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1.9.11

ईश्वर को संदेह का लाभ


१ - ईश्वर यूँ ही नहीं है । आदमी का विश्वास आदमी पर से उठ गया है । यदि आदमी आदमी में ईश्वरत्व होता , वह ईश्वर जैसा विश्वसनीय हो पाता तो ईश्वर कब का विदा हो चुका होता । लेकिन ऐसा होता कैसे ? हो ही नहीं सकता था , क्योंकि आदमी तो अनेक था पर ईश्वर था एक । इसलिए ईस्वर तो भरोसे मंद हो सका । लेकिन आदमी तो असंख्य थे ! उनमे से कुछ ही सच्चे इंसान निकल सकते थे । वे निकले भी ,पर उनकी तादाद इतनी नहीं हो सकी की वे ईश्वर पर से आदमी का विश्वास तोड़ सकते , आदमी का ध्यान ईश्वर से हटा सकते । तमाम तो झूठे फरेबी और धोखेबाज ही हुए । तो ईश्वर कैसे चैन से जीने या मरने पाता । आदमी उसकी अपने मनोनुकूल व्याख्या करने लगा , अपने पसंद की मूर्तियाँ गढ़ने, बनाने, पूजने लगा , जिसे वह जारी किये हुए है । #

- नीत्शे के ईश्वर को जनता की अदालत ने संदेह का लाभ टेकर बरी कर दिया है , वरना उसे मृत्यु दंड तो मिल ही चुका है । ##
३ - ईश्वर क सम्बन्ध विश्व से है । इसलिए आपका सम्बन्ध विश्व से क्या है , इसी से तय होगा की आप कितने आस्तिक हैं ! वरना तो सत्यतः आप नास्तिक ही हैं , आस्तिकता का कितना ही दिखावा , नाटक व पाखण्ड कर लें । ###

४ - चाहे आप कितने ही दीनी मुसलमान हों , खुदा आपके जिए कोई अलग से इंतजाम नहीं करेगा####

५ - जब आदमी को खराब का खराब ही रहना है , या घोषित होना है , तो फिर वह किसी की गुलामी क्यों करे ? किसी धर्म या धर्म गुरु की ? वह स्वतंत्र क्यों न रहे , और अपनी अच्छाई या बुराई का जिम्मा स्वयं अपने ऊपर ले ? इसमें वह ईश्वर को क्यों बदनाम या सदनाम करे ? ####3

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