दारूबाजों के बारे में एक से एक किस्से हैं। मेरे एक मित्र ने बताया कि उनके गांव में एक दारूबाज है जो महीने भर लगातार दिन रात पीता रहता है, माने की टुन्न रहता है। महीने भर ज्यों बीतता है, वह छोड़ देता है, पूरे एक महीने के लिए। फिर वह बिलकुल नहीं पीता महीने भर। उसके बाद जो महीना आता है उसमें फिर वह दिन रात टल्ली रहता है। जब उसका पीने वाला महीना आता है तो उसके पड़ोस वाले बोल पड़ते हैं--लो, पग्गल तो गया। इसके पीने के दिन शुरू हो गए।
और इन पीने वाले दिनों में पग्गल किसी से कुछ नहीं बोलता। बस, वह नशे में रहता है, चिंतन करता रहता है। खाता है और पीता है और सोता है और चिंतन करता है। बस, और कुछ नहीं करता। इन दिनों में वह न घर का न खेत का न मवेशियों का, कोई काम नहीं करता। घर उसके बाकी परिजन चलाते हैं। वह तो सिर्फ नशे में तपस्या करता रहता है।
भई, इन सज्जन के बारे में जानकर मुझे उत्सुकता हो पड़ी है इनसे मिलने के लिए। हां, ये बुलंदशहर जिले के एक गांव के रहने वाले हैं। अगर किसी टीवी वाले भइया को ठीकठाक ब्रेकिंग न्यूज चाहिए तो वहां चला जाए, उनके पीने वाले दिनों की रिकार्डिंग कर ले फिर बिना पीने वाले महीने की उनकी जिम्मेदार व सक्रिय ज़िंदगी की तस्वीर उतार ले, बस हो गया अजब-गजब और परोस दे ब्रेकिन न्यूज बनाके।
एक अपना मित्र था, कानपुर में। उसका भी एक तगड़ा नियम था। वह पीता तो था लेकिन केवल पहला पैग। आप उसके पहले पैग में या एक बूंद दारू दो और बाकी पानी भर दो या पहले पैग में गिलास में केवल निट दारू भर दो, वो मना नहीं करेगा, पी जायेगा। लेकिन उसके बाद दूसरा पैग किसी हालत में नहीं ले सकता। धरती डोल जायें, चांद-सूरज खिसक जायें, पर भाई दूसरा पैग नहीं लेता तो नहीं लेता। उसका यह फंडा हमने हमेशा देखा, बहुत जिद की दूसरा पैग पिलाने को पर भाई ने नहीं पिया तो नहीं पिया। बाद में हम लोगों ने उसके इस नियम को सराहा और सभी दारूबाजों को इसी नियम पर चलने की सलाह दी। सलाह देने में क्या जाता है। भले सलाह खुद फालो करो न करो। यही तो अपने डेमोक्रेसी में मजा है।
एक मेरे और मित्र हैं। वो या तो नहीं पीते हैं। जब पीते हैं तो एक दो पैग पर नहीं रखते। उनका मानना है कि इतना पी लो कि होश ही न रहे। मतलब, वो कम से कम अद्धा तो खत्म ही कर देते हैं। अगर बेहोशी युक्त नशा न हुआ तो फिर एक क्वाटर मंगा लेते हैं। और, आखिर में वो खाली बोतलों को सिर पर रखकर, अदभुत संतुलन साधते हुए नाचने लगते हैं। एकदम मुक्त और मोक्ष की अवस्था में आ जाते हैं। फिर वो अपने लोकधुनों को गा-गाकर रोते हैं, अपने अतीत के सुंदर जीवन को याद करते हैं और वर्तमान के चूतियापे को गरियाते हैं।
एक अन्य साथी हैं। उनका फंडा ये है कि वो अपने पैसे से न पीने की बात करते हैं। पर उन्हें दो पैग कोई पिला दे तो वो एटीएम कार्ड व नगद सामने रख देते हैं। उसके बाद उनके पैसे से चाहें जितना पियो, वो कतई बुरा नहीं मानेंगे, लेकिन अगर शुरू में ही आपने उनसे कह दिया कि आज जरा पिलाइए, तो भाई ऐसा करारा बहाना बनाकर निकल लेगा कि पूछो मत। लेकिन उन्हें आप खुद ही आफर कर दें और एक क्वाटर के दो पैग पिला दें तो फिर वो अपने पैसे से बोतल मंगा लेंगे।
तो ये दारूबाजों के दारूबाजी संबंधी चार फंडे व चार व्यक्तित्व हैं। अब ये न पूछिये, मेरा वाला फंडा क्या है। वो बाद में बताऊंगा। हां, इतना जरूर बता दूं कि मैं एक तो अच्छा खासा गैप देता हूं, नये साल के पहले दिन से ही। वीकेंड पर मटन-चिकन बनाता हूं तो साथ में एक क्वाटर भी ले आता हूं। बस, एक एक घूंट सिप करते हुए प्याज लहसुन काटते, मांस धोते और पकाते निपटा देता हूं। उसके बाद छककर खाता हूं। सुबह उठकर इतना भयंकर एक्सरसाइज करता हूं कि रात का पिया हुआ गायब हो जाता है। मतलब, ड्रिकिंग विथ नानवेज। और सुबह उठकर साइड इफेक्ट दूर करने के लिए प्राणायाम।
तो ये मेरा वाला मिलाकर पांच फंडे हो गए। अगर आपको भी कोई ऐसा दारूबाज मिला हो जिसका दारूबाजी को लेकर कोई फंडा हो तो जरूर भड़ासियों को बताएं। कम से कम मैं तो चाव से पढूंगा इसे।
डाग्डर साहब को यह पोस्ट बकवास लगे या बिंदास, पर मुझे तो ऐसी गपोड़ी चर्चाएं व बतकही करने में बड़ा मजा आता है। मैं जब भड़ास पर लिखता हूं तो देस, समाज, जिम्मेदारी व नैतिकता को भेज देता हूं तेल लेने के लिए। आनलाइन कोई तो स्पेस ऐसा हो जहां दिल की बात लिखी जा सकती हो, और वो स्पेस भड़ास देता है, मेरा अपना स्पेस.....।
जय भड़ास
यशवंत
8.2.08
दारूबाजी के फंडे
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
Labels: अनुभव, दारूबाजी, पीना-पिलाना, भड़ास, संस्मरण
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1 comment:
दादा, आप यह मत कहिए कि मैं इस बात को बकवास मानता हूं बल्कि शराबियों से मुझे बड़ा गहरा प्रेम है । लेकिन यह बात मेरे डक्टराने से दिल की न रह कर लीवर की हो जाती है । आपने दारूबाजी पर लिखा तो जैसे एक सियार के हुआ-हुआ करने पर ढेर सारे सियार हुआ-हुआ करने लगते हैं वैसे ही अपने सब बेवड़े भड़ासी भाई भी कैसे खुश हो-होकर दारूबाजी पर लिख रहे हैं । देश,समाज और नैतिकता को तेल लेने तो भेज दिया लेकिन हमें जरूर बताइए कि किस चीज का तेल है जो इनके एवज में आप स्वीकारा जा सकता है । मेरे बारे में बस इतना ही कि "जमीं जुम्बद न जुम्बद गुल मुहम्मद",अपुन नईं बदलेगा भिड़ू चाए कुच बी हो जांए.......
जय जय भड़ास
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