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7.9.11

ये कैसे कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी

ये कैसे कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी
जीने के अजब ढंग सिखाती है ज़िन्दगी।

सुनते ही जिनको आँख से आंसू निकल पड़ें
अशआर हमें ऐसे सुनाती है ज़िन्दगी।

पल भर में गिराती है कभी आसमान से
पल भर में कभी ऊंचा उठाती है ज़िन्दगी।

खुश हो तो हमें पल में हंसाती है ज़िन्दगी
अपने पे अगर आए रुलाती है ज़िन्दगी।

मक़बूल यही शेर तो है हासिले- ग़ज़ल
होठों में तिनका दाब बुलाती है ज़िन्दगी।
मृगेन्द्र मक़बूल

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