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17.9.11

बूढ़ों के जिम्मे

* बूढ़ों के जिम्मे सिर्फ नाती पोतियों का आशल -कुशल रखना , उन्हें खिलाना ही नहीं , एक और महत्त्वपूर्ण काम भी हैअपने साथी बूढ़ों की बीमारी में उन्हें देखने उनके घर - अस्पताल जाना और उनके मर जाने पर श्मशान जाना , शोक सभा में शामिल होना , उनका बढ़ा हुआ काम है

1 comment:

रविकर said...

मां, मातृभाषा और मातृभूमि posted by मनोज कुमार विचार से प्रभावित रचना ||

बारी अभी आई नहीं, खेत पानी में पटे ||
लेट-गाडी तीन घंटे, किन्तु क्यू में हम डटे ||
( लग गए लाइन में --जाने वालों की )





असफल हुआ दो मर्तवा, इंजीनियरिंग इंट्रेंस में,
बाप का अरमान बेटा, पाठ 'कोटा' में रटे ||
( कोटा बेस्ट कोचिंग सेंटर )

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/fc/Tarom.b737-700.yr-bgg.arp.jpg

बन गया इन्जीनियर, पुत्र फ़ारेन जा बसा,
पैरेंट्स की असमर्थता, वक्त काटे न कटे |
(इकलौता बेटा )



आज के नव दौर में, चल पड़ी फिर सोच ऐसी
बस जरूरत भर पढ़ा, तन्हा कलेजा क्यूँ फटे |
(अधिक पढाया तो दूर हो जायेगा )



चाचा-बुआ-दादा पडोसी, और भी रिश्ते भुला ,
ज्ञान अर्जित कर लिया तो लिस्ट क्यूँ कैसे घटे ?
( लिस्ट में कुछ रिश्ते और जुड़ गए )
Sweating Over an Exam
रिजल्ट हो बढ़िया हमेशा, चाहते थे आप जो -
हर समय बोला किये कि सब रिलेटिव हैं लटे ||
( सभी रिश्तों को बुरा बताया गया )

बचपना पूरा गया, रिश्ते भुलाने में गुजर --
भूलने का पा मजा, तो व्यर्थ में अब क्यूँ सटे ||
(जिम्मेदारियां क्यूँ उठायें )


Preview

बाप - बूढ़े मातु - अक्षम, चल - बसे वृद्धाश्रमा,
गोकि घर आश्रम बने, रविकर लगे क्यूँ अट-पटे ??
(जैसी करनी वैसी भरनी )