आज दोपहर से ही एक अजीब खेल में लगा था। मेरी एक महिला मित्र जो जोधपुर में रहती है, वहां नेट से ऑनलाइन थी और जयपुर में मैं। शायरियों का अजीब दौर चल रहा था। चंद शायरियां प्रकाशित हैं-
महिला मित्र-
शादी के बाद सब वही होते हैं संदीप जी,
तो क्या मैं आपको अंकल बोलूं, संदीप जी,
अब नहीं क्या आपमें हौसला,
आज हो ही जाए फैसला।
मैंने कहा-
फैसला तो हो चूका ज्योति, क्योंकि अभी मैं जिन्दा हूँ।
तुमसे प्यार करके आज, बहुत शर्मिंदा हूँ।
मुझे क्या पकडोगी, ऊँचे आकाश से,
बहुत ऊपर उड़ गया, मैं वो परिंदा हूँ।
महिला मित्र-
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए
मैंने कहा-
जमीन चाहिए, सितारे चाहिए, चांद और रात भी चाहिए।
दिल में मेरे बसने वाला सिर्फ तेरा प्यार भी चाहिए।
दुआ भी, खुदा भी और साथ में तलवार चाहिए,
मुसीबत हो न हो, पर हाथों में तेरा हाथ चाहिए।
तू समझे न समझे, मैं हमेशा कहता रहूं,
कुछ बोल न सके, ऐसी नामुराद जुबान चाहिए।
चोट क्यों लगे किसी को, क्यों बहाए कोई आंसू,
राह पर जो संभल कर चले, ऐसा समझदार चाहिए।
क्यों करे इंतजार कोई, रूककर साहिल पर मेरा,
मेरे साथ तूफान में तैरने वाला दिलदार चाहिए।
जब फंसी हो कश्ती बीच मझधार में,
तो तुम्हारे साथ वहीं मुझे जश्ने बहार चाहिए।
हमसफर का क्या करूं, जिंदगी के सफर में,
मरने के लिए बस तेरी यादों की कटार चाहिए।
ढूंढने से कब मिला, किसी को आशिक हुस्न का
मैं मिलवाउंगा तुझको उससे, इक बार तो बता-
चमार चाहिए, कहार चाहिए, लुहार चाहिए,
बीमार चाहिए या फिर कोई कुम्हार चाहिए
इस तरह शायरी करते-करते शाम के चार बज गए और मैं कम्प्यूटर से उठकर भोजन करने चला गया।
- संदीप
1.10.08
फैसला तो हो चूका ज्योति
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1 comment:
बहुत खूब,
शानदार शायराना अंदाज रहा. आप दोनों को बधाई
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