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11.10.08

सरदार फ्रेंचकट नहीं रखते तो बेचारे अक्षय कुमार का क्या दोष

मुख्य हैडिंग पढ़कर आप यह ना सोचें कि मैं अक्षय कुमार का फैन हूं और उसकी वकालत कर रहा हूं। ऐसा कोई विशेष मुद्दा भी नहीं है कि मैं दो माह पहले घटित हुए छोटे से विवाद पर आज लिखने बैठ जाऊं। पर आज जब मैंने अपने आस-पास ही एसी खपच्चियों को देखा जिन्हें अपनी दुकान चलाने के लिए दूसरों के फटे में टांग अड़ानी ही पड़ती है। `अड़ानी ही पड़ती है´- से तात्पर्य कि वो नहीं चाहते कि फटे में टांग अड़ाएं, पर बेले बैठे क्या करें, करना है कुछ काम। अब कुछ काम नहीं तो यही सही। अब ये जितने भी धार्मिक संगठन या अन्य संगठन मान लीजिए जो चल रहे हैं, बिना विवादों के चल पाते? नामुमकिन। अरे भाई दूसरों का हितैषी बनना है, तो पहले आप जिसके हितैषी बनना चाहते हैं, उसके खिलाफ कोई कर्म करवा दीजिए और फिर उसी के पक्ष में खड़े हो जाइए। आप उसे किसी न किसी प्रकार जाहिर तो करवाना चाहेंगे ही कि उस व्यक्ति विशेष की, संगठन, जाति अथवा समाज की इज्जत केवल आपकी इज्जत है।

हां तो बात चल रही थी- सरदारों की फ्रेंचकट की (यहां मैं किसी सरदार विशेष पर टिप्पणी नहीं कर रहा, केवल कॉमेडी पुट है, गंभीर ना लें)। बेचारे अनीस बज्मी ने इतना पैसा खर्च कर अच्छी फिल्म बनाई `सिंग इज किंग´। पर गलती रह गई। अक्षय कुमार पर फ्रेंच कट ज्यादा सूट करती है, सो रखवा दी। इतनी छोटी सी बात पर पंजाब में सिखों ने विरोध कर दिया। किसी भी आम सिख को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अक्षय फ्रेंचकट रखे, पूरी दाड़ी रखे अथवा क्लीन शेव ही क्यों न हो जाए। उसे इसी बात की खुशी थी कि `सिंग को किंग´ बना दिया गया है। पर कुछ लोग जिनकी दाल रोटी ही ऐसे विवादों से चलनी है, अपना नाम भी जनता को याद रखवाना है, सो कर दिया हंगामा। मैं भी ऐसे पचासों सिखों को जानता हूं जिन्होंने अपने केश कटवा रखे हैं। जिंदगी में एक बार भी शेव नहीं रखी। फिर अक्षय ही अपराधी क्यों।

अच्छा खपच्चियों का दूसरा वाकया- बहुत पुरानी बात है। बेचारे सन्नी देओल ने भी गलती कर दी। अमीषा से शादी कर ली। अब अमीषा ठहरी मुस्लिम और अपना सन्नी प्योर जट। अब यह तो नॉर्मल बात है और हर कोई जानता है कि लड़की जिस घर में ब्याही जाती है, वहां के रीति-रिवाज उसे अपनाने ही पड़ते हैं। तो अमीषा ने मांग में सिंदूर लगा लिया तो कौनसा तूफान आ गया लेकिन नहीं। इन समाज के चंद ठेकेदारों ने वहां भी विरोध कर दिया। मुस्लिम लड़की की शादी जट से नहीं हो सकती और हुई भी तो वह मांग नहीं भर सकती। अरे भई मनोरंजन को मनोरंजन की दृष्टि से देखो। उसे क्यों साम्प्रदायिकता का जामा पहनाते हो।

खपच्चियों का तीसरा वाकया- जोधा-अकबर का। बेचारी राजपूत सभा को कोई नहीं पूछता था। जब से जोधा-अकबर का विवाद हुआ। कम से कम आशुतोष गोवारिकर को तो मालूम चल ही गया कि कोई सभा भी है। हो सकता है रितिक को भी मालूम चल गया हो, ये सभा वाले और क्या चाहते थे। अपनी पकड़ कहीं तो मजबूत करनी है। तो फिल्म के कंधे पर बंदूक रखकर क्यों चलाई। क्या समाज में और सभी मुद्दे मर गए हैं, जिन पर आप बहस नहीं कर सकते अथवा सुधार नहीं कर सकते। क्या हिन्दुस्तान से गरीबी बिल्कुल मिट गई है। क्या हिन्दुस्तान का हर बच्चा रात को खाना खाकर सोता है। क्या हर आदमी के सिर पर छत है। क्या हर बच्चे को पूरी शिक्षा मिल रही है। पाकिस्तान हमारे खिलाफ कितने षड़यंत्र कर रहा है, उसके विरोध में ही नारेबाजी कर देते तो हो सकता है ऐसा ना हुआ होता कि पूरे देश में आपकी आवाज गूंजती पर कम से कम जिस जिले में अथवा रा’य में आपने विरोध जताया वहां के लोगों में देशभक्ति और हिलोरे मार ही देती। पर ऐसा करते तो आशुतोष जी, रितिक जी और ऐश्वर्या तक को कैसे पता चलता कि हम अभी जिंदा हैं। हिम्मत है तो के।आसिफ कृत `मुगल-ए-आजम´ का विरोध करके दिखाते। क्या उस समय राजपूत पैदा नहीं हुए थे। क्या अब ही जाति के प्रति प्यार उमड़ा। मैं इतना तो जानता हूं कि मेरे जितने राजपूत मित्र हैं, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है। वे मात्र जाति के भय से थियेटर में फिल्म देखने भले ना गए हों, परन्तु घर पर सीडी पर अवश्य हम लोगों ने साथ में ही फिल्म देखी है।

खपच्चियों का चौथा वाकया - ऐसे वाकये तो हजारों मिल जाएंगे। जिसमें आपने मनोरंजन की दृष्टि से कुछ सामग्री प्रस्तुत कर दी हो। उसे अधिक तूल देना उचित नहीं रहता। मोना सिंह और हरभजन सिंह का ही मामला ले लें। ऐसा नहीं है कि मोना या हरभजन भगवान श्रीराम के बारे में प्योर दुर्भावना ही रखते हैं। अगर हरभजन गुरुनानक को मानते हैं तो मैं यह मान सकता हूँ कि वो श्रीराम के बारे में भी गलत विचार नहीं रखते। और मोना यदि अपने धर्म में किसी भी देवता को मानती है तो मैं यह पूरे जोर के साथ कह सकता हूं कि वो भी राम के बारे में गलत विचार मन में ला ही नहीं सकती। उन्होंने किसी रियलटी शो के दौरान यदि रावण-सीता के गेटअप धरकर कुछ डांस कर दिया तो मैं तो उसे सदैव केवल मनोरंजन की दृष्टि से ही देखूंगा। लेकिन विहिप को न जाने क्यों यह बुरा लगा। और मुझे यह भी मालूम है कि जिस किसी भी विहिप पदाधिकारी ने इन दोनों के विरुद्ध मामला दर्ज करवाया है, उसने स्वयं ने यह डांस नहीं देखा होगा। यहां मैं यह जरूर बताना चाहूंगा कि मैं प्योर हिन्दुवादी हूं जो राम का परम भक्त हूं, उसके बावजूद मैंने उनके द्वारा मांगी गई `सॉरी´ को ही देखा।

इस सब वाक्यों में मैंने जिस सिख, राजपूत व मुस्लिम तथा हिन्दू जाति के बारे में जिक्र किया, वह पूरी जाति विशेष के बारे में नहीं है। यह लेख केवल उस जाति में बैठे उन चंद खपच्चियों के विरुद्ध ही लिखा गया है। मेरी इन सभी जातियों और धर्मों में पूर्ण आस्था है। मेरे इन सभी जातियों से लगभग बहुत से मित्र हैं। मेरा यह लेख केवल उन फटे में टांग अड़ाकर अपनी दुकान चलाने वालों के विरोध में है। फिर भी लिखना मेरा धर्म था और उसको अच्छा बताना, विरोध-आलोचना करना आपका धर्म। इस लेख का उद्देश्य किसी की धामिüक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कदापि नहीं है, फिर भी यदि यह दृष्कृत्य हुआ है, तो मैं क्षमाप्राथीü हूं। यह पूरा लेख मैं बिल्कुल भी नहीं लिखता, अगर मुझे मालूम नहीं होता कि एक खपच्ची मेरा लेख पढ़ रहा है। मैं जिसे पढ़ाने के लिए यह लिख रहा हूं, वह इसे तन्मयता के साथ पढ़ रहा है। यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। अगर वह खपच्ची स्वयं को पहचान गया है, तो यह जरूर जान ले कि फालतू की बहस अथवा खपच्ची के लिए ना तो लोगों के पास समय है और ना ही आपके पास होना चाहिए। आप दुकान अवश्य चलाइए, आपको पूरा अधिकार है, परन्तु सौहाद्रü का माहौल बिगाड़कर, एक-दूसरे को लड़वाकर, कदापि नहीं।

- संदीप शर्मा http://dard-a-dard.blogspot.com/

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