ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के ताजा आँकड़ों के मुताबिक भारत भ्रष्ट देशों की सूची में ८५ वें पायदान पर है | पिछले साल के मुकाबले भारत १२ पायदान ऊपर चढ़ा है | पिछले साल हम चीन के साथ ७२ वें स्थान पर थे | १८२ देशों में कराये गए सर्वेक्षण में भारत की स्थिति से ख़ुद ब ख़ुद पता चलता है कि हमारे यहाँ भ्रस्टाचार कितनी तेजी से बढ़ रहा है | आख़िर इसकी वजह क्या है ? अब तो धीरे - धीरे सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों का भी निजीकरण हो रहा है | इसके बाद भ्रस्टाचार बढ़ने के बजाय घटना चाहिए , लेकिन ऐसा नही हो रहा है | इसके लिए जितनी जिम्मेदार गठबंधन राजनीति है उतने ही हम भी हैं |
हम औरों को कितना भी कोसें पर इसमे कोई दो राय नही कि भ्रस्टाचार को बढ़ावा देने में हमारा भी हाथ है | पुलिस में रिपोर्ट लिखवानी हो या फ़िर पासपोर्ट बनवाना हो और या फ़िर ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो , हम समय बचाने के लिए नियमानुसार काम न करके भ्रस्टाचार को बढ़ावा देते हैं | अपनी बारी का इन्तजार करना हमारी शान के ख़िलाफ़ है | जब हम सुधरेंगे तभी दूसरों पर उंगली उठा सकते हैं |
सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि प्रशासनिक कामकाज के तौर-तरीके आमजन को ऐसा करने को उकसाते हैं | फ़िर भी व्यवस्था में सुधार के लिए हमे भी धैर्य से काम लेना होगा | बढ़ते भ्रस्टाचार के पीछे भूख, लालच, तुच्छ मानसिकता के अलावा सरकार में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी भी एक अहम् कारण है |
इस दलदल से निकलने के लिए हमें सख्त कदम उठाने होंगे | ये कदम केवल दिखावे के लिए न होकर देश कि परिस्थितियों को समझते हुए उठाये जाने चाहिए |
4 comments:
भ्रस्टाचार का अजगर पूरे देश को लपेटे हुए है | भ्रस्टाचार तो अब जैसे हमारे खून में बह रहा है | बस एक दूसरे को, पड़ोसी को, प्रशासन को, सरकार को कोसते जाओ | दूसरे के घर में भगत सिंह सब चाहते हैं बस अपने घर में तो अम्बानी और सिंघानिया ही चाहिए | बड़ी निराशा होती है आज के हालत देखकर | व्यक्ति निर्माण का सबसे बड़ा केन्द्र स्कूल - कॉलेज होते हैं .... लेकिन वहां तो चरित्र निर्माण या राष्ट्र गौरव जैसी चीजें विकसित होने वाला वातावरण ही नही दीखता |
हर तरफ़ बस आगे बढ़ने की एक दौड़ दिखायी दे रही है ..... अंधी दौड़ | कब और कहाँ ख़तम होगी ये दौड़ने वाले को भी नही मालूम |
- राजेश्वर शुक्ला "राही"
कानपूर
ऐसा लगता है भ्रस्टाचार को सामाजिक मान्यता मिल चुकी है | पहले समाज में अध्यापक, डॉक्टर जैसे लोगों की इज्जत होती थी | आज तो एक से एक अपराधी विधानसभा और संसद में विराजमान हैं | मजे कि बात ये है कि इन्हे चुनती भी जनता ही है | आज तो इज्जतदार वो है जिसके घर में पुलिस और वकीलों का आना जाना हो , दो- चार मुक़दमे चल रहे हों |
आम आदमी तो चूतिया बना ताक रहा है या भीड़ में खड़ा तालियाँ बजा रहा है | आपकी लेखनी के माध्यम से जो आग मैंने महसूस की है वो हम जैसे हजारों के अन्दर भी जल रही है | दुष्यंत कुमार ने कहा है - मेरे दिल में न सही , तेरे दिल में ही सही .... हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए |
लेखन जारी रखें | शुभ कामनाओं के साथ |
- संजय सिंह थापर
jab koi neta lakhon kroro lagakar chunav ladega to yahi hoga. itne rupye agar samaj sewa ke liye lagane hain to fir chunav ladne ki kya jarurat hai
भाई,
बहुत खूब, शानदार लिखा है,
मगर भ्रष्टाचार पर लिखे इस लेख में आपने बहुतों को छोर भी दिया है, देश का चौथा खम्भा के बारे में कुछ नही लिखा, जब भी दोष देने की बात आती है हम नेता, पोलिस और प्रशाशन पर सारा ठीकरा फोर देते हैं, जबकी इन के साथ साथ आम आदमी भी उतना ही दोषी है.
लेखा अच्छा है और अगर भड़ास के साथ लिखें तो धारदार बनेगी.
जय जय भड़ास
Post a Comment