगा क्योंकि ये काले अक्षर बड़े जड़ प्रतीत हो रहे हैं उनके प्रेम और करुणा को बता पाने के लिये........।

2 comments:

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

भाई लोग,मुझे तो डाक्टर साहब द्वारा करुणाकर को दी जाने वाली दवा का नाम बड़ा अच्छा लगा - त्रैलोक्य चिन्तामणि रस; अरे नाम से ऐसा लगता है कि इसको खाने की बजाए अगर दिन में तीन टाइम नाम भी ले लिया जाए तो तमाम बीमारियां नाम सुन कर ही ठीक हो जाएंगी। डाक्टर सहब और उनके आयुर्वेद की जय हो

ताऊ रामपुरिया said...

मनीषा दीदी प्रणाम !
आपने ये सोच भी कैसे लिया कि आपकी गोद सूनी हो जायेगी ! जब दवा और दूआ मिल जाती हैं , तो वह अम्रत हो जाता है ! यहां तो दवा लिये स्वयं भगवान धनवन्त्री हमारे साथ डा. रुपेश जी के रुप में खडे हैं !
नही दीदी आप चिंता मत करो ! बहुत शिघ्र ही करुणाकर स्वस्थ होजायेगा ! इतने भडासियों की दूआएं अवस्य सफ़ल होंगी !

मुन्नवर आपा आपको भी मेरा पहला प्रणाम
आपके बारें में पढकर मुझे ये बिल्कुल पक्का हो गया कि आप तो बिल्कुल मेरी माताराम की तरह ही होंगी ! कितनी सरल , कितनी सहज !
आप जैसी शख्शियतों से ही तो ये दुनियां चल रही है ! कितना निश्चल प्रेम है आपका ! और इस स्थिति मे भी आपका sense of humour तो कमाल का है !

"त्रैलोक्य चिन्तामणि रस; अरे नाम से ऐसा लगता है कि इसको खाने की बजाए अगर दिन में तीन टाइम नाम भी ले लिया जाए तो तमाम बीमारियां नाम सुन कर ही ठीक हो जाएंगी।"
मजा आ गया ! मैं तो अब से बस त्रैलोक्य चिन्तामणि रस; नाम का ही जाप कर लूंगा !
कहां रोज रोज महंगे भाव की दवाई खावो ?
और डा. साहब आपका अतिशय धन्यवाद , जो आपने इन दोनो प्रात: स्मर्णियों का परिचय करवाया !