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2.10.08

वाह वामपंथियो


प्रकाश चण्डालिया

अनुजा ने अपने ब्लॉग पर एक जोरदार पोस्ट लिखा है। वामपंथियों के संगठन में महिलाओं की कमी के विषय में उन्होंने अपने एक वामपंथी मित्र के विचार और अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की है। वामपंथियों के शासन वाले पश्चिम बंगाल से वास्ता रखने के कारण अनुजा की इस टिप्पणी पर ध्यान जाना लाजिमी था। सो बड़े चाव से पढ़ते-पढ़ते वामपंथियों की वैचारिक गरीबी पर कई विचार मन में कौंधने लगे।
अव्वल तो मेरा मानना है कि वामपंथियों के दल में महिला कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है। हां, यह बात दीगर है कि उन्हें अपेक्षित दायित्व से हमेशा वंचित रखा गया है। जिन वृन्दा करात को आज माकपा में महिलाओं को चेहरा माना जा रहा है, उन्हें न माना जाए तो बेहतर है। वामपंथियों का इतिहास जानने वालों को बाकायदा मालूम है कि इस संगठन में कांग्रेस की तरह परिवारवाद या राजशाही मानसिकता को कोई जगह नहीं है। न ही जांत-पांत को। पर यह शायद पहला अवसर था कि वृन्दा करात को पोलितब्यूरो में शामिल किया गया। और हो भी क्यों न? सइयां भए ....
वृन्दा करात वामपंथी आन्दोलन से वर्षों से जुड़ी हैं। पर माकपा महासचिव प्रकाश करात की धर्मपत्नी होना उनके वर्तमान पद के लिए मजबूत आधार बना, इसे दबी जुबान से हर कोई स्वीकार करता है। वैसे भी, वृन्दा करात ने कभी अपने संगठन के किसी लोकहितकारी कार्यक्रम को नेतृत्व दिया हो, याद नहीं पड़ता। हां, सुषमा स्वराज और दीपा दासमुंशी की तर्ज पर उन्हें सेल्समैनी मुस्कान और मोटी बिंदिया लगाए कैमरामैनों के सामने अवश्य देखा जाता है। वृन्दा जब तक मुंह नहीं खोलतीं, बुद्धिजीवी नकार आती हैं, मुंह खोलती हैं तो विषैले झाग ही उनके श्रीमुख से निकलते हैं। और इसका शिकार खुद उनकी पार्टी को होना पड़ता है। अनुशासन की बलिहारी है कि कोई वामपंथी इसके खिलाफ मुंह नहीं खोलता। पिछले दिनों बाबा रामदेव के आश्रम को लेकर वृन्दा ने मुंह खोला और गजब की पटखनी खा गयीं। यही नहीं, कुछ दिनों पहले कोलकाता में उन्होंने दम दम दवाई जैसे हिंसक राजनैतिक मुहावरे का प्रयोग किया था, जिस पर वामपंथियों की हालत खराब हुई। दम दम दवाई से ताल्लुक विरोधियों की पिटाई से था। महिला होकर वृन्दा का ऐसा घटिया बयान देना माकपा जैसी पार्टी के शीर्ष पद पर बैठे नेता को शोभा देता है तो वामपंथी क्षमा करें।
वैसे भी वामपंथियों ने उधार की मानसिकता पर ही देश में अपनी पहचान बनाने की कोशिश की है। रूस और चीन के नेताओं की विचारधाराओं को देश में लागू करने में वे बंगाल और त्रिपुरा को छोड़ दें तो कभी कामयाब नहीं हुए। भारत की आजादी को वे कभी स्वीकार नहीं कर पाए। अब इससे ज्यादा क्या कहें कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए वयोवृद्ध माकपा नेता ज्योति बसु राष्ट्रध्वज फहराने से कतराते रहे हैं।
वामपंथी महानुभाव प्रगतिशील होने की बात अवश्य करते हैं, पर सचाई यह है कि आन्तरिक रूप से ये सबसे कमजोर हैं। समाजवाद की बात करते हैं वामपंथी और बंगाल की राजधानी कोलकाता में आदमी द्वारा आदमी को ढ़ोने वाला हाथ रिक्सा चलाते हैं। इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी पर मुसलसल प्रहार करने वाले वामपंथियों ने कांग्रेस की सरकार बनवाकर तेल और पानी में मेल नहीं होता और सांप -नेवले में दोस्ती नहीं होती जैसे मुहावरों को भी आईना दिखा दिया।
बंगाल में चुनाव के दिन किस प्रकार विरोधी मतदाताओं को मकानों में कैद करके रखा जाता है, यह यहां के लोग बखूबी जानते हैं। महिलाओं के बारे में वामपंथियों की भावना का पता ज्योति बसु के एक वाक्य से ही चल सकता है। वर्षों पहले एक महिला के साथ हुई बलात्कार की घटना पर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा था-ये सब कोई खास घटना नहीं हैं। यह सब तो होता ही रहता है।
वामपंथी विचारधारा, दक्षिणपंथी विचारधारा से शायद कहीं बेहतर है। यहां कम से कम अंधविश्वास और आडम्बर तो नहीं है। आज भी वामपंथ पर अगाध आस्था रखने वाले स्व.विनयकृष्ण चौधरी जैसे नेताओं -कार्यकर्ताओं को बंगाल के गांवों में देखा जा सकता है, पर सत्ता के चाव ने अधिकांश वामपंथियों की जीभ को खराब कर दिया है। शायद माक्र्स,लेनिन, मुजफ्फर हुसैन,प्रमोद दासगुप्ता,सरोज दासगुप्ता सरीखे नेता आज जिन्दा होते तो अपनी विचारधारा की बखिया उघेड़ते देखकर जार जार रोते।
कम से कम सिंगूर में नैनो प्रकल्प पर मुख्यमंत्री को भिक्षाटन करते तो नहीं ही देख पाते। सर्वहारा वर्ग के लिए जो आन्दोलन आज विरोधी पार्टियां कर रही हैं, वैसा आन्दोलन करके ही वामपंथी सत्ता में आए हैं और अनवरत 31 वर्षों से राइटर्स बिल्डिंग में विराजमान हैं। साम्राज्यवादी टाटा की गोद में बैठना वामपंथियों को शोभा भले न दे, सुहाता जरूर है। वामपंथियों को सोचना चाहिए कि महिलाएं उनकी पार्टी से दूर हैं, या उनकी पार्टी महिलाओं से।

5 comments:

Anonymous said...

प्रकाश जी,
अनुजा के इस ब्लॉग को पढ़ते पढ़ते बस अनुजा को बधाई देने का दिल करता है, साफगोई के साथ बेहतरीन लेख है, आपको धन्यवाद और अनुजा को ढेरक बधाई.

Girish Kumar Billore said...

प्रगतिशीलों की सोच है कि विषय चुक गए अब वे हैरत होंगे ?
सच कितना "........" उनके लिए जोरदार पोस्ट की बधाई दे चुका हूँ आप भी बधाई के पात्र हैं

Anonymous said...

anuja ko bahot sara badhai, or apko apke post ke liye dhnyabad

Anonymous said...

anuja ko bahot sara badhai, or apko apke post ke liye dhnyabad

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

apko badhai