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1.10.08

आतंकवाद का महिमा मंडन कब तक ?


आतंक का नंगा नाच जारी है कब कहाँ बम फट जाए कुछ नही कहा जा सकता आतंकवादी पूरे देश में खून की होली खेल रहे हैं, जैसे ही कहीं बम फटता है, मीडिया का पूरा लाव लश्कर वहां पहुँच जाता है, उसके बाद टीवी के दर्जनों न्यूज़ चैनल दिन भर ज्यादा से ज्यादा कवरेज दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं
यह सही है कि देश के हर शहर में हर जगह 'सिक्योरिटी' नही रखी जा सकती मानवता के दुश्मन दहशत फैलाने का रास्ता खोज ही लेंगे लेकिन हमे अब आतंकवाद के मनोविज्ञान को समझना होगा
किसी भी बम विस्फोट में जब मासूम लोग मरते हैं, तो उन मरने वाले लोगों से आतंकवादियों की किसी तरह की व्यक्तिगत रंजिश नही होती है, उनका सिर्फ़ एक ही मकसद होता है - दहशत फैला कर ज्यादा से ज्यादा 'पब्लिसिटी' हासिल करना यहाँ तक कि बम फटने के कुछ ही घंटे के अन्दर स्वयं ही ई- मेल करके अपनी पीठ ठोक लेते हैं
किसी भी तरह की आतंकवादी घटना होने पर प्रशासन अपना दायित्व और व्यवस्था चाक चौबंद रखे, लेकिन मीडिया को अपना काम गभीरता से समझना होगा आतंकवाद को 'ग्लेमराइस' करने की जरूरत नही है अगर न्यूज़ पेपर और न्यूज़ चैनल अपने ऊपर संयम रखें तो आतंकवादियों मनोबल टूटेगा और उन्हें हताशा होगी

3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut khub

Anonymous said...

भाई,
ये आतंक का महिमा मंडन नही अपितु अपने धंधे यानि कि पत्रकारिता को बेचने का सिलसिला है, कभी कभी तो शक होता है कि इस धमाके के पीछे मीडिया ही तो नही, आप देखें बम के धमाके पर मीडिया का रवैया वंही चर्च को जलाना, एक वर्ग विशेष के लोगों का नरसंहार, मीडिया का काम ख़बर कि इतिश्री, कई लोगों कि हत्या कार में होती है दो मिनट की ख़बर मगर एक पत्रकार की हत्या, और ख़बर को भुनाने का स्पर्धा,
बड़ा संदेहास्पद है,
मीडिया अपनी भूमिका पर ख़ुद प्रश्नचिन्ह लगा रहा है. व्यवसायीकरण के दौर में बड़े बड़े पत्रकार किसी कि दुहाई दें मगर सचाई ये ही कि पत्रकार और पत्रकारिता लाला जी कि दुकान के रखैल बन कर रह गये है.
जय जय भड़ास

Anonymous said...

बहुत सही कहा आपने |
ये ससुरा बम फटता तो एक बार है | लेकिन ये भूतनी के मीडिया वाले तीन दिन तक पूरे देश के सिर पर फोड़ते रहते हैं | कभी कभी तो लगता है कहीं मीडिया वाले इन आतंकवादियों के मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव तो नही हैं | जैसे ही कहीं बम फटा नहीं कि बस मीडिया की पौ बारह | कितने आतंकवादी थे .... कौन से संगठन के थे .... संगठन के प्रमुख पदाधिकारी कौन कौन लोग हैं ..... अब तक कहाँ कहाँ बम फोड़ चुके हैं .... उनकी आगे की प्लानिंग क्या क्या हो सकती है .... उनकी ट्रेनिंग कैसे होती है ........ बाप रे बाप पूरा साला बही खाता ही खोल के बैठ जाते हैं | अब जब इतना हीरो बनाओगे तो और क्या परिणाम होगा |

जय शंकर पटवर्धन
देहरादून