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13.2.08

विदेशी धन से चलने वाली सराय जैसी दुकानों से इन दिग्गज ब्लागरों को लगाव कैसा? --अफलातून

भड़ास और मोहल्ला दोनों पर ही अविनाश जी ने एक पोस्ट के जरिए सभी भाई-बंधुओं से सराय संस्था द्वारा हिंदी ब्लागिंग पर आयोजित की गई आज की मीटिंग में हजारों-लाखों की संख्या में चलने का आह्वान किया। मैं जा न सका, वृंदावन-मथुरा में दो आफिसियल मीटिंग्स में गया था। एकाएक जाने का प्रोग्राम तय हुआ था। सो, इस मीटिंग से वंचित रहा। पर आज शाम जब दिल्ली पहुंचा हूं तो अविनाश द्वारा भड़ास और मोहल्लो- दोनों ब्लागों पर लिखित पोस्टों के नीचे बनारसी भाई अफलातून जी के कमेंट पढ़ने को मिला। कुछ देर के लिए मैं इसे पढ़कर सोचने लगा। क्या यह सवाल अफलातून जी ने यूं ही किया है या इसका कोई सीरियस पक्ष भी है। जहां तक मैं अफलातून जी को जानता हूं, वे कभी कच्ची बातें और ओछी बातें नहीं करते। वे कहते-बोलते हैं तो उसके एक तार्किक मायने होते हैं, जिससे आप सहमत और असहमत हो सकते हैं। तो फिर ये जो कमेंट है इसे बेहद सीरियस मामला मानना चाहिए और अविनाश जी समेत मसिजीवी, नीलिमा, मैथिली जी, सुनील दीपक को भी अफलू भाई के सवाल का जवाब जरूर देना चाहिए ताकि कहीं किसी तरह के शक की गुंजाइश न रहे। इसी मकसद से हम अफलातून जी द्वारा उठाए गए सवाल को यहां हू ब हू प्रकाशित कर रहे हैं...जय भड़ास, यशवंत))


Aflatoon has left a new comment on your post "आज ब्‍लॉग संगत है, हजारों-लाखों में आएं":

अविनाश,
विदेशी धन(फोर्ड फाउन्डेशन जैसी संस्थाओं के पैसे से) पर चलने वाली दुकानों से अविनाश जैसों का लगाव देख कर दुख हो रहा है। सराय , csds जैसी दुकानों के द्वारा बौद्धिक साम्राज्यवाद कैसे फैलाया जाता है उससे हिन्दी चिट्ठेकारों को सावधान होना होगा। मसिजीवी - नीलिमा अब यह भी बतायें कि 'चोखेर बाली'का 'सराय' जैसी दुकान से कोई सम्बन्ध है या नहीं?मैथिलीजी या सुनील दीपक विदेशी फन्डिंग एजेन्सियों से धन ले कर चलने वाली दुकानों के बारे में क्या सोचते हैं-यह उन्हें बताना होगा।

Posted by Aflatoon to भड़ास at 13/2/08 2:05 PM

7 comments:

CG said...

उस मीटिंग में मैं भी गया था, लेकिन लगाव सराय से नहीं, ब्लागरों से है. इसलिये उनके बुलाने पर ही गया. सराय से तो न आज तक कुछ लिया, न दिया.

वैसे वहां काफी सारे ब्लागर थे, करीब 35 तो होंगे. उनमें से कुछ ही सराय से संबंधित थे. बाकी शायद मेरी ही तरह वहां ब्लागर-मीट में आये थे.

मसिजीवी said...

जी बात यकीनन अहम है और चुपचाप कालीन के नीचे खिसका देने वाली नहीं है। मैं बहुत स्पष्‍ट हूँ कहना कठिन है, एक बार सराए वाले रविकांत जी को घेरकर आपके सवालों को को उनके सामने उछाल चुका हूँ...सोचा था पूरी पोस्‍ट लिखूंगा तब हो न सका अब कोशिश करता हूँ।

अफ़लातून said...

साथी यशवन्त ,
'जनसत्ता' में मैंने एक लेख लिखा था 'बौद्धिक साम्राज्यवाद के खतरे'(सम्पादकीय पृष्ट) पर। यह लेख समाजवादी जनपरिषद के एक महत्वपूर्ण शिबिर में बहसा गया था लेकिन दल की पत्रिका 'सामयिक वार्ता' में नहीं छापा गया था। मैं अभी लखनऊ के लिए निकल रहा हूँ।अपनी चिकित्सा की बाबत।लौटते ही उक्त लेख पोस्ट करूँगा।अपनी डायरी में लेख वाले जनसत्ता की प्रति रखता हूँ,अविनाश को दिखाई थी(पढ़ा नहीं पाया था,विषय बताया था)।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,धन तो धन है विदेशी या स्वदेशी उससे क्या फर्क पड़ता है उन्हे जो बस धन के ही पीछे हैं...

azdak said...

वैसे सर्वविदित सच्‍चाई जो है यहां अफलातून भाई कह रहे हैं, अन्‍य जगह और लोग कहते रहे हैं. सवाल यह नहीं है कि सराय के पीछे पैसा फोर्ड फाउंडेशन का है, सवाल यह है कि कुछ लोगों को जो अपने कांखने में भी वैचारिक आग्रहों का दावा करते हैं, ऐसी स्‍वछंदता से इन जगहों कूद-फांद करें तो उसमें सीधे दोहरे मानदंड देखे जाने चाहिएं. देखे क्‍या जाने चाहिए, मुझे दिखते हैं.

सुजाता said...
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मैथिली गुप्त said...

श्री अफलातून जी ने मुझसे यह प्रश्न इसलिये किया है क्योंकि वे बौद्धिक कार्यों के लिये विदेशी धन से आर्थिक जुड़ाव के बारे में मेरे विचार जानते हैं.

सराय में ब्लाग संगत हुई और अच्छी हुई मैं और सिरिल सिर्फ ब्लाग संगत के लिये थे, बस सिर्फ ब्लाग संगत के लिये थे.