मैं तो बहुत छोटा हूँ...मैं इस पर क्या लिखूं....,
हाँ मगर सोचता हूँ...मैं तुझे नगमा-ख्वा लिखूं....!!
एक चिंगारी तो मेरे शब्दों के पल्ले पड़ती नहीं...
जलते हुए सूरज को अब मैं फिर क्या लिखूं.....??
इक महीन सी उदासी दिल के भीतर है तिरी हुई...
नहीं जानता कि इस उदासी का सबब क्या लिखूं...!!
सुबह को देखे हुए शाम तलक मुरझाये हुए देखे
सदाबहार काँटों की बाबत लिखूं तो क्या लिखूं...??
चाँद ने अक्सर आकर मेरी पलकों को छुआ है॥
इस छुवन के अहसास को आख़िर क्या लिखूं...??
कुछ लिखूं तो मुश्किल ना लिखूं तो और मुश्किल
न लिखूं तो क्या करूँ, अब लिखूं तो क्या लिखूं....??
अजीब सी गफलत में रहने लगा हूँ मैं "गाफिल"
तमाम आदमियत के दर्द को आख़िर क्या लिखूं...??
2 comments:
सुंदर है शानदार है बेहद कोमल है मखमली है...
मखमली अभिव्यक्ती है जो दर्द को बयान करती है,
आपको साधुवाद
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