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13.10.08

पुराने कल की तरह से

पुराने कल की तरह से ,गुज़र जाएगा ये पल भी ,
नया फिर हादसा कोई क्र जाएगा ये पल भी ।
यंहा मासूमियत की ओट में होते हैं कत्ले-आम ,
अगर बैठे रहे यूँ ही तो मर जाएगा ये पल भी ।
अगर हो हौसला दिल में दरकती हैं दीवारें भी,
नही तो साथ चलने से मुकर जाएगा ये पल भी ।

पुराने कल की तरह से गुज़र जाएगा ये पल भी .

2 comments:

Manuj Mehta said...

यंहा मासूमियत की ओट में होते हैं कत्ले-आम ,
अगर बैठे रहे यूँ ही तो मर जाएगा ये पल भी ।

bahut khoob likha hai janab, meri badhai sweekaren

Anonymous said...

पुराने कल की तरह से गुज़र जाएगा ये पल भी.

अजीत भाई,

बहुत खूब,
गुजरेगा ये पल और गुजरेगी ये जद्दोजहद मगर नही बदलेगा भड़ास का मुहीम.

आपको बधाई