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2.7.08

रंग लाया प्रयास, पिता ओंकार जेल से रिहा, करूणाकर का इलाज शुरू

कहते हैं इंसानी हौसलों की न कोई सीमा होती है और न कोई दायरा...बस इस बार जो हुआ उसमे नया कुछ नही था जीत थी, महक थी छोटे प्रयासों की बड़ी सफलता की, उम्मीद थी उजाले की...

कैंसर से जूझ रहे करुनाकर और जेल में बंद उनके पिता को न्याय दिलाने के यशवंत सिंह, डॉ रुपेश श्रीवास्तव, अमित द्विवेदी व अन्य ब्लागरों की मुहिम और भड़ास के प्रयासों से जेल में बंद करुनाकर के पिता ओंकार मिश्रा को जमानत मिल गई है...

अपने होनहार बेटे से मिलने के लिए लालायित पिता कल अपने बेटे के जन्मदिन पर उसकी खुशियों में भागीदार बन सकेगा, उसके दुख को साझा कर सकेगा..एक पिता के लिए इससे बड़े गौरव की दूसरी बात क्या हो सकती है...हर बार जब उम्मीदें ख़त्म होती लगती हैं तो लोग भड़ास की तरफ़ रुख करते हैं और हर बार भड़ास के गैर दुनियादार, असमाजिक, कुंठित, बेकार और दूसरे कई अलंकारों से नवाजे गए लोग करिश्मा कर डालते हैं...

''कई लोग जब करुनाकर के मामले में बहुत कुछ होने की उम्मीद खो बैठे थे तब भड़ास ने उम्मीद पालने की जिद पकड़ ली'' और हमारे प्रयासों का जब पहला ही परिणाम आसमान चूमने का हौसला पैदा करता हो तो असफलता की बात इस मंच से करना बेमानी है...

सारी दुश्वारियों को धता बताकर जब रुपेश जी मुंबई से दिल्ली पहुँच गए हैं और देखते ही देखते कई मदद करने वाले हाथ साथ जुड़ गए हैं तो करुनाकर के साथ कुछ ग़लत होगा, ऐसा कोई मूर्ख और अज्ञानी ही सोच सकता है...

कहते हैं दुआओं में असर होता है...और अब तो असर दिख भी रहा है....


करुनाकर के पिता जेल से छूट गए हैं, जमानत पर। करुनाकर का जीवन आयुर्वेद के पुरोधा के हाथ में है। जन्मदिन पर परिवार के सारे बुजुर्गों का आशीर्वाद है और दुआ के लिए भड़ास के ३६० हाथ हर वक्त तैयार हैं...

क्या अब भी किसी को भड़ास के इस अभियान की सफ़लता पर शक है...ये वक्त है जश्न मनाने का है...करुनाकर को बधाइयां देने का...साथ ही उन सबको विनम्र धन्यवाद देने का जो इस मुहिम में करुनाकर के साथ डटकर खड़े रहे...

''जन्मदिन की पूर्वसंध्या पर करुनाकर को ह्रदय की असीम गहराइयों से हार्दिक बधाइयां और बेहतर जीवन की शुभकामनाएं''...

''हृदयेंद्र''

1 comment:

Unknown said...

करुनाकर को वधाई. उनके पिता और परिवार को वधाई. उन सब को वधाई जिन्होनें इस अच्छे कार्य में कुछ भी किया. ईश्वर से प्रार्थना है की यह खुशी दिन दूनी रात चोगुनी बढ़ती रहे.