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1.2.08

हमें नपुंसक होने से बचाया, बददिमाग और बुरे माने गये साथियों ने

(हरिद्वार प्रवास में दिल्ली के एक कवि की एक ऐसी कविता पढ़ने को मिली, जिसे कहने को मन हो रहा है कि ये अब तक की सर्वश्रेष्ठ भड़ासी कविता है, जिसे हम सब महसूस कर सकते हैं, समझ सकते हैं, जीते रहते हैं, अगल-बगल होते हुए, घटित होते हुए, फलित होते हुए देखते हैं....शायद घोर कलयुग का असर है पर ये सच है, बुरे लोगों ने किस तरह जिंदगी को जीना सिखाया है क्योंकि बुरे लोगों की बनाई दुनिया और बुरे लोगों द्वारा चलाई जा रही दुनिया और बुरे लोगों के लिए चल रही दुनिया है ये...सो आइये इसे बाचें, पढ़ें, गुनें, सुनें, महसूसें और कोसें भी कि ऐसे वक्त में क्यों जी रहे हैं जहां बुरी सीख से ज़िंदगी जीने का मतलब सीख पाते हैं और इसी के सहारे कुछ अच्छा कर पाते हैं क्योंकि दुनिया सहज, सरल और सरस नहीं है। कहने को बहुत कुछ गद्द में कहा जा सकता है लेकिन दिल्ली के इस कवि ने अपनी लंबी कविता में जो कुछ कहा है उसे गद्द में कतई नहीं कहा जा सकता है, इस कवि का नाम मैं अगली पोस्ट में खोलूंगा, उससे पहले चाहूंगा कि लंबी कविता के इस पहले पार्ट को आप लोग ध्यान से पढ़ें और अपनी राय दें....जय भड़ास, यशवंत)

कृपया बुरा न मानें
इसे बुरे समय का प्रभाव तो कतई नहीं
दरअसल यह शाश्वत हकीकत है
कि काम नहीं आई
बुरे वक्त में अच्छाइयां

ईमानदारी की बात यह कि बुरी चीजें
बुरे लोग, बुरी बातें और बुरे दोस्तों ने बचाई जान अक्सर
उंगली थामकर उठाया साहस दिया
अच्छी चीजों और अच्छे लोगों और अच्छे रास्तों ने
बुरे समय में
अक्सर साथ छोड़ दिया
बचपन से ही
काम आती रहीं बुराइयां

बुरी माओं ने पिलाया हमें अपना दूध
थोड़ा बहुत अपने बच्चों से चुराकर
बुरे मर्दों ने खरीदी हमारे लिए अच्छी कमीजें
मेले हाटों के लिए दिया जेब खर्च

गली के हरामजादे कहे गए वे छोकरे
जिन्होंने बात-बात पर गाली-गलौज
और मारपीट से ही किया हमारा स्वागत
उन्होंने भगाया हमारे भीतर का लिजलिजापन
और किया बाहर से दृढ़

हमें नपुंसक होने से बचाया
बददिमाग और बुरे माने गये साथियों ने
हमें सिखाया लड़ना और अड़ना

बुरे लोगों ने पढ़ाया
ज़िंदगी का व्यावहारिक पाठ
जो हर चक्रव्यूह में आया काम हमारे
हमारी परेशानियों ने
किया संगठित हमें


(जारी)

4 comments:

Ankit Mathur said...

बढिया है यशवंत भाई, वाकई काफ़ी भड़ास
निकाली है कवि ने इस कविता में।
कहना ना होगा कि ये शायद वाकई में अब
तक की सर्वश्रेष्ठ भडासी कविता है।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

जो हितकर है वह हर हाल में अच्छा है बुरा नहीं जिसे उसमें बुराई नजर आती हो वह अपनी परिभाषाएं बदल ले या नजरिया बदले । कवि ने मेरे भीतर मचलते भावों को अपने सुन्दर शब्दों का जामा पहना कर उपक्रत किया है ,उन्हे मेरी ओर से साधुवाद......

Anonymous said...

Bha...e! yadi ye kavita pumplet me chhapkar sari dunia mein baat sake to dunia se ka..e achchho ki to ....nikal jayegi.
yahan kaun achchha banna chahta hai saaaala. sabhi to saaaale.......

Unknown said...

bhaee login ke nmaskar
hmar do kaudi ke kvita pr kya kahte hain jrranvajee khatir...
aap sbka hee,
hare prakash