अरे यह क्या आप तो द्रवित हो गए जरा सी बात पर एक आम हिंदू की तरह.....
प्रभु! आपसे किसने कहा कि मैं हिंदू हूं और वो भी "आम"???? या खुद ही प्रमाणपत्र बनाते रहते हैं?
आपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया या सिर्फ आँखें बंदकर घंटा ही बजाते रहे......
धर्म ग्रंथों का अध्ययन आपकी तरह नहीं करा और रही बात घंटा बजाने की तो क्या कभी आपका घंटा बजाया है?
अफीम की मदहोशी से बाहर निकलकर कुछ तथ्यों पर विचार कर लिया जाए
चलिये हम अफीमची ही सही आप ही हमें होश में लाने के लिये जरा हमारे पिछवाड़े डंडा डाल कर हिलाइये ताकि तथ्यों पर विचार कर सकें आप के साथ।यह बताईये आप हर साल रावण को फूंकने क्यूँ जाते हैं ?आपने मुझे रावण फूंकते कब देख लिया? ये बात आपको कहीं खुद रावण ने तो नहीं सूचित करी?तैमूर लंग.... चंगेज खान ..... अहमद शाह अब्दाली ..... महमूद गजनवी ..... बाबर .... वगैरह लोग क्या पर्यटन पर निकले थे या तीर्थ यात्रा पर ?आर्य लोग क्या पर्यटन के लिये आये थे यहां जिन्होंने द्रविड़ सभ्यता को रौंद कर रख दिया था?
मीडिया अगर पीछे न पड़े तो कौन रसूखवाला पकड़ में आता है ?अभी तक आपने निजी तौर पर या "अपने मीडिया" की ताकत से कितने रसूख वालों को पकड़वा दिया है?आप आदर्शवाद बघार रहे हैं क्योंकि आप शुकून से हैं.....दाल बघारना अच्छा लगता है आदर्शवाद की दाल मेरे शहर मुंबई में तो पाई नहीं जाती। जब वो दिग्भ्रमित लड़के वी.टी.स्टेशन पर पोजीशन लेकर गोलियां चला रहे थे तब मै प्लेटफार्म नंबर १३ पर बने चालकों के केबिन में उस समय मौजूद चालक हरविंदर सिंह,शिवाजी कुम्भार आदि के साथ बैठा था आप कहां थे आप जानते होंगे। मैं सुकून से हूं ये क्या अब आप निर्धारित करेंगे। मेरे मुल्क में ही नहीं सारे विश्व में आतंकवाद समस्या बन गया है उसके मूल कारण तलाशने कर दूर करने की बजाए सारे मुसलमानों और मुस्लिम राष्ट्रों को दुनिया के नक्शे से मिटा देना आपको हल लगता है तो जो पाकिस्तान में हो रहा है शायद उसमें आप जैसी सोच के लोग सक्रिय होंगे और इस बात पर गर्व महसूस करते होंगे। बर्बरता के पक्षधर होने में आपको सुकून है तो जरा स्पष्ट शब्दों में मोहनदास करमचंद गांधी, भगवान बुद्ध और भगवान महावीर को गरियाने की हिम्मत दिखाइये।भाई साहब सामजिक और देश के मसले सदैव पारंपरिक मूल्यों से तय नहीं होते.....कैसे तय होते हैं क्या आप तय करेंगे? आप ने अब तक क्या उखाड़ा है सिवाय बातों के कभी कुछ रचनात्मक करा है या आपको लगता है कि बस शब्द-प्रपंच करके घर गये बत्ती बुझा कर .........। जरा अपनी उपलब्धियों की सूची भी इसी ब्लाग पर प्रकाशित करिये ताकि हमें आपसे प्रेरणा मिले और हम जैसों का भी खून खौलने लगे वरना हम तो बस ऐसे ही आदर्शवाद की बकबक करते जीवन बिता देंगे। संभव है कि आप से कुछ सीख कर हम भी किसी की पिछाड़ी में बरगद का पेड़ घुसा सकें।सामने वाला गुलाब नोचकर उसकी डंडी हमारे पिछ्वाड़े में घुसा दे तो ? क्या करेंगे हम ??? और बड़ा गुलाब लेने भागेंगे ???
अहिंसा वगैरह जैसी बकचोदी अब समयबाह्य हो गयी है अब आप जैसे लोग समाज और देश की दशा और दिशा का निर्धारण करेंगे।आप मीडिया से जुड़े हैं शायद किसी समाचार पत्र या किसी न्यूज चैनल से तो बस एक सवाल का उत्तर दे दीजिये कि क्या जस्टिस आनंद सिंह का नाम सुना है या तब आप पत्रकारिता के गर्भ में थे और किसी अर्जुन ने आपकी मीडिया मां को ये कथा नही सुनाई थी?
5.12.08
तो ब्लाग पर क्यों कूदा?
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: जस्टिस आनंद सिंह, डा0 रूपेश श्रीवास्तव, ब्लागिंग, मीडिया
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27 comments:
धन्य हो प्रभु !!!!!
अरे डाक्टर साब दो पेग बनाओ और टल्ली हो जाओ, इस्की मां का .... इतनी भङास सिर्फ़ लिखने से नहीं जायेगी. जरा दो चार डायलोग डायरेक़्ट सुनने को मिल
जाये तो लाइफ बन जाये. आपका फैन .... memr.incredible@gmail.com
जै हो प्रभु !!!!
अरे दो पेग लगाओ और टल्ली हो जाओ, इन सबकी मां का ... इतनी भडास केवल लिखने से कैसे जायेगी??
जरा अपने फैन पर भी एक दो डायरेक़्ट आशीर्वाद बरसाओ भईया .. memr.incredible@gmail.com
बङी कृपा होगी.
नितांत ही बेहूदी भाषा का प्रयोग तुम्हारे जैसे ब्लॉगर कलंक है |
varun bhai chalo hum bhasha se kalan ho gaye. arey tum jase drawing room patrakar use bhasha ke pichee ka dard kabhi nahi smaj sakte.
rupesh ji bacche ki jaan loge kya??????????
bahut khoob maja aa gaya!!!
Dr.sahab
ap to jane hi hain ki dr. shabd ke sath sahab ka hona zaruri sa ho gaya hai lekin apke liye sahab shabd bemani nahi lagta ham samaj ko aaeena dikhne kam karte hain ab roop alag alag huwe to kya.
bindas baat kahne ke liye badhai.
apka hindustani bhai(ghufran)
{ghufran.j@gmail.com}
kaise - kaise Behuda aur badtmeej log aa jaate hain blog men. kya akal bech khaayi hai ????????
kaise - kaise Behuda aur badtmeej log aa jaate hain blog men. kya akal bech khaayi hai ????????
वरुण जायसवाल जी,चिकित्सक हूं आपकी तरह टीचर नहीं.... कड़वी दवा देने के लिये माफ़ी नहीं मांगूंगा। आपके द्वारा ब्लागिंग जगत का कलंक होना सहर्ष स्वीकार है। मैंने ये पोस्ट रूपी कड़वी दवा जिस बीमारी के लिये दी है आपने शायद उसे देखा नहीं है या जानबूझ कर अन्जान बन रहे है। गालियों का मैं विरोधी या पक्षधर नहीं हूं बल्कि इनका उपयोग किस तरह हो रहा है ये समझता हूं। शायद आप भड़ास पर पहली बार आये हैं या फिर भदेस दर्शन से परिचित नहीं है। जरा भड़ास के पेज पर लगी बांयी तरफ़ जिन कुछ पुरानी पोस्ट्स की लिंक दी हैं उन्हें समय निकाल कर पढ़िये और फिर मेरी भाषा पर अवश्य टिप्पणी करियें।
जनाब असल में जो लोग आप पर अभद्र भाषा के प्रयोग का आरोप लगा रहे हैं आंख के अंधों ने ये देखा ही नहीं कि आपने ये उत्तर दिया है मात्र पिछली एक पोस्ट का.....
जय जय भड़ास
डॉ रुपेश श्रीवास्तव जी ,
मैं ब्लॉग की दुनिया में आपके नियमित पाठकों में से एक हूँ |
हमेशा मैंने आपके विचारों से अवगत होते रहने का यथासंभव
प्रयास किया है , मुझे आपके विचारों में जो आग और जानकारी दिखती है वो
हर किसी के बस की बात नही है , किंतु हिन्दी ब्लॉग की
दुनिया में मुझे आपकी भाषा पर ही आपत्ति हुई | चूँकि आपके
नाम में ' डॉ ' शब्द का उपयोग हुआ है इसलिए मन दो मिनट के
विक्षुब्ध हो गया , मैं कोई बुद्धिजीवी नहीं किंतु बुद्धि को जीता जरूर हूँ |
आपकी रचना पर भाषा के लिए लिखी गई टिप्पणी के लिए मुझे कोई अफ़सोस नहीं है |
हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया अभी शुरू ही हुई है | कृपया अश्लील शब्दावली का प्रयोग करने की बजाय
रचनात्मकता पर ध्यान दे | मेरा मंतव्य अगर आपको गाली देना ही होता तो मैंने अपनी पहचान कभी न छुपाई होती |
सादर ...............
डॉ रुपेश श्रीवास्तव जी ,
मैं ब्लॉग की दुनिया में आपके नियमित पाठकों में से एक हूँ |
हमेशा मैंने आपके विचारों से अवगत होते रहने का यथासंभव
प्रयास किया है , मुझे आपके विचारों में जो आग और जानकारी दिखती है वो
हर किसी के बस की बात नही है , किंतु हिन्दी ब्लॉग की
दुनिया में मुझे आपकी भाषा पर ही आपत्ति हुई | चूँकि आपके
नाम में ' डॉ ' शब्द का उपयोग हुआ है इसलिए मन दो मिनट के
विक्षुब्ध हो गया , मैं कोई बुद्धिजीवी नहीं किंतु बुद्धि को जीता जरूर हूँ |
आपकी रचना पर भाषा के लिए लिखी गई टिप्पणी के लिए मुझे कोई अफ़सोस नहीं है |
हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया अभी शुरू ही हुई है | कृपया अश्लील शब्दावली का प्रयोग करने की बजाय
रचनात्मकता पर ध्यान दे | मेरा मंतव्य अगर आपको गाली देना ही होता तो मैंने अपनी पहचान कभी न छुपाई होती |
सादर ...............
डॉ रुपेश श्रीवास्तव जी ,
मैं ब्लॉग की दुनिया में आपके नियमित पाठकों में से एक हूँ |
हमेशा मैंने आपके विचारों से अवगत होते रहने का यथासंभव
प्रयास किया है , मुझे आपके विचारों में जो आग और जानकारी दिखती है वो
हर किसी के बस की बात नही है , किंतु हिन्दी ब्लॉग की
दुनिया में मुझे आपकी भाषा पर ही आपत्ति हुई | चूँकि आपके
नाम में ' डॉ ' शब्द का उपयोग हुआ है इसलिए मन दो मिनट के
विक्षुब्ध हो गया , मैं कोई बुद्धिजीवी नहीं किंतु बुद्धि को जीता जरूर हूँ |
आपकी रचना पर भाषा के लिए लिखी गई टिप्पणी के लिए मुझे कोई अफ़सोस नहीं है |
हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया अभी शुरू ही हुई है | कृपया अश्लील शब्दावली का प्रयोग करने की बजाय
रचनात्मकता पर ध्यान दे | मेरा मंतव्य अगर आपको गाली देना ही होता तो मैंने अपनी पहचान कभी न छुपाई होती |
सादर ...............
ajeeb bewkoofi hai ? ye to zaahilpana hai. jawaab dene ka bhi ek tareeka hota hai. gaali galauj se kya saabit karna chaahte ho? aisa to jhopadpatti waale bhi nahi bolte. sharm aati hai tum par. aisa blog ???????
doctor sahab aapne bahut ganaa likha hai. jisme kaheen se bhee aapki budhimani nazar nahee aati isse pata chalta hai ki aap kitna fristrate hain. bhadas sirf gande shabdon se nahee nikalateee. aachi cheezen bolkar bhee nikalee jaa sakti hai. aaapke paas iska dher sara jawab hogaa but usse aap apni is behudagi ko chupa nahee sakte hain. main aapko iske liye kabhee achha nahee kahoongaa.
Kaahe ke Doctor ho aap ? aisa blog likhne se pahle kuchh to socha hota aapne ? jisne bhi sawaal poochha tha uska jawaab to aapne bilkul tuchey andaaj me diya.yahi haal raha to kaun aana chaahega gandgi me ?
जिन्हें डा.रूपेश जाहिल,बेवकूफ़,टुच्चे और झोपड़पट्टी वाले लग रहे हैं उनमें इतना भी साहस नहीं है कि अपनी पहचान के साथ कुछ बोलें। रही बात अमित बाबू आपकी तो बस इतना जान लीजिये कि जो लोग गाली न देकर साहित्यिक भाषा में गलत बात भी लिखें तो आप उनके पक्ष में खड़े हो जाएंगे, डा.रूपेश का फ़्रस्ट्रेटेड दिखते हैं आपको। उनकी सरलता तक पहुंचने में शायद आप जैसे लोगों को कई जन्म लग जाएं। आप शराफ़त के मुखौटे लगा कर शब्दों से खेलिये वही पत्रकारिता है आपके लिये,मुबारक हो।
हेडिंग और मैटर में गांड़ शब्द का इस्तेमाल कर दिया डा. साहब ने तो कई लोगों का गांड़ क्यों फटने लगी, समझ में नहीं आ रहा है। अरे यहां, जैसे हाथ मुंह नाक सिर पेट उंगली उसी तरह गांड़ लंड बुर। इसमें गलत क्या है? गलत तब है जब इन शब्दों के इर्द गिर्द कामुक कथाएं बुनिए। डाक्टर साहब ने इन शब्दों का इस्तेमाल एक बहस के संदर्भ में किया है तो आप शब्द पर जाने की बजाय बहस पर जाइए।
भई, देखिए। भड़ास बेसिकली फ्रस्टेट और कुंठित लोगों का ही प्लेटफार्म है। मेरा मानना है कि दुनिया में 99.99999 फीसदी लोग फ्रस्टेट हैं। किसी को सेक्सुअल फ्रस्टेशन है, किसी को नौकरी का फ्रस्टेशन है, किसी को अच्छे पैसे के लिए फ्रस्टेशन है, किसी को नाम कमाने का फ्रस्टेशन है, किसी को इनफिरियारिटी का फ्रस्टेशन है.....। फ्रस्टू तो हर प्राणी है, अगर अपने भीतर ठीक से झांक कर देखे। पर कोई कहता नहीं कि वो फ्रस्टेट है। सब अपने को स्वस्थ मानते हैं लेकिन हम लोग अपने को फ्रस्टेट मानते हैं, देहाती मानते हैं, कुंठित मानते हैं, चूतिया मानते हैं, गंवार मानते हैं, अजायबघर का प्राणी मानते हैं, गांव से आए हुए गोबर मानते हैं....जितना कुछ देश दुनिया में गंदा कहा और लिखा जा सकता है, वो मानते हैं। हम लोग रोज खाते हैं, और हगते भी हैं। रोज पूजा भी करते हैं और रोज दारू भी पीते हैं। रोज बवाल भी काटते हैं और रोज किसी के दुख में दुखी होकर रोते भी हैं....हमारे एक नहीं पचास चेहरे हैं। किस चेहरे के आधार पर राय बना रहे हो? वैसे, ज्यादा अच्छा है कि राय खराब ही बनाके रखिए, ताकि हम लोगों को अपने मित्रों के बारे में कोई मुगालता न रहे। हम लोगों ने बहुत खराब दिन देखे हैं, बहुत उलटे दिन देखे हैं, बहुत तरीके के आरोप झेले हैं, खत्म कर दिए जाने तक की साजिशें और घेराबंदियां झेली हैं, इसी फक्कड़ और औघड़ स्वभाव के चलते।
हम किसी खांचे में फिट होने वाले लोग नहीं है। हम सनकी और मूडी लोग हैं। जाति धर्म और क्षेत्र से उपर उठे हुए लोग हैं। आम जन के दुख दर्द के साथ खड़े हुए लोग हैं। आम जनता की भाषा, संस्कृति और आदतों के अनुयायी हैं। हम शहर में आकर सभ्य नहीं हो सकते और गांव में जाकर शहरी नहीं बन सकते। हम गंवार गांव में भी थे, शहर में भी हैं और आगे भी रहेंगे।
तथाकथित शहरी अभिजात्य जिसमें सामूहिक तौर पर किसी क्लब में चुपचाप ड्रग्स पीकर खुलेआम एक दूसरे की आगे और पीछे दोनें तरफ से मारने की परंपरा रही हो और वहां से बाहर निकल कर फर्राटेदार अँग्रेजी बोलते हुए खुले दिमाग और अत्याधुनिक बनने-दिखने का दर्प झलकाया जाता हो, और इन्हीं लोग के आगे गांड़ शब्द बोल दो तो शिट कहकर सामने वाले को माइंड योर लैंग्वेज बोल देंगे, इनसे तो लाख गुना अच्छा हैं न कि हम जो हैं, सामने हैं। क्लब में कुछ और, बाहर कुछ और तो नहीं हैं। और हमेशा से सच कहने वालों की बातों को दुनिया ने बेहद कड़वा, घटिया, अश्लील करार दिया है।
हम गर्व से कहते हैं कि इस देश के राजनेताओं के गांड़ पर चार लात पड़नी चाहिए ताकि उनकी गांड़ फटे और उस फटी गांड़ पर मरहम पट्टी करने की बजाय नमक-मिर्च छिड़क देना चाहिए ताकि वो देश को धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर बांटने की बजाय, देश को नकली राष्ट्रवाद के नाम पर युद्धोन्माद की आग में ढकेलने की बजाय अपनी फटी गांड़ के दर्द से रक्षा के लिए यहां-वहां मारे-मारे फिरते रहें।
जय भड़ास
डोक्टर साहब की जय हो,
गुरुदेव लोग तिलमिला जाते हैं जब उनको आइना दिखाया जाता है सिवाय भडासी के क्यौंकी भडासी जितना सच से रु बा रु है बस उसी पर विश्वास करता है, वैसे भी मुखोटाधारी ने कभी सच को आत्मसात किया है जो लोग आपको करेंगे.
क्या तर्क है की भाषा को संतुलित करिए
महाशय अंग्रेज के जितने भी नाजायज सपूत हमारे यहाँ हैं फक शब्द का जिस धड़ल्ले से अपनी माँ बहन के सामने इस्तेमाल करते हैं, उनकी जहालत और कुंठितता पर तो इन बेनामी हवलदारों ने कभी प्रश्न नही उठाया, अब फक का मतलब न पूछना, भडासी हूँ ये भी पेलने में समय नही लगेगा.
मगर बात मुद्दे की सो प्रश्न का उत्तर देने के बजाय वापस प्रश्न पेल दो तो बेनामी नाजायज भाइयों और शाब्दिक ठेकेदारों खबरदार हो जाओ क्यौंकी तुम्हारे सारे जिज्ञासा को शांत किया जाएगा मगर उत्तर तो दो, की बस पेलेम पेल में सिर्फ़ गरियाना,
यशवंत जी ने बड़ी सही बात कही, एकता दिखाओ और मुखौटा खोलो नही तो हम खोल देंगे, शराफत और और चुतियापा से भरे हुए तमाम रहनुमाओं हो जाओ सावधान. चुटिया रुपेश आ गया है फ़िर से यहाँ वहां उंगली करने आख़िर उन्ग्लीमाल जो ठहरा.
जय जय भड़ास
shiv shambhu
shiv shambhu
shiv shambhu
shiv shambhu
shiv shambhu
shiv shambhu
...................
Kabira tere desh men
bhaanti bhaanti ke log,
kuchh to madarchod
aur kuchh bahut hi madarchod.
रिटायर्ड आदमी हूँ , रोज काफी समय लोगों के ब्लॉग पढ़ते हुए बीत जाता है, आपके ब्लॉग की हेडिंग पढ़कर चौंक गया, यह सही है कि आम जनजीवन में गालियाँ बकना सामान्य सी बात है, जहाँ का मैं रहने वाला हूँ वहां तो अधिकतर लोगों की कोई बात बगैर गाली के पूरी ही नही होती, एक गाली है "बैनचोद" ... जो कि इस कदर लोगों के जुबान पर रची बसी है कि बाप भी अपने बेटे को दे दिया करता है,
लेकिन अभी भी हमारा समाज भले ही निज जीवन में लाख गालियों का प्रयोग करता हो लेकिन वो साहित्य - सिनेमा - टीवी इत्यादि पर इसका आदी नही हुआ है,
आपके ब्लॉग को पढ़ा तो मुझे लगा कि आपने सवाल को सही समझा ही नही और तुंरत आवेश में आकर चढाई कर दी, बगैर गाली दिए भी बात बन सकती थी, गाली के चक्कर में सवाल पीछे छूट गए, लेकिन मै यह नही समझ पाया कि आप किसके सवालों का जवाब दे रहे थे ? आपके चक्कर में मुझे पता नही कितने ब्लॉग पढने पड़े,
बेनामी आदमी अगर शम्भू शम्भू करे तो कोई बात नही, क्यौंकी ऐसे ही बेनामी और गुमनामी वाले धार्मिक ठेकेदार होते हैं, मगर तोमर जी क्या आपको सच में लगता है की गाली के बिना बात बन सकती थी,
क्या नेता जी प्यार भरे शब्द से आपका काम कर देते हैं, क्या जिस जगह से आप रिटायर्ड हुए हैं, प्यार से महकमा काम कर देता है, पुलिस प्यार की भाषा समझती है, न्यायपालिका प्यार से बेगुनाहों के साथ इन्साफ करती है,
उत्तर आप ख़ुद दें.
रही रुपेश श्रीवास्तव की बात, तो आम आदमी की जुबान ये ही है हमें मुखौटा ओढ़कर सफेदपोश बनना नही आता .
जय जय भड़ास.
kaun betichod ----- maadarchod-----jhaant ka lauda kahta hai ki gaand..land aur bur jaise ang vishesh ka naam lena gaali hota hai ?
dr.sahab maa chod do uski. jo le hum se khushki.pawan ahuja delhi yuva
rupes ji
gaali dena aachha hai ya nahi is baat ko khatam kariye maai aap se puchata hu kal agar aapka blog aapki maa bahan beti padhe to aap ko kaasa lagega .
jabab jarur dena
sab pagal hai
rupes ji
gaali dena aachha hai ya nahi is baat ko khatam kariye maai aap se puchata hu kal agar aapka blog aapki maa bahan beti padhe to aap ko kaasa lagega .
jabab jarur dena
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