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2.10.08

गुरुदेव बनाम महात्मा गाँधी



रबिन्द्रनाथ टेगोर महात्मा के सबसे बड़े आलोचक में थे पर उन्होंने अपने सामाजिक व्यव्हार को गांधीजी के प्रति ठीक रखा टेगोर नहीं चाहते थे की छात्र असहयोग आन्दोलन में जायें उन्हें इस बात का भी शक था की असहयोग आन्दोलन हिंदू-मुस्लिम एकता में सहायक सिद्ध होगा फिर भी गाँधी ने हर नहीं मानी महिलों को संबोधित करते हुए कहा " बहुत कुछ देने के बाद भी, आपसे और भी अपेक्षा हैं कातने और बुनने पर भी टेगोर की आपत्ति थी उन्होंने लिखा-" क्या यह नए रचनात्मक युग का वेद वाक्य है" टेगोर का इशारा निश्चित रूप से इस बात पर था की हम भी बड़ी मशीनों की कल्पना क्यों नहीं कर सकते गांधीजी ने उत्तर दिया " कवि का हमसे यह कहना है कि वह सभी जो तर्क में खरी न उतरे अस्वीकृत कर दी जाए " फिर भी गुरुदेव पश्चिम के अन्धानुकरण के खिलाफ थे गांधीजी भी चरखे को लघु मशीन कहते थे यह लघु उद्योग का साधन था, उनका स्वदेशी मंत्र था , "आज मशीनरी से कुछ लोग फायदा उठा रहे हैं , जबकि लाखों लोग बेरोजगार हैं" गांधीजी मशीनों के खिलाफ नहीं उसके अन्धानुकरण के खिलाफ थे संक्षेप में गुरुदेव और गाँधी अपने विचारों में सही रहें हों पर फिर भी टेगोर गांधीजी का सम्मान करते थे १८ फरवरी १९४० को गुरुदेव ने गांधीजी का शान्तिनिकेतन में स्वागत समारोह रखा अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले अंग्रेजी शासन के लिए गुरुदेव ने कहा था--- " आजादी में बिल्कुल यकीन न रखने वाली तथा ताकत के बल पर शासन करने वाली सभ्यता अपने में मजाक हैं, अब मेरे लिए इसका आदर कर पाना सम्भव नहीं" ----रबिन्द्रनाथ टेगोर

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut sahi

Anonymous said...

दोनों की सार्थकता अपनी जगह सही है, मगर जिस का विरोध गुरुदेव ने किया, चाहे वो विचारो के मध्यम से ही हो आज भी वो बंगाल में देखने को मिल रही है, टाटा इसका ताजातरीन उदहारण है,
कहना न होगा की देश को राजधानी सा अहसास कराने वाली बंगाल और कलकत्ते ऐसी ही विचारों के कारण आज का पतझर बना हुआ है.
जय जय भड़ास