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8.2.08

भडासी गुरु यशवंत के फ़ंडे।


कभी कभी ब्लागस्पाट अपने आप में एक चूतियापा लगता है। साली तीन बार टिप्पणी टाईप कर के पोस्ट कर चुका हूं लेकिन टिप्पणी भी लगता है अपने गुरु की तरह है, अड गई तो बस अड गई,
मैने भी सोचा कि टिप्पणी क्यों एक पोस्ट ही जड़े देता हूं। बहराल अपने भडासी गुरु यशवंत भाई की दारु बाज़ी के कुछ फ़ंडे मै भी जानता हूं पढि़ये->
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१.) बिना नानवेज दारू नही।

२.) दारू के लिये कोई भी बहाना बढिया है, वो चाहे गम हो खुशी हो, गुस्सा, भडास, प्यार या कुछ भी नही।
३.) अकेले दारू पीने से बचते है, कम से कम एक साथी तो हो।

४.) दारू के लिये कभी आपसे पैसे निकालने को नही कहेंगे। अपने पैसे से दारू ले कर आते हैं। आप चाहे तो चिकन-मटन ला सकते हैं ।

५.) दारू पीकर रास्ते भूल जाते हैं। (याद है मुझे दफ़्तर छोड कर आप घंटो ग्रेटर नोएडा हाईवे पर भटके थे)

६.) दारू पीकर किसी भोजपुरी गीतकार का भूत सर चढ कर नाचने लगता है, खूब भोजपुरी गीत गाते हैं ४ पेग के बाद।

७.) दारू पीकर धंधे की बात नही।

८.) दारू पीने के लिये साथी ढूंढने के लिये दूरियों के कोई मायने नही। कहीं भी चले जायेंगे।

९.) दारू पीकर एकदम मस्तान हो जाते हैं। नं वन कामेडियन (याद है कुत्तों को कैसे भूंक कर भगाया था। से० १८ में)

अभी के लिये इतना ही बाकी फ़िर कभी...
जय भडास
अंकित माथुर...

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अरे अंकित भाई ,काए कूं पैजामे का नाड़ा खींच रहा है.....

Ankit Mathur said...

डाक्टर साहेब, नाडा कहां खींचा अभी।
ये तो बस यूं ही...

सुशांत सिंघल said...

तो और नाड़ा खींचना किसे कहते हैं ? हद कर दी आपने अंकू डीयर !

सुशान्त सिंहल

देक्खा ! मैं भी ब्लॉग की दुनिया में, भले ही देर से सही, पर टपक ही पड़ा हूं ! ठीक किया ना ?

सुशांत सिंघल said...

तो और नाड़ा खींचना किसे कहते हैं ? हद कर दी आपने अंकू डीयर !

सुशान्त सिंहल

देक्खा ! मैं भी ब्लॉग की दुनिया में, भले ही देर से सही, पर टपक ही पड़ा हूं ! ठीक किया ना ?