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12.10.08

पडताल धर्म की

पहले धर्म को समझें।
दोस्तों पिछले कुछ दिनों से केव्स पर गरमा गरम पढने को मिल रहा था हालांकि बहस अपनी सार्थकता खो चुकी थी कमेंन्ट्स कर नहीं पा रहा था, तो मन किया कुछ मैं भी लिखूं और आज चला आया कुछ लिखने सबसे पहले मयंक का बहुत धन्यवाद मुझे जोडने के लिये। सचमुच धर्म से जुडा मुद्दा वेहद संजीदा क़िस्म का होता है जिस पर हम जैसे कम बुद्धियों को तो क़तई नही बोलना चाहिये क्योंकि कोई भी धर्म महज़ अपने आराध्य को पूजने, आरती करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि यह एक वृहद विज्ञान होता है। इसे धर्म इसलिये कहा जाता है ताकि अनुयायी निर्दिष्ट पूजन विधान को करें और स्वस्थ रह सकें। इंसान के भीतर विद्यमान सभी दस रसों में से भय का हमारे ऋषियों(वैज्ञानिकों) ने इस्तेमाल करते हुए इसे सर्वोच्च सत्ता के प्रति भय और उसे अपना माई-बाप मानने की सीख दी, क्योंकि विज्ञान हर आदमी नहीं समझता। मुझे शायद धर्म की इससे ज़्यादा सरल परिभाषा कुछ और नहीं लगी मैं इस मंच के माध्यम से सबसे पहले धर्म क्या है ये समझने की कोशिश करना चाहता हूँ। आप सभी का सादर कमेंट्स आमंत्रित हैं कृपया दें और कारवां ये वार्ता आगे बढायें। धन्यवाद।।।।।।।।।।

3 comments:

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

पता नही हमारे महान देश भारतवर्ष के तथाकथित महान प्रबुद्ध लोग "धर्म" शब्द से इतना डरते क्यों हैं ? मैं तो यही समझ पाया हूँ कि देश के अधिकांश "महान प्रबुद्ध " लोगों ने धर्म के बारे में अंगरेजी भाषा के "रिलीजन " के माध्यम से ही जाना ,है न की धर्म को धर्म के माध्यम से । यही कारण है कि वे धर्म को "सम्प्रदाय "के पर्यायवाची के रूप में ही जानते हैं ,जबकि सम्प्रदाय धर्म का एक उपपाद तो हो सकता है पर मुख्य धर्म रूप नही ।
"धर्म प्राकृतिक ,सनातन एवं शाश्वत तथा स्वप्रस्फुटित (या स्वस्फूर्त )होता है : : इसे कोई प्रतिपादित एवं संस्थापित नही करता है : जब कि सम्प्रदाय किसी द्वारा प्रतिपादित तथा संस्थापित किया जाता है "|
अगर धर्म को कोई स्थापित करता भी है,तो वोह स्वयं प्रकृति होती है
" लोक-मंच " : : "अन्यो-नास्ति "

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

मुक्त एवं गंभीर चर्चा में वास्तविक रूचि वालों को टिप्पणी माडरेशन के चक्कर में नही पड़ना चाहिए ;होसकता है की मेरी टिप्पणी को पदकर कोई "उसे या मुझे 'टीपना ' चाहे " ?

Anonymous said...

सहमत