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15.5.08

दायित्व किसका जिम्मेदार कोन ?

बंधू अभी मुम्बई में हूँ सो रोज ही यहाँ के लोकल रेल की सवारी का आनद लेता हूँ। कल दादर स्टेशन पे ऐसा कुछ देखा की एक पुरानी घटना की याद ताजा हो आयी।
२००५ की बात है मैं उस समय कोल्हापुर में था, छुट्टी मिली सो घर के लिए चला। ट्रेन पुणे से निकली तो अजीब सी प्रशन्नता से मन पुलकित हो गया, अपने लोगों को देख कर। हमारे बगल में एक बुजुर्ग महिला अपनी बहु और अपने पोते के साथ थी, एक ही मातृभाषा होने के कारण परिचय हो गया और सफर अपनापन के साथ अपने गति से कटने लगी। ट्रेन कब इलाहाबाद पहुंचा पता ही नही चला। यहाँ ट्रेन को कुछ देर रुकना था सो रुकी भी, हमारी बात-चीत जारी रही की दादी माँ का पोता जलेबी के लिए रोने लगा। बहरहाल मैने उनलोगों से कहा की आप रहिये मैं ले आता हूँ क्यूंकि ट्रेन के चलने का भी समय हुआ जा रहा था। मैं जब वापस आया तो मेरे कम्पार्टमेंट का माहोल ही बदला हुआ था। दादी माँ के कान खून से लथपथ थे और गले में गहरे चोट के निशान। मेरी समझ में कुछ नही आया की अभी तो सही था अभी क्या हो गया। खैर पता चला की किसी ने दादी माँ के कान और गले से उनके जेवर खींच लिए। लोगों की अपार भीड़ तमाशबीन बनी हुई। तभी ट्रेन ने सीटी मारी और चल पड़ी मैने जंजीर खींचा और ट्रेन के रुकने के बाद वहाँ मौजूद जी आर पी के सिपाही से कहा की ये दुर्घटना है और इसका ऍफ़ आर आई आप रजिस्टर करो। जवान महोदय का जवाब की ट्रेन अभी यहाँ से चली नही है सो मेरी ड्यूटी शुरू नही हुई है सो मैं कुछ नही कर सकता। मैने अपने कोच कंडक्टर को पकड़ा और सारी बातें बता कर ऍफ़ आर आई दर्ज करने को कहा तो इन साहिबान ने भी मना करते हुए गार्ड महोदय के पास जाने को कहा।
दादी माँ के बारे में बताता चलूँ की इनका पुत्र पुणे में रक्षा में किसी उच्च ओहदे पर था और बहन जी का भाई सहारा परिवार के प्रिंट या टी वी में पत्रकार थे। मैने बहन जी से कहा की आप मेरे साथ चलें और हम केस दर्ज करवा सकें वह चलने को तैयार हो गयी। मुझे उनके हिम्मत से बल मिला और हम गार्ड महोदय के पास पहुँचे । सारी बात सुनने के बाद सिवाय इसके कि हमारे गार्ड जी केस दर्ज करते उन्होंने कहा की आप प्लेटफोर्म एक पर जा कर जी आर पी ऑफिस में केस दर्ज करवा दें तब तक मैं ट्रेन को रोकूंगा। उफ्फ्फ़ इलाहबाद का स्टेशन प्लेटफोर्म बदलने में ही मेरी हालत ख़राब हो गयी मगर बहन जी की हिम्मत देख कर हम पहुंच गए जगह पर। आश्चर्य जी आर पी ऑफिस सारी बात सुनने के बाद कहते हैं की ये केस आपको ट्रेन में ही दर्ज कराना होगा यहाँ हम नही कर सकते। मन गुस्से और खिन्नता से भर गया मैने बहन जी से कहा की बेहतर है की हम एक बार स्टेशन अधीक्षक से मिल लें क्यूंकि ट्रेन के भी चले जाने की फिकर थी मगर हमारी बहाना ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा की अब तो रपट लिखा के ही जायेंगे। हम पहुँचे स्टेशन अधीक्षक के पास और वस्तुस्थिति बताया तब तक में हमारे बहन जी के सब्र का बांध टूट गया और अधीक्षक महोदय को जिम्मेदारी और जवाबदेही का ऐसा पाठ पढाया की बेचारे बगले झांकते नजर आ रहे थे. बहरहाल स्टेशन अधीक्षक के कारण हमारी रपट लिख ली गए. मेरा नाम गवाह में था जो शायद आज भी इलाहाबाद के इस जी आर पी ऑफिस के फाइल में दर्ज होगा.
जब हम वापस आये तो ट्रेन लगी हुई थी और पहले से ही लेट चल रही दो घंटे और लेट हो चुकी थी. दिल में एक सुकून लिए जब अपने प्लेटफोर्म पर पहुंचा तो लोगो की गालियाँ ने स्वागत किया. बड़े आये समाज सेवा करने वाले साले ने दो घंटे ट्रेन यूँ ही लेट करवा दिया। आपको ये कहानी लगी हो परन्तु इस कहानी की सीख मुझे नहीं पता चल पायी। हमारे लिए कोच कंडक्टर, जी आर पी के सिपाही,गार्ड मगर इनका काम, काम के प्रति जवाबदेही और निष्ठा। जिम्मेदार कोन ये लोग या हम. हम याने की वो हम जो ट्रेन के लेट होने से गालियों की बरसात कर रहे थे क्यूंकि उनके साथ दुर्घटना नहीं हुई थी......
प्रश्न तो है पर अनुत्तरित....

4 comments:

Ankit Mathur said...

रजनीश भाई नम्बर एक के मादरचोद हैं ये साले
पुलिस वाले और जी आर पी, फ़ी आर पी वाले,
बहनचोदो को मुफ़्त की खाने और वक्त पडने पर
गांड दिखाने के अलावा कुछ नही आता। इनकी
तो खंबे से बांध कर धुनाई की जानी चाहिये।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

रजनीश भाई,अंकित भाई ने जो सुझाव दिया है मैं उससे पूरी तरह से सहमत हूं लेकिन क्या करें उस जनता का जो अपनी पिछाड़ी पर प्याज काटे जाने का इंतजार करती है और फिर दुहाई देती है कि कोई सहयोग नहीं करता,कानून का पालन ठीक से न करने वाले भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितने कि चोर.....
अगर हम भड़ास के माध्यम से जनजागरण का अलख जगा पाए तो हमारी कामयाबी वरना हम भी बस खोखले पहलवान रहेंगें...
जय जय भड़ास

rajendra said...

rajnish bhai, desh me jantantr hai, lekin netaon ne janata ko jagne nahi diya. so aaj bhi ye police bale sudhar nahin rahe hia.

VARUN ROY said...

रजनीश भाई,
व्यवस्था की संवेदनहीनता के लिए दरअसल हम ही जिम्मेदार हैं. हम सुधरेंगे तभी व्यवस्था सुधरेगी. राजेंद्र भाई के इस बात से सहमत नहीं हूँ कि नेताओं ने हमें जागने नहीं दिया है. हम ख़ुद जागना नहीं चाह रहे हैं और यह स्थिति नेताओं के भी अनुकूल है.
वरुण राय