अमर शहीद अशफाकउल्ला खां की एक गज़ल पेश-ए-खिदमत है---
सितमगर अब ये आलम है तेरे बीमारे फुरकत का
लबों पर दम है दिल में बलबला शौके शहादत का
मेरी दीवानगी पर चारागर हैरां न हो इतना
यही अंज़ाम होना चाहिए नाकाम उल्फत का
बुताने संग दिल सुनते नहीं फरियाद बेकस की
निराला ढंग है उन खुदपरस्तों की हकूमत का
मिटा कर जानों दिल अपना किसी ज़ालिम ज़फाजू पर
तमाशा अपनी आंखो देखता हूं अपनी किस्मत का
हविस हूरों कि हो जिस में दिलाए याद गिल्मा की
जनाबे शेख मैं कायल नहीं ऐसी रियाज़त का
मज़ा जब है कि वह कह उठेंअशफाक उनका क्या कहना
गज़ल है या मुरक्का है तेरे वक्ते मुसीबत का।
14.1.10
अमर शहीद अशफाकउल्ला खां की एक गज़ल
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