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9.2.08

सेल्समैन हो गए हैं आज के पत्रकार !! ...कुछ खबरें

पहले कुछ सूचनाएं, पत्रकारों की आवाजाही से संबंधित....

--भरत कपाड़िया जागरण व टीवी 18 के नए हिंदी बिजनेस डेली के सीईओ व मैनेजिंग एडीटर होंगे। ये खबर एक साइट से चार दिन पहले ही मिली पर इसे डाल नहीं पाया।
--वीर सिंघवी की बेआबरू होकर विदाई तो पुरानी खबर हो गई है पर दूर दराज के भड़ासियों को बता दें कि एक नए न्यूज चैनल को लांच करने की जिम्मेदारी लेकर गए वीर सिंघवी को प्रबंधन ने चैनल लांच से पहले ही बहरिया दिया। बाद में एक प्रेस कांफ्रेंस कर दोनों पक्षों ने इसे सम्मानपूर्ण विदाई और जाने क्या क्या कहकर विवाद शांत करने की कोशिश की पर मार्केट में इससे पहले हल्ला तो फैल ही चुका था।
--दैनिक जागरण, नोएडा में सेंट्रल डेस्क के इंचार्ज विष्णु त्रिपाठी अब तरक्की पाकर सह संपादक बन गए हैं। सीनियर जर्नलिस्ट विष्णु त्रिपाठी इससे पहले आईबीएन 7 व उससे पहले दैनिक जागरण लखनऊ में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं।
--पूजा प्रसाद ने आईएनएस छोड़कर अब हिंदी सर्च इंजन और न्यूज पोर्टल रफ्तार डाट काम को बतौर असिस्टेंट कंटेंट एडीटर ज्वाइन कर लिया है।

((उपरोक्त कई सूचनाएं आपमें से कइयों को पता भी होंगी। अगर पत्रकारों की आवाजाही व तरक्की डिमोशन की सूचना आपके पास भी हो तो आप इसे भड़ास पर डायरेक्ट पोस्ट कर सकते हैं। बस ये ध्यान रखें, सूचना पक्की हो और आप अपने ओरिजनल नाम से ही पोस्ट करें।))
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फ्रस्टेशन और उल्लास का मौसम है पत्रकारों के लिए
एक खबर ये है कि इनक्रीमेंट व प्रमोशन के पिछले महीने का रिजल्ट इस महीने आते ही प्रिंट मीडिया जगत में भूचाल आया हुआ है। कोई रो रहा है, कोई गा रहा है, कोई चुपचाप है, कोई स्तब्ध है, कोई शून्य में निहार रहा है, कोई घर बैठ गया है, कोई नये शहरों की यात्रा पर निकल चुका है, कुछ ने पुराने संबंधों को जिंदा करना शुरू कर दिया ....। मतलब, जिसकी जैसी गोटी बैठी, वैसी मुख मुद्रा बनाए है। कई साथियों के फोन मेरे पास आए। दहाड़े मार रहे थे। बास को इतना तेल लगाया लेकिन साले ने क्या रिजल्ट दिया, कुच्छ नहीं पैसा बढ़ा। दो हजार रुपये का बढ़ना भी कोई बढ़ना होता है। फ्रस्टेशन इतना है भाईसाहब की अभी कोई नौकरी मिले तो छोड़ दूं.....। आप अपने में मन में झांकिए, और देखिए। बताइए आप किस स्थिति में है। वैसे, मुझे याद आता है कि इन सब चूतियापों को लेकर पहले मैं भी बहुत पजेसिव हुआ करता था, उसका इतना क्यों बढ़ गया और मेरा इतना क्यों रह गया, उसका पद क्यों बढ़ गया मेरा क्यों नहीं बढ़ा.....पर ये सब चूतियापा है, आपको एक छोटे खांचे, सांचे में सोचने व जीने को मजबूर करने वाला।

क्या आजकल के पत्रकार वाकई सेल्समैन हो गए हैं, जैसा कि प्रभाष जोशी कहते हैं....
आप संपादक हो जाएं या सह संपादक या सहायक संपादक या उप संपादक.....ये शब्द आपके साथ नहीं जाने वाले। कल ही तो दिल्ली पुस्तक मेले में प्रभाष जोशी ने कहा कि आज के पत्रकार सेल्समैन हो गए हैं और मीडिया हाउस पूंजी इकट्ठा करने वाली दुकानें। तो भई, सेल्समैनी में पद व पैसे की मार तो होनी ही चाहिए, इसी के लिए जीना मरना होना चाहिए। .....पर हममें से कई सारे दिल से सेल्समैन नहीं हैं। ऐसे लोगों को ज्यादा कष्ट होता है, कि किस तरह सेल्समैन प्रमोट होकर मैनजर हो रहे हैं और एक असली पत्रकार को चूतिया व स्लो व पिछड़ा बताकर पीछे रहने के लिए, फ्रस्टेट होने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऐसे सच्चे दिल पत्रकारों को सलाह है कि वे वाकई इस सेल्समैनी वाली पत्रकारिता को बाय बाय कह दें और जब सेल्समैनी ही करनी है तो अपनी सेल्समैनी करिए, अपना धंधा करिए, अपनी कंपनी खड़ी करिए, अपना कोई काम कीजिए......। जितना पैसा इस वक्त पा रहे हैं, अपने काम को करने में इससे ज्यादा पाएंगे, ये मेरी गारंटी है। चूतियों की फौज में खामखा फ्रस्टेट हो रहे हो। अगर कोई दिक्कत हो तो मुझे बताओ, मेरे पास तो खुद का कामधाम शुरू करने संबंधी इस वक्त ढेर सारे नुस्खे हैं.....।

याद रखिए, धूमिल की लाइनें हैं जिससे भाव ये निकलता हैं...पार्टनर, अगर ज़िंदगी जीने के पीछे कोई तर्क नहीं है तो रामनामी बेचने और रंडियों की दलाली करने में कोई फर्क नहीं है क्योंकि दोनों से पैसा आता है.....

मतलब, ज़िंदगी के एक-एक दिन किसी तार्किक चूतियापे में नष्ट करते रहने के बजाय ज्यादा अच्छा है भटकिए और भोगिए।

फिर मिलते हैं...
जय भड़ास
यशवंत

2 comments:

चंद्रभूषण said...

फर्स्ट क्लास! फाड़ के रख दिया एकदम!

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अरे ये क्या ? फ़ाड़ा नही भइया फ़टी हुई के लिये धागा दिया है सिलने के लिये.....