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6.5.08

जिन्‍दगी तेरे नाम रही

तेरी गलियों में हरदम
हस्‍ती अपनी बदनाम रही
हजार कोशिश की मगर
हर कोशिश नाकाम रही
तुम बिन सूना हर दिन बीता
और उदास हर शाम रही
फिर भी जा ओ बेखबर
जिन्‍दगी तेरे नाम रही

भागीरथ

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अब मैं ये सोच रहा हूं कि ये कविता किसकी गर्लफ्रेंड को सुनाऊं कि देखो तुम्हारे लिये मेरा भाई कैसी-कैसी कविताएं लिख रहा है.....

Anonymous said...

रुपेश भाई कहीं मेरी गर्लफ्रेंड के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना. बड़ी मुश्किल से मिली है उ भी भाग जायेगी ;-)
भागीरथ भाई अच्छी बन पड़ी है.
जय जय भडास.