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5.9.11

मिल जाए अगर तुझसे, मिलने का इक बहाना

मिल जाए अगर तुझसे, मिलने का इक बहाना
बनती है तो बन जाए, मेरी ज़िन्दगी फ़साना।

हमने तुम्हारे दर तक, फेरा लगा दिया है
भूलें न आप भी अब, मेरी गली में आना।

दिखला के इक झलक सी, परदे में छिप गए हो
अब शाम ढल रही है, छोड़ो भी यूँ सताना।

ग़ज़लों की इस कहन में, मंज़र-कशी हमारी
तुमने तो देख ली है, देखेगा अब ज़माना।

अब रात हो रही है, सब बेक़रार होंगे
छोड़ो भी ऐसी बातें,छोड़ो भी ये बहाना।

फिर बिजलियाँ गिरेंगी, दिल पर हमारे देखो
तुम बिजलियाँ गिरा कर, ऐसे न मुस्कराना।

मकबूल कह रहे हैं, पहले तो जाम भरिये
फिर मूड आ गया तो, छेड़ेंगे हम तराना।
मृगेन्द्र मकबूल

3 comments:

S.N SHUKLA said...

सुन्दर रचना , आभार .

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

Shikha Kaushik said...

bahut sundar bhavabhivyakti hetu badhai .

YE BLOG ACHCHHA LAGA

Maqbool said...

bhai s.n.shukla aur shikha kashik ji, aap dono kaa shukriyaa.
mrigendra maqbool