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7.6.11

आधुनिक बोधकथाएँ -५. वीर विक्रम और बैताल ।

आधुनिक बोधकथाएँ -५. 
वीर विक्रम और बैताल ।
सौजन्य-गूगल
हमेशा  की तरह, परदुःखभंजन राजा वीर विक्रम ने, अड़ियल बैताल को, शव के साथ, पेड़ से नीचे उतारा और, अपने कंधे पर रखकर, राजा ने अपनी राह पकड़ ली ।

बैताल - " विक्रम, मेरी समझ में, ये बात नहीं आ रही  है  कि, तुम्हारी इस  व्यर्थ मेहनत पर, मैं  दया दिखाउँ या तेरी मूर्खता पर मैं  हँसूं..!! खैर, आसानी से रास्ता कट जाएं इसलिए, मैं तुम्हें एक आधुनिक बोधकथा सुनाता हूँ, अगर ये कथा सुनने के पश्चात मेरे द्वारा पूछे गये सवालों का सही  जवाब तुमने नहीं दिया, तो तुम पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे, ऐसा श्राप मैं तुम को दूँगा..!!

बैताल की यह बात सुनकर राजा विक्रम कुछ बोले बिना ही, मंद-मंद मुस्कुराता  हुआ, अपने मार्ग पर, आगे चलता  रहा ।

बैताल - " भारत वर्ष में, एक हठयोगी बाबा  रहता था ।  कोई उसे  बहुत बड़ा ठग कहता था, कोई उसे संत कहता था..!! पूरे भारत वर्ष में, उसके नाम का शोर्ट कट कर के,  लोग  उन्हें,`अनुलोम-विलोम बाबा` भी कहते थे ।

ये हठयोगी बाबा, कभी किसी के सामने भी, झुकने को तैयार न थे, इसीलिए  वहाँ के सत्ता अधिकारीओं के साथ अक्सर उनकी कहा सुनी हो जाती थी और  वहाँ  की समाचार पत्रिकाएँ और दूर दृश्य  डिब्बे को (TV) चौबीसों घंटे की ख़ुराक मिलती रहती थी, जिसके कारण उनके कर्मचारीओं को,  खाना-पीना नसीब होता था और प्रजा का भी हमेशा मनोरंजन होता था..!!

एक दिन की बात है, इस हठयोगी को न जाने कहाँ से पता चल गया कि, भारत वर्ष के सभी राज्यों में और केन्द्रीय राज्य में, भ्रष्टाचार ने, सभी सीमाओं को लाँघ कर, आम जनता का जीना हराम कर दिया है..!!

इतना ही नहीं, केन्द्रीय राजा और उनके कई मंत्री ने, भारत वर्ष की जनता के  ख़ून पसीने की कमाई से,  टैक्स के रूप में इकट्ठा किया हुआ ये सारा धन, जन हित में उपयोग कर ने के बजाय, उसे काला धन बना कर, भारत के बाहर दूसरे देशों में , बद-नियत से संग्रह किया  है?

बस फिर क्या था? ये सुनते ही बाबा ने, हठयोग आज़माते हुए, राजा के सामने  आमरण अनसन का एलान कर दिया और कई लाखों इन्सानों की भीड़ जमा करके, भ्रष्टाचार, काले धन और शीर्ष  राजा के खिलाफ़, जो दिल में आए  वो बोलना शुरु कर दिया..!!

केन्द्रीय शीर्ष राजा ने, समय की नज़ाकत को देखते हुए, बाबा का हठयोग भंग करने के लिए कई मंत्री को अपना दूत बनाकर, उनके पास वार्तालाप करने के लिए भेजा, पर बाबा ने अपना हठयोग-आमरण अनशन समाप्त करने से इनकार करते हुए, अनशन शिविर में पूरे राज्य से और कई लोग जमा करना शुरु करके, अपना भ्रष्टाचार और काला धन विरोधी अभियान और तेज़  कर दिया..!!

बाबा के आह्वान पर, अभियान के दूसरे ही दिन, शाम होते-होते, आंदोलन स्थल पर, लाखो लोग एकत्रित होने लगे..!!

राज्य शासन के प्रति प्रजा का  भारी आक्रोश  बढ़ता  देखकर ,अब राजा को  डर लगा कि, कहीं उसका सिंहासन  छिन न जाये..!!  अतः उसने मंत्रीओं  की आपात क़ालीन  बैठक बुलाई और सभी ने मिलकर कुछ ठोस निर्णय किए और उस पर अमल करने की ज़िम्मेदारी भी कुछ मंत्रीओं को सौंपी गई..!!

दूसरे दिन पूरे भारत वर्ष की प्रजा ने बड़े आश्चर्य के साथ देखा कि, हठयोगीबाबा के आमरण अनशन अभियान स्थल पर, बाबा तो क्या, लाखों की भीड़ में से, सुबह होते-होते एक भी इन्सान, उस पंडाल में मौजूद नहीं है, वहाँ से सब लोग भाग गए हैं..!!

वीर विक्रम, मैं तुम्हें इतना अवश्य बता दूँ  कि, उस केन्द्रीय राजा ने, बाबा के आमरण-अनशन अभियान स्थल पर, भीड़ को भगा ने लिए, न तो सैनिक भेजे थे, ना आँसू गैस के गोले छोड़े थे, ना वहाँ पंडाल में आग लगाई थी, ना  तो  किसी मंत्री द्वारा, बाबा को कोई धमकी दी गई थी..!!

हे..वीर विक्रम, अब सवाल यह है कि,  राजा ने, उस भीड़ को भगाने के लिए, अगर कोई भी कदम नहीं उठाये थे तो फिर, अचानक आमरण-अनशन अभियान स्थल से,रात ही रात में,  सारी भीड़ अचानक  कहाँ भाग गई और क्यों भाग गई?

हे..वीर विक्रम, अगर तुमने  इन सवालों के सही-सही उत्तर न दिया तो, मैं तेरे द्वारा आजतक किए गये, सारे  भ्रष्टाचार के सबूत की फाइलें ,केन्द्रीय राजा के सुपर-डुपर कार्यक्षम महामंत्री श्री बकबक विज्य सिंह को पहुंचा दूँगा और साथ में श्राप भी दूँगा कि, तुम्हें  भी प्रजा भ्रष्टाचारी कह  कर जूतों से बूरी तरह पीटे..!!"

बैताल के मुख से, अत्यंत आधुनिक बोधकथा सुनकर, परदुःखभंजन राजा वीर विक्रमादित्य ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए, बैताल को उत्तर दिया,

" केन्द्रीय राजा के मंत्रीओ की आपात काल बैठक में जो निर्णय किए गये थे, उसी को कार्यान्वित करने के कारण, आमरण-अनशन अभियान स्थल से, बाबा समेत, सारी भीड़  रात ही रात में  भाग गई..!!

हे..बैताल, मेरे पास खुफ़िया जानकारी है कि, हठयोगी बाबा के आमरण-अनशन अभियान स्थल पर, उन शातिर और चालाक मंत्रीओं के, भाड़े के कई  आदमीओं ने, बाबा और वहाँ जमा आंदोलनकारीओं की भीड़ को गहरी नींद में, सोते हुए देखकर, मौका पाते ही वहाँ `इतालियन लाल चींटीओं के  सेकडों बॉक्स उँड़ेल दिये थे, जिस  इतालियन लाल चींटी का काटा, पानी तो क्या ठीक से सांस भी नहीं ले पाता..!!

अतः बाबा समेत सारी भीड़ वहाँ से सैन्य कार्यवाही किए बिना ही इतालियन चींटीयों के कहर से, पंडाल से उठ कर भाग गई..!!"

वीर विक्रम का बिलकुल सही उत्तर सुनते ही, बैताल उस शव के साथ फिर से वही पेड़ पर जा कर लटक गया ।

आधुनिक बोध- सारे भारत वर्ष में, बड़े-बड़े सुरमाओं से भयभीत न होनेवाले हठयोगी और अन्य जवाँमर्द भी, इतालियन लाल चींटी के काटने के डर से, अत्यंत भयभीत होकर, उसे देखते ही भाग जाते हैं..!!

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कैरेक्टर ढीला है? (कहानी)

" अचानक, मृगया को अपनी नाज़ुक कमर पर, देव के मज़बूत हाथों की पकड़ महसूस हुई । मृगया भय के कारण कांप उठी और वह कुछ ज्यादा सोचे-समझे उसके पहले ही, रूम का दरवाज़ा बंद हो चुका था । किसी मुलायम पुष्प जैसी कोमल-हल्की मृगया को, देव ने अपने मज़बूत कंधे पर उठाया और वासना पूर्ति के बद-इरादे के साथ, मृगया को बेड पर पटक दिया..!!"

इस कहानी का सटीक और सशक्त अंत दर्शाने के लिए अपने अमूल्य प्रतिभाव देकर मेरा मार्गदर्शन  करनेवाले, सभी विद्वान पाठक मित्रों का तहे दिल से धन्यवाद करते हुए प्रस्तुत है ये कहानी । 

आप पूरी कहानी इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं ।

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html

मार्कण्ड दवे । दिनांक-०६-०६-२०११.

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