कई दिनों से बिलकुल चुपचुप, गुमसुम रहते-रहते आज जब गुनगुनाया तो पूरी लाइनें याद नहीं आ रहीं थीं। काफी परेशान रहा। घर-बाहर के काम करता रहा, आफिस के काम निपटाता रहा पर जुबां से वो लाइनें और धुन उतर न रहीं थीं। आखिर गूगल पर हिंद में सर्च मारा....वो रुला कर....। उम्मीद न थी कि रिजल्ट आयेगा, पर धन्य हो हिंदी और अपने हिंदी वाले। नवाज़ साहब की इस गजल को एक ब्लागर ने अपने ब्लाग पर सजा रखा था। वो ब्लाग है संकलन नाम से। कई अशुद्धियां थीं। ठीक करने की कोशिश की है। वैसे, ये ब्लाग भी अभी नया ही है। ब्लागर की प्रोफाइल भी नहीं है, पर कोशिश अच्छी है। वाकई, मुझे आज अपने हिंदी ब्लागरों पर गर्व है, दिल से कुछ ढूंढा और मिल गया। लीजिए, मेरे अरमान तो पूरे हो गए, मैं अभी गुनगुनाते हुए ही इस पोस्ट को डाल रहा हूं। आप भी आनंद लीजिए.....
वो रुला कर हँस न पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
भूलना चाहा कभी उसको अगर
और भी वो याद आया देर तक
ख़ुद ब ख़ुद बे-साख्ता मैं हंस पड़ा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक
कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनू जगमगाया देर तक
-नवाज़ देवबंदी
साभारः संकलन
30.6.08
वो रुला कर हंस न पाया देर तक, जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 0 comments
करुनाकर का एकाउंट नम्बर देने के लिए शुक्रिया
भाई यशवंत , मैंने करुणाकर के बारे पढ़ा। बहुत दुःख भी हुआ की एक होनहार किस तरह से मौत से लड़ रहा है। लेकिन मैं इस बात से खुश हूँ की भड़ास के साथियों ने किस तरह से करुनाकर के मदद के लिए पहल की है । मैं भी औरंगाबाद के अपने भाइयों के साथ मिलकर करुनाकर खाते मैं पैसे डालने का निशचय किया है । एक-दो दिन यह कम पूरा हों जाएगा। मैं डॉक्टर रुपेश्जी का भी बहुत ही शुक्रगुजार हूँ , जिन्होंने करुनाकर के लिए मानवता का परिचय दिया है। अमित भी साधुवाद के पात्र है। अब अगले पोस्ट में फिर बातें होंगी।
जय भड़ास
Posted by aditya 1 comments
मंहगाई पर वानर प्रयास
देश में मंहगाई इस समय अपनी रफ्तार का जलवा दिखा रही है। इस रफ्तार के वशीभूत सरकार भी अपना जलवा दिखा रही है। रोज़ ही किसी न किसी मंत्री, सरकारी प्रवक्ता का बयान आ जाता है कि मंहगाई पर काबू करने के प्रयास किए जा रहे हैं और शीघ्र ही इससे निजात,राहत मिलने की सम्भावना है। सरकार की ऐसी बयान वाजियाँ देख कर बहुत पुरानी पर ऐसे हालातों पर सटीक बैठती एक कहानी याद आ जाती है।
कहानी एक जंगल की है, एक बन्दर की है। होता ऐसा है कि जंगल में सालों-साल से शेर का ही शासन चला आ रहा होता है। लोकतंत्र की खुशबु सूंघ कर जंगल के तमाम सरे जानवरों ने फ़ैसला किया कि अब जंगल में भी चुनाव होना चाहिए। हमारे बीच के किसी जानवर को भी राजा बनने का अवसर मिलना चाहिए। जानवरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शेर से मुलाकात की और अपनी बात उसके सामने रखी। शेर को बुरा तो लगा किंतु राजशाही के सामने सिर उठाते लोगों की ताकत देख कर वह भी चुनाव करवाने को तैयार हो गया।
जानवरों ने सर्वसम्मति से अपना एक नेता चुनने का मन बनाया जिससे शेर को आसानी से हराया जा सके। लम्बी मंत्रणा और बैठक के बाद तय किया गया कि बन्दर को चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाए। (बन्दर की विशेषताओं की चर्चा यहाँ नहीं करते हैं) सरे जानवरों ने पूरी ताकत प्रचार में लगा दी। मतदान का दिन आया, सरे जानवरों ने मन से बन्दर के पक्ष में वोट डाले। परिणाम जैसा कि तय था राजा शेर हार गया।
बन्दर ने पूरे ताम-झाम के साथ सत्ता संभाली और जंगल पर शासन करने लगा। एक दिन शेर ने आम जानवर की तरह टहलते हुए अपने भोजन के लिए बकरी के बच्चे का शिकार कर डाला। बकरी बड़ी परेशां, उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्या न करे? बकरी हर कोशिश के बाद जब परेशान हो गई तो उसने अपने राजा बन्दर के सामने मदद की गुहार लगाई। जब बन्दर ने सुना कि बकरी के बच्चे को शेर उठा कर ले गया है तो उसके हाथ-पैर फूल गए। चूँकि वह सारे जानवरों के वोट से चुना गया था, सत्ता का मजा भी नहीं खोना चाहता था इस कारण मरता क्या न करता बकरी के बच्चे को शेर से छुडाने के लिए चल पड़ा।
बन्दर डर भी रहा था और बकरी को दिखाना भी चाहता था कि वह बिना डरे उसके बच्चे को शेर से छुडा लाएगा। बन्दर कभी इस पेड़ पर कभी उस पेड़ पर। कभी उछल कर एक पेड़ पर कभी उछल कर दुसरे पेड़ पर चढ़ जाता। कई घंटों तक बन्दर इधर से उधर पेड़ पर छलांग लगते हुए सारे जंगल में कूदता रहा। जहाँ शेर होता वहाँ नहीं जाकर यहाँ वहाँ उछलता रहा। नीचे बकरी अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर परेशान बन्दर के साथ-साथ दौड़ती रही। आख़िर जब उसने देखा कि बन्दर बस इधर से उधर छलांग ही लगा रहा है तो बकरी ने मिमियाते हुए कहा "राजा साहब, हमारे बच्चे को बचा लो, नहीं तो शेर उसको मार डालेगा।"
बन्दर डर भी रहा था और कुछ न कर पाने की झेंप भी थी, उसने बकरी पर रोब झाड़ते हुए डांट कर कहा- "क्यों बेकार में शोर कर रही हो? क्या मैं कोशिश नहीं कर रहा हूँ? तुम्हारे बच्चे को छुडाने के लिए सारे जंगल में कूदता घूम रहा हूँ। कोशिश में तो कोई कमी नहीं है, मौका मिलते ही छुडा लूंगा। तुमको लगता है जैसे ये आसान काम है।" बन्दर की डांट के बाद बकरी खामोश हो गई। चुपचाप अपने घर लौट कर अपने बन्दर राजा और अपने भाग्य को कोसने लगी। उधर बकरी का बच्चा मदद के आभाव में शेर के जबडों में फंसा दम तोड़ गया।
सरकार का यही रवैया है, जनता जबडों फंसी पिस रही है, सरकार, मंत्री इधर से उधर उछल-कूद कर रहे हैं। प्रयास कुछ भी नही हो रहे हैं और दिखाया ऐसे जा रहा है जैसे बहुत मेहनत हो रही है। आम जनता का बकरी के बच्चे सा हाल है।
Posted by राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर 0 comments
Labels: आर्थिक
उल्लू के बाद गधा
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया।
इब समझ में आया की आज कल यो घंने सुथरे सुधरे सपने कित सै आन लग रे सें !कल अपना उल्लू होना याद आया तो सपने में साक्षात् लक्ष्मी जी म्हारे पै रात भर भूतनी की तरीयाँ सवार रही !
क्यों की हम उल्लू तो , लक्ष्मी जी की बी। एम्. डब्लू. कार हैं ! और भाई पंडीत जी न्यूं समझ ल्यो की रात भर मजा आ गया और भाई जब सवार सुथरा हो तोसवारी कराने का भी आनंद आवै सै और लक्ष्मी जी तें सुथरी और कौन मिलेगी सो आप भड़ासियोंकी कृपा से बड्डे मौज के सपने आवन लाग रे सें ! जय हो भाई पंडीत जगदीश जी त्रिपाठी की ना आप उल्लू बनाते और ना हमें यो लक्ष्मी जी को अपने ऊपर सवारी कराने का परम सौभाग्य प्राप्त होता
क्यों जलन होने लग गई ना भाई आप भी अपनी लक्ष्मी जी को ज़रा इस सपने के बारें में बता कर तो देखो पर सावधान ! अपनी कोई गारंटी नही सै ! की वो किस तरियां रियकट करेगी ! क्यों की एक लक्ष्मी जी (घरवाली) के रहते , दूसरी को सवारी कराने मे किम्मै खतरा सा भी है ! अगर कही जूते चप्पल खा बैठे तो अपनी जिम्मेवारी नही सै !
और म्हारे ब्लॉग पर इसका डिसक्लेमर भी दे राख्या सै की म्हारी सलाह मानने के पहले विशेषज्ञ से सलाह कर लें ! और भाई त्रिपाठी जी आपने तो म्हारी फोटू कै साथ साथ यो पढ़ भी लिया होगा ! भाई म्हारा तो यो उल्लू बनना म्हारा जनम सार्थक कर गया बस यारों पूछो मत , ख़ुद करके देखा ल्यो ! इब थारा थम सोच समझ ल्यो और घर जाके,हिम्मत हो तो बात कर लियो !
और इब पं. सुरेश नीरव जी आज रात का तो आपने नशा ही उतारने का मन बना राख्या सै ! जो इन भडासी भाइयां नै गधा बतान लाग रे हो ! पर वो कहते हैं ना की " जहाँ ना पहुंचे रवि , वहा पहुंचे कवि" !आपका गधा पुराण पढ़ कर पहले तो लगा की पंडितजी से हमारी खुसी बर्दास्त नही हो रही दिखै , और आज सारी रात हम तो गधे बने रहेंगे और कुम्हार म्हारी ऎसी तैसी करता रहेगा ! सही में पहले तो हम आपकी सलाह पर चोंक उठे की भाई यो आदरणीय कवि महाराज की आँख्यां मे हमने कुणसा काजल पाड़ दिया, जोइतनी जल्दी दोस्ती से दुशमनी पर आ गए !
और हमको तुंरत क्रिशन चंदर जी के गधे की याद आगई इतना असाधारण , अति महत्व पूर्ण गधा ! ये गधा पंडीत नेहरू जी से भी मिल आया था ! और यार पंडितजी इस गधे ने आगे क्या क्या किया ? बस पूछो ही मत ॥ पर आप तो म्हारेसाथी और प्रेरणा श्रोत हो तो बताना ही पडेगा ! हम कोई इक्कले इक्कले ही थोड़े मजे लेंगे ! आगे ... आगे ... आगे.. यार कुछ लिखने में जी घबडा रहा है ! म्हारी लक्ष्मी आस पास ही मंडरा रही है ! कही पढ़ लिया तो सपने तो धरे रह जायेंगे और आज रात के डिनर के भी वांदे पड़ जायेंगे !पर क्या करूँ ? आप लोगों के प्रेम के सामने ये रिस्क भी उठा रहा हूँ ! अगर कल तक मेरी कोई ख़बर नही मिले तो समझ लियो के मैं लक्ष्मी जी के हत्थे चढ़ लिया !
हाँ तो, आगे इस गधे का एक लखपति सेठ ( आज कल करोड़पति ) की नखरे दार छोरी पर दिल आ गया ! और ये गधा भी बिचारा रोमांटिक मूड मे आ गया ! अब जो, भाई श्री यशवंतजी, श्री जगदीशजी त्रिपाठी जी,प. नीरव जी , डा. श्रीवास्तव जी (और मैं तो हूँ ही) जैसे बड़े गधे हैं , उनको तो आगे की कहानी मालूमहोगी और भाई जो थोड़े छोटे गधे हैं उनका मार्ग दर्शन अपने प. त्रिपाठी जी कर ही देंगे !अच्छा तो इब मैं तो जा रहां हूँ गधा बनने , आपकी इच्छा हो तो आप जानो !
Posted by ताऊ रामपुरिया 0 comments
करुणाकर का एकाउंट नम्बर देने के लिए shukriya
भाई यशवंत , मैंने करुणाकर के बारे पढ़ा। बहुत दुःख भी हुआ की एक होनहार किस तरह से मौत से लड़ रहा है। लेकिन मैं इस बात से खुश हूँ की भड़ास के साथियों ने किस तरह से करुनाकर के मदद के लिए पहल की है । मैं भी औरंगाबाद के अपने भाइयों के साथ मिलकर करुनाकर खाते मैं पैसे डालने का निशचय किया है । एक-दो दिन यह कम पुर हों जाएगा। मैं डॉक्टर रुपेश्जी का भी बहुत ही शुक्रगुजार हूँ , जिन्होंने करुनाकर के लिए मानवता का परिचय दिया है। अमित भी साधुवाद के पात्र है। अब अगले पोस्ट में फिर बातें होंगी.
Posted by aditya 1 comments
करुणाकर की इस तरह मदद करें
फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे गरीब परिवार का होनहार छात्र करूणाकर जो नोएडा में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है, की मदद के लिए कई लोग आगे आए हैं पर मदद किस तरह करना है, यह अभी तक तय नहीं हो पा रहा था।
करुणाकर के मित्र और पत्रकार अमित द्विवेदी से बातचीत के बात जिस नतीजे पर हम लोग पहुंचे हैं, वो इस प्रकार है....
1- करुणाकर के इलाज के लिए डा. रूपेश ने जिम्मेदारी उठाई है। करूणाकर उनके यहां परिवार के किसी एक सदस्य के साथ मुबंई जाएगा और एक दिन रुकने के बाद दवा लेकर वापस आ जाएगा। डाक्टर रूपेश के मुताबिक वे तीन महीने की दवाएं देंगे और इसमें करुणाकर को ठीक हो जाना चाहिए। डा. रूपेश ने करुणाकर से कई राउंड में उसके मर्ज के बारे में बात की है।
2- करुणाकर को आर्थिक मदद की जरूरत है। इसके लिए जो लोग मदद देना चाहें, वो सीधे करुणाकर के बैंक एकाउंट में रकम डाल दें। करुणाकर अपना बैंक एकाउंट आराम से आपरेट कर रहा है, तो मदद भी उसे सीधे पहुंचाई जानी चाहिए ताकि किसी तरह का कोई विवाद, शक या गलतफहमी न पैदा हो। करुणाकर का बैंक एकाउंट इस प्रकार है...
Karunakar Mishra
State Bank of India
AC No. 30037096026
यहां यह भी उल्लेख करते चलें कि करुणाकर पहले से ही कर्ज में हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए एजुकेशन लोन ले रखा है। अगर साढ़े तीन सौ भड़ासियों ने सिर्फ एक एक हजार रुपये डाल दिए तो कल्पना करिए छोटे से प्रयास से कितनी ज्यादा रकम इकट्ठी हो जाएगी।
3-करुणाकर के पिता को जो फर्जी तरीके से फंसाकर जेल में बंद कराया गया है, उन्हें छुड़ाने के लिए मीडिया के साथी अपने अपने स्तर पर लगे हुए हैं। पर इसमें अब भी काफी कुछ करने की जरूरत है। लखनऊ के पत्रकार साथियों से अनुरोध है कि वे प्रदेश प्रशासन के संवेदनशील अफसरों और नेताओं को इस प्रकरण के बारे में जानकारी देकर करुणाकर के पिता ओंकार मिश्रा को गोंडा जेल से रिहा कराने का प्रयास करें ताकि पिता अपने पुत्र का देखभाल करने के साथ साथ उचित इलाज भी करा सकें।
4- करुणाकर का जन्मदिन 3 जुलाई है। 3 जुलाई को हम सभी साथी करुणाकर के नोएडा स्थित घर पर, अगर वो घर पर हुए तो, इकट्ठा होकर उनके जन्मदिन का केक काटेंगे। अगर आप न पहुंच सकें तो अपनी शुभकामनाएं भड़ास के माध्यम से करुणाकर तक पहुंचाएं।
5- इस प्रकरण के बारे में जिन लोगों को अभी तक न पता हो वो कृपया भड़ास पर पड़ी नीचे की पोस्टों को देखें, उसमें करुणाकर के बारे में तफसील से जिक्र किया गया है। करुणाकर के बारे में अन्य किसी जानकारी के लिए आप उनके मित्र अमित द्विवेदी से उनके मोबाइल नंबर 09911045467 पर संपर्क कर सकते हैं।
फिलहाल इतना ही....
जय भड़ास
यशवंत
आभार.
मेरी कविता डर पर टिप्पडी कर मेरा हौसला बड़ाने के लिए पंडित सुरेश नीरव और यशवंत जी का हार्दिक आभार.शशि भूषण द्विवेदी
Posted by shashi 0 comments
आभार
मेरी कविता डर पर टिप्पडी कर मेरा हौसला बड़ाने के लिए पंडित सुरेश नीरव और यशवंत जी का हार्दिक आभार।
शशि भूषण द्विवेदी
Posted by shashi 0 comments
उल्लू और Gadha
भाई वाह पंडितजी,आपकी हाजिरजवाबी के कायल हो गए.बहुत खूब.इसी को कहते हैं सौ सुनार की एक
लुहार की.भाई जगदीश त्रिपाठी का हर्तिरिया देखकर एक शेर याद आगया।
मौत भी इस लिए गवारा है,क्योंकि मौत आता नही आती है।
आपके सुराप्रेम को देखकर तबीयत बाग़-बाग़ हो गई.आपकी शान मे एक शेर अर्ज़ है।
दारु की बात क्या कहू ,उसकी तो याद में,
अपना भी ध्यान मुझको कभी है कभी नही।
इसी तरह भड़ास निकलते रहिये और हमें भडासी टोनिक पिलाते रहिये।
जय भड़ास
Maqbool
Posted by Maqbool 0 comments
करुनाकर की मदद को उठे सैकड़ों हाथ
करुनाकर की स्टोरी को पढ़कर सैकडों लोग उससे जुड़ गए हैं। डॉक्टर रुपेश ने करुनाकर के आयुर्वेदिक इलाज़ का ज़िम्मा उठाया है। जिसके लिए करुनाकर जल्द ही मुंबई रवाना होने वाला है। भड़ास ब्लॉग पर करुनाकर की स्टोरी देखकर कई प्रिंट मीडिया के लोग करुनाकर के गांव जीजीराम पुर पहुँच गए हैं। ग्रामीण इलाका होने के कारन आजकल बरसात से हर तरफ़ कीचड हो रहा है। जिसके चलते रिपोर्टर वहां तक करीबन १० किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे। वहां जाकर सबसे पहले ने करुनाकर के परिवार को ढाढस बंधाया। रिपोर्टर विनोद तिवारी ने वहां से सारी जानकारी लेकर मुझे बताया की किस तरह से एक निर्दोध व्यक्ति एक बुजुर्ग की सेवा करने का फल जेल में रहकर पा रहा है। विनोद तिवारी के अनुसार वसीयत का बैनामा पक्का होता है तो पुलिस ने खुश्की के आधार पर उन्हें ४२० कैसे ठहरवा दिया। इसका मतलब कोर्ट को ज़रूर कहीं ना कहीं से दिग्भ्रमित किया गया है। क्यूंकि जिस बन्दे ने उन पर ये आरोप लगाया है ४२० के केश में उसे अंदर होना चाहिए। लोगों के इस सहयोग sऐ ये उम्मीद बंध गयी है की अब करुनाकर के पित्ता की ज़मानत ज़ल्द हो जायेगी। फिलहाल करुनाकर को भी उम्मीद बाँध गयी है की उसे डॉक्टर रुपेश अच्छा कर देंगे। एक नौजवान के लिए मुझे नही लगता की इससे बढ़कर कुछ और हो सकता है। जो रिपोर्टर करुनाकर के गांव तक गए वो करुनाकर की असली स्थिति का जायजा ले चुके हैं। यशवंत जी जल्द ही एक पोस्ट करेंगे जिसमे हम करुनाकर के आर्थिक मदद के लिए धन कहा जामा करें इसका उल्लेख होगा। वैसे यशवंत जी चाहते हैं की वहां पर करुनाकर को अकाउंट पोस्ट कर दिया जाए जिसमे लोग अपने अनुसार मदद की रकम उसमे डालते रहें। आज सुबह करुनाकर अपनी फरीदाबाद किसी जानने वाले के यहाँ गया हुआ है। और वहां उसका मोबाइल काम नही कर रहा जिस वजह से उसकी मुम्बयी जाने वाली बात कन्वे नही हो पाई है। आगे जो भी प्रोग्रेस होगी उसकी रिपोर्ट हम आपको देंगे।
अमित द्विवेदी
Posted by amit dwivedi 2 comments
Labels: करुनाकर
ढेंचू-ढेंचू प्रणाम।
पं. सुरेश नीरवजी
उल्लू की बातचीत और गधे का गुस्सा ..गजल की शक्ल में यकीनन गधों को पसंद आएगा क्योंकि मुझे तक पसंद आ गया हैं। आपको मेरे ढेंचू-ढेंचू प्रणाम।
अरविंद पथिक
Posted by Arvind pathik 1 comments
Labels: उल्लू
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
कौन है जो फस्ल सारी इस चमन की खा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
प्यार कहते हैं किसे है कौन से जादू का नाम
आंख करती है इशारे दिल का हो जाता है काम
बारहवें बच्चे से अपनी तेरहवीं करवा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
गुस्ल करवाने को कांधे पर लिए जाते हैं लोग
ऐसे बूढे शेख को भी पांचवी शादी का योग
जाते-जाते एक अंधा मौलवी बतला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
जबसे बस्ती में हमारे एक थाना है खुला
घूमता हर जेबकतरा दूध का होकर धुला
चोर थानेदार को फिर आईना दिखला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
चांद पूनम का मुझे कल घर के पिछवाड़े मिला
मन के गुलदस्ते में मेरे फूल गूलर का खिला
ख्वाब टूटा जिस घड़ी दिन में अंधेरा छा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया।
पं. सुरेश नीरव
( त्रिपाठीजी ने मुझे उल्लू कहकर अपनी बिरादरी में शामिल करने की जो उदारता दिखलाई, मैं सपरिवार उनका आभारी हूं। पी.सी. रामपुरियाजी ने उल्लू महात्म बताकर हमें और अपने आप को जिस चतुराई से महिमामंडित किया है,यह काम भी कोई विद्वान उल्लू ही कर सकता है, कोई काठ का उल्लू नहीं। उल्लू की बातचीत सुनकर, गधे को गुस्सा आ गया। पेश है उसका बयान...गजल की शक्ल में। यकीनन गधों को पसंद आएगा और जिन्हें पसंद न आए समझिए वह सचमुच ही गधे हैं। उनके गधत्व को अग्रिम दुलत्ति-प्रणाम। )
Posted by Unknown 1 comments
Labels: गुस्सा गधे को
29.6.08
हम उल्लू हैं
इधर मुझे कई दिनों तक हरटीरिया के दौरे पड़ते रहे.जिन भडासी भाइयों ने इस बीमारी का नाम न मालूम हो वे डा.रूपेश से संपर्क कर सकते हैं.मुझे इसके बारे में सिर्फ उतनी ही जानकारी है,जितनी किसी मरीज को होती है.जैसे फीमेल पर्सन को हिज के हिस्टीरिया का दौरा पड़ता है,ठीक वैसे ही मेल पर्सन को हर के लिए के हरटीरिया का दौरा पड़ता है.सो इधर कई दिनों तक ज्यादातर समय पंडिताइन मुझे अंक में भर कर दौरे के असर को दूर करने के प्रयास करती रहीं.स्वस्थ हुआ तो करुणाकर प्रकरण भीतर तक बींध गया.सो कुछ बात मन में ही रह गई.जो अब प्रकट कर रहा हूं.पहली यह कि नीरव भैया मुझसे बड़े उल्लू हैं.उन्होंने सुरापान के लिए शास्त्रसम्मत प्रमाण देकर मेरी दलील की पुष्टि .उसके लिए तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि छोटे-छोटे मियां,बड़े मियां सुभान अल्लाह.यशवंत भाई ने कहा था कि भाई पीसी रामपुरिया व भाई राजीव का स्वागत करना है.भाई जहां तक रामपुरिया जी की बात है तो मैं कन्फर्म हूं कि वह उल्लू हैं.मैने उनके ब्लाग पर उनकी फोटो देखी है.रही बात राजीव की तो वह भी उल्लू ही होंगे,क्योंकि बकौल उनके वह ३८ साल के हो चुके हैं.अब एक घटना की चर्चा करूंगा.हुआ यह कि बचपन में एक दिन पिता श्री ने मुझे उल्लू कह दिया तो मेरी माता जी उनसे लड़ पड़ीं.बोलीं,मेरा बेटा उल्लू का पट्ठा हो सकता है.उल्लू नहीं.पिता जी इस बात पर बिगड़ गए.माता जी ने फिर जवाब दिया.अभी तुम उल्लू हो क्योंकि बतौर गृहलक्षमी मैं तुम पर सवार रहती हूं.बेचारा बेटा अभी बच्चा है.उसे अभी उल्लू बनाना ठीक नहीं.हालांकि कुछ साल बाद मैं भी उल्लू बन गया.अब मेरे ऊपर गृहलक्षमी सवार रहती हैं.जय भडास
Posted by जगदीश त्रिपाठी 2 comments
सौ सवाल कर गई....
बडी करीब से देखा है
कूडे के ढेर में।
सिसकती है जिंदगी
गरीबी के अंधेर में।
है गन्दगी के बीच वो
जर्जर से झोपडे।
कुत्तों की किस्मत से उनमें
रास्ते हैं बडे -बडे।
उन्ही में देखा उस तरुणी को
जो कोने में सिमटी थी।
रूप माधुर्य की मल्लिका
फटे कपडो में लिपटी थी ।
बाप बूढा था हुआ
बेटी के भार से ।
कमर भी झुकी थी
शायद दहेज़ के मार से ।
पिता ने दामाद
अपनी उम्र का ढूंढा था ।
पैसे ने उसके अरमानो को
पैरों तले रौंदा था ।
फ़िर देखा उस सनकी को
जो पति उसका भावी था ।
प्यार नही उसकी आंखों में
बस हवस ही उस पर हावी था ।
गिंजता था जैसे वो
बेजान खिलौना थी ।
केवल दौलत के कारण ही तो
वो देवी भी बौना थी ।
हामी भी न पूछा
और पल्लू थमा दिया ।
बेटी को इस बाप ने
आख़िर ये कैसी सज़ा दिया।
बेमेल झोपडे की
ये बेमेल विवाहें ।
देख दिल रोता रहे
और निकलती रही आहें।
पुकार कर उसे एकांत में बुलाया
फ़िर मैंने उसे कुछ यूँ समझाया
मन से इसे पति स्वीकार कर सकोगी?
यदि नही! तो फ़िर विरोध क्यों नही करती हो?
समाज के चोंचलों से आख़िर क्यों डरती हो?
सुन मेरी बातें कहीं खोने लगी वो
फ़िर आँचल में मुंह छुपा कर रोने लोगी वो
उठी जो नज़र तो कमाल कर गई
जवाब मैंने माँगा था
सौ सवाल कर गई....
Posted by सूचना एक्सप्रेस 1 comments
ताऊ की पाती करुनाकर के नाम
करुणाकर की वजह से दो तीन दिन तैं भडास परिवार मैं , बडा सन्नाटा सा
हो रह्या सै ! और भई क्युं ना होगा ? यो परिवार ही बण्या सै, एक दुसरे के
सुख दुख: बाटनै के लिये । अरे भई , करुणाकर बेटे, चल मेरे यार उठ.. खडया हो ।
तेरे के हो सकै सै ? अरे तेरे लिये, यो तेरे सारे चाचे, ताऊ खडै हो लिये सैं ।
तेरी बात द्विवेदीजी नै सबको बताई । और भाई यशवंतजी खडे हो लिये थारै बापू को
बाइज़्ज़त बाहर ल्यावन खातिर और पं. जगदीशजी त्रिपाठी खडे हो लिये सैं तेरे
लिये भगवान से दुआ मांगण के लिये । बेटे न्युं समझ लिये कि यो पन्डत त्रिपाठी
घण्णा जिद्दी दिखै सै । यो भगवान की भी ऐसी तैसी कर देगा थारी खातर ।
और भाई सबसे बडे अपने डा. रुपेशजी श्रीवास्तव जो साक्षात भगवान धनवन्त्री सैं ।
ये खडै हो लिये, तेरे उपचार की खातर । इब भी तन्नैं कुछ कसर सै के ?
और भाई डागदर साब सही बोल रहे हैं एम्स आला के बारे में । यदि एम्स वालॊं की
चलती तो यो थारे इस ताऊ की ओपन हार्ट सर्जरी आज से २० साल पहले ही
कर चुके होते । और भाई यो बैठया थारा ताऊ जीता जागता आज भी । और केवल बैठया
ही कोनी बल्कि आज भी अच्छे अच्छों की ऐसी तैसी करता है ।
देख बेटे करूणाकर , मन मे काची (कमजोरी) तो तू ल्याना मत । मन नै राख
मजबूत और बाकी तेरे लिये यो पूरा का पूरा भडास परिवार खडया सै । हंस मेरे यार ..।
इब देख भई , तन्नैं हंसी नी आंदी ते यो डाक्दर और ताऊ की बातचीत सुण..
एक बार ताऊ के सर्दी जुकाम हो गया और ताऊ के जेब मे धेला कोडी (रुपिये पैसे)
किम्मै था कोनी । और ताऊ पहुंच लिया एक डाक्दर धोरै .....
ताउ- अरे डाक्दर साब .. म्हारे जुकाम हो राखी सै । कुछ इलाज बताओ ।
डाक्दर-- ताऊ न्युं करिये.. १५ रुपिये का दुध. और उसमै १० रुपिये के छूहारे (खारक)
डालके, सामने वाली चाय की दुकान पै, खूब ओटा के और ऊकडू बैठ कर और फ़ूंक
मार के पी लिये । तेरी जुकाम दूर हो ज्यागी ।
ताऊ-- तो भई ..डाक्दर ल्या २५ रुपिये देदे ।
डाक्दर-- तो ताऊ .. थारे धोरे (पास मे) के सै ?
ताऊ-- अरे डाक्दर साब , म्हारे धोरे तो केवल ऊकडू और फ़ूंक सै ...।
तो देख भाई करुणाकर , खडा हो जा, और हंस मेरे भाइ.. इन विपरीत परिस्थितियों
मे तो कोई महामानव ही हंस सकता है । और ऐसा मोका भी ईश्वर केवल
महा मानवों को ही देता है । और तू महा मानव ही तो है । अगर तू साधारण आदमी
होता तो, ये मोका तुझे थोडे ही मिलता ।
सारे भडासियों की दुआएं तेरे साथ हैं ।
Posted by ताऊ रामपुरिया 1 comments
28.6.08
उसके चेहरे पर आयी मुस्कराहट ने मुझे खुश कर दिया
मुझे लगा की मैं अकेला दुखी हूँ। इसलिए जो मन में आया लिखा पर अब खुश इसलिए हूँ क्यूंकि भड़ास के मध्यम से जिस तरह से लोगों ने करुनाकर को जो हिम्मत दी है उसे शायद ही कोई दे पता डॉक्टर रूपेश ने उससे बात करके उसका सारा दुःख ही दूर कर दिया। मुझसे हर कोई पूछ रहा है की अमित जी आप अकेले नही हैं हम आप की मदद करना चाहते हैं। पर बता दूँ आपका सहयोग और प्यार के जो बोल थे उन्होंने ही मुझे इतना आनंदित कर दिया है की किसी और मदद को मँगाने का दिल भी नही कर रहा है। मैं चाहता हूँ करुनाकर अपने पापा से मिल जाए और मेरी कोई इच्छा नही है। एक बार करुनाकर ने मुझे फ़ोन करके कहा था भैया देखना मैं कितना बड़ा आदमी बन जावूंगा। आपको ज़हाज़ का सफर करवाऊंगा। घुमाने ले चलूँगा। मुझे उसकी वो बात अभी भी नही भूली है। अब जब वो यहाँ तक पहुच गया है तो मैंने भी सोचा क्यूँ ना करुनाकर को ज़हाज़ का सफर करवा दिया जाए। हो सकता है की दो तीन दिन में मैं उसे लखनऊ भेजूं तो वो ज़हाज़ से ही जायेगा। आज यशवंत जी ने मुझे बोला की उसे मैं उनसे बात करके फिर लखनऊ का प्रोग्राम तैयार करूँ तो मुझे बस उनका इंतज़ार है। ओमप्रकाश तिवारी जी, महावीर सेठ जी विशाल शुक्ला जी, भाई शशि कान्त अवस्थी जी और रूपेश जी मुझे आप से सिर्फा एक मदद चाहिए अगर आप किसी को जानते हों तो किसी तरह से करुनाकर के पापा को रिहा करवाने का प्रयास करवा दीजिए। क्योंकि वो अपराधी नही हैं। मुझे लगता है करुनाकर उन्हें बहार देखकर अपनी उम्र में कुछ और दिन जोड़ लेगा। वैसे अब सारी जिम्मेदारी यशवंत भाई ने उठा ली है तो मुझे और कुछ नही कहना है। पर इस तरह से जो आप लोगों का सहयोग मिला उसका एहसान मैं कभी नही चुका सकता। मुझे पता है आप लोगों की मदद से करुनाकर को इतना खुश कर दूंगा की वो अपने अल्पकाल में ही कई सौ जिंदगियां जी लेगा।
धनयबाद
अमित द्विवेदी
Posted by amit dwivedi 3 comments
Labels: आभार
ख़बर की सनसनी
Posted by DINKAR 2 comments
अनुरोधः करूणाकर के लिए फंड बनाएं
इधर कई दिनों से कुछ ज्यादा ही परेशान रहा.यों परेशान तो हमेशा ही रहता हूं. परेशानियों के बीच पैदा हुआ हूं.इसलिए परेशान रहना कुछ हद तक अच्छा भी लगता है.भडास पर अपलेख लिखकर कई मित्रों की अपेक्षाएं पूरी करना चाहता था.कई मित्रों को धन्यवाद देना चाहता था. लेकिन करुणाकर के बारे में पढ़कर अपने भगवान सूर्य (वे ऐसे भगवान हैं जो दिखाई पड़ते हैं) से निवेदन करने के अतिरिक्त कुछ सूझ ही नहीं रहा था.लेकिन भला हो डा.रूपेश का जिनके आलेख ने, जिनके शब्दों ने, मेरी व्यथा को क्षण भर में दूर कर दिया.यशवंत भाई,हालांकि मैं अपने को सुझाव देने लायक नहीं समझता ,बावजूद इसके मेरा अनुरोध है कि करुणाकर की चिकित्सा के लिए हम भड़ासी एक फंड बनाएं.आखिर डा.रूपेश के पास मुंबई आने जाने,इलाज व रहने खाने में भी तो काफी खर्च आएगा.कृपया मेरे अनुरोध पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर अनुग्रहीत करने की कृपा करें.उम्मीद है कि नाउम्मीदी नहीं होगी.जय भड़ास.
जगदीश त्रिपाठी
Posted by जगदीश त्रिपाठी 1 comments
यशवंत दादा,मौत का आतंक किसे दिखाया जा रहा है???????
आज बहुत दिनो बाद एक बार फ़िर से मेरे अंदर से मुख्यधारा से बाग़ी हुआ चिकित्सक निकल कर चिल्लाने को तैयार है इस लिये जोर जोर से चिल्ला कर कह देना चाहता हूं कि ये जो करुणाकर के बारे में मौत-मौत-मौत का भय है, पूरी तरह निर्मूल है। अरे यार लोगों ! इस दुनिया में जिस दिन प्रोग्राम बन कर आ गए थे उसी समय ईश्वर ने सबमें एक दिन डिलीट हो जाने का साफ़्टवेयर डाल दिया था कि जाओ आटोडिलीट हो जाना। मौत का आतंक किसे दिखाया जा रहा है कम से कम भड़ासी तो इस परिवर्तन से हरगिज नही डरते हैं। मैंने अभी करुणाकर से बात करी है और आप सबको कह देना चाहता हूं कि (यशवंत दादा आप भी शामिल हैं) बस करो ये डर-डर खेलना बहुत हो गया यार कब तक कांपोगे? एक बार हम सारे दोस्त जड़ी-बूटियों के लिये फ़्लोरा स्टडी के लिये फ़ील्ड में गये हुए थे तो सामान्य तौर पर आप माने या न माने ये छात्रों के लिये किसी पिकनिक से कम नहीं होता है ,लोग अपनी-अपनी गर्लफ़्रेंड्स को साथ ले जाना चाहते हैं, बीयर रखना नहीं भूलते हैं, ताश के पत्ते तो अनिवार्य होते हैं और अगर प्रोफ़ेसर साहब रंगीले हुए तो ढोलक,गिटार वगैरह भी संग रख लिया जाता है। इसमें जरूरी होता है कि साथ में एक अपडेटेड फ़र्स्ट एड किट भी ले ली जाए लेकिन उसे ढोना कौन चाहता है तो बिना मन के रख ही ली जाती है। स दोस्त अपनी-अपनी में मशगूल थे और हम थे कि एक पौधे को ताकत लगा कर उखाड़े पडे़ थे कि घर ले जाकर नमूने के तौर पर सहेजेंगे क्योंकि बह एक दुर्लभ पौधा था, उसकी जड़ से एक मस्त सांप चिढ़ कर निकला और हमें कस कर काट लिया। हमने शांति से प्रोफ़ेसर साहब को बताया कि एक जहरीले सांप ने काट लिया तो उनके तोते उड़ गये,चिल्लाने लगे कि अबे सालों दारू पीना बंद करो और फ़र्स्ट एड किट से एंटी स्नेक वेनम का इंजेक्शन निकाल कर डा.रूपेश को लगाओ...... मर जाएगा वरना साले हम सब परेशानी में पड़ जाएंगे....... । एक भला सा सहपाठी दवा निकाल कर लाया और बोला कि सर ये तो एक्सपायर डेट का हो गया है(किसी ने भी फ़र्स्ट एड किट उठाते समय देखना जरूरी नहीं समझा कि देख लेते कि किस दवा की क्या डेट है)। पता है उस दिन क्या हुआ???? मैंने जिन्दगी का सबसे बड़ा चिकित्सा-मंत्र सीख लिया, प्रोफ़ेसर चिल्ला कर बोले अबे साले अब बता रहा है कि एक्सपायर डेट का हो गया है पहले नहीं देखा....... लगा इसी को ... ये तो वैसे भी मर जाएगा तो इसी एक्सपायर डेट के इंजेक्शन को लगा कर देख अगर बच गया तो ठीक है........ मुंह मत देख साले..... चमत्कार हो गया ......। मैं उस एक्सपायर डेट की दवा से बच गया जबकि मैं खुद उस सांप की प्रजाति को जानता हूं कि वो कितना जहरीला होता है; तो बच्चों इस कथा से मैंने क्या सीखा कि जो गतायु हो, मरणासन्न हो उस पर सारे जीवन रक्षक उपाय अपना लेने चाहिये न कि ये कह कर अलग खड़े हो जाना चाहिये कि ले जाओ ये तो मरने वाला है.... ये सुअर एम्स और टाटा के डाक्टर अपने आप को ब्रह्मा का बाप समझते हैं कि इन्होंने कह दिया और मरीज मर ही जाएगा..... कमीने कहीं के.। मेरी मां का उदाहरण तो यशवंत दादा भी जानते हैं जिन्हें ढाई साल पहले ब्रेस्ट कैंसर की अंतिम अवस्था बता कर ये कह दिया था इन चूतियेस्ट डाक्टरों ने कि बुढ़िया डेढ़-दो महीने में मर जाएगी जबकि मेरी माताराम पूरी तरह से अब स्वस्थ हैं और रिश्ते में लगने वाली सारी बहुओं को आशीर्वाद देती फ़िर रही हैं चाचा,मामा,फ़ूफ़ा सबकी बहुएं कहानी घर घर की देख रहीं हैं इनके संग.....। यार लोगों मैं करुणाकर के इलाज का जिम्मा ले रहा हूं बस आप लोग ऊपर वाले को बोल कर रखो कि इस बीच उसके स्वस्थ होने से पहले मुझे डिलीट न कर दे.....। अगर किसी का दिल बहुत बड़ा हो यानि उसे एन्लार्जमेंट आफ़ हार्ट नामक बीमारी हो और दवा के खर्च का जिम्मा उठाना चाहे तो भइये शौक से उठाए लेकिन मैं उसको कभी उसकी बीमारी यानि एन्लार्जमेंट आफ़ हार्ट का इलाज न बताउंगा,,,,,,, :)
जय जय भड़ास
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) 2 comments
हरे प्रकाश भाई
हरे प्रकाश भाई
ये बात समझ में नहीं आई
कि,ये गुलाम अली का बाजा है
या कोई खूनी दरवाजा है
जिसे मालिक की बजाय
गुलाम ने नवाजा है
हरे भाई जब भी मस्त मूड में आता है
बाजा यही गाता है
चाहे हो सुबह,चाहे हो शाम
बाजा हूं मैं मुझे बजने से काम
चाहे हो राम या चाहे गुलाम
आपको मेरी सलाह है भली
भूल जाओ बाजा भूल जाओ अली
मुबारक हो इनको ही अंधी गली
सहायक तुम्हारे हैं बजरंग बली।
पं. सुरेश नीरव
Posted by Unknown 0 comments
Labels: बाजा
ये रही करुणाकर की तस्वीर और उनकी आरकुट प्रोफाइल के डिटेल
smoking: no
drinking: no
living: alone, friends visit often
music: SOFT OLD SONGS
tv shows: INDIAN IDEAL PART TWO
movies: MUNNA BHAI MBBS;PARDESH;
ideal match: that is in pending
first thing you will notice about me: MY simplicity
my idea of a perfect first date: i do't like dating becoc i will do all these things after achieving all my goals
from my past relationships i learned: i do't have any relationship inspite of my parents and sister brothere and from these i am learning continously no endpoints
five things I cant live without: i can live without anything in the presense of air water and food
in my bedroom you will find: i have't here bedroom but i have my flat in that me and my freinds lives together so u find alot of things like MY PC,MY freinds laptop and as i am student then
करुणाकर मौत के मुहाने पे है, पिता जेल में हैं, कौन बचाएगा? कौन इन्हें मिलाएगा?
भड़ासियों, फिर आ पड़ी है किसी के काम आने की बेला
दूसरों के दुखों से आंख फिराकर खुद के लिए अपार सुख तलाशने वाले हम कथित सुसभ्य शहरियों के लिए अमित द्विवेदी की दो पोस्टें आइना दिखाने वाली हैं। इसी दिल्ली - नोएडा में रह रहा एक पत्रकार अमित द्विवेदी किस तरह एक दूसरे शख्स की पीड़ा के साथ खुद को जोड़े हुए है, उसके साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहा है, लड़ रहा है.....वो जानने के बाद मैं खुद पर शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं। कहने को हम सब इतने मीडिया वाले भड़ास पर हैं, ब्लागिंग में हैं, अखबार में हैं पर किसी जेनुइन की मदद करने का माद्दा नहीं जुटा पाते क्योंकि इसमें समय खर्च होगा, पैसा खर्च होगा और मिलेगा कुछ नहीं। हां, कुछ नहीं मिलेगा पर जो लोग जीने का मतलब और मकसद तलाशते हैं उन्हें बहुत कुछ मिलेगा। हम भड़ासियों के लिए यह मुद्दा जीवन मरण का मुद्दा है। कुछ उसी तरह जिस तरह कानपुर के भड़ासी साथी शशिकांत अवस्थी ने एक बिछुड़ी मां को उसके बेटों से मिलवाया और उसके घर पहुंचाया, उसी तरह हम करुणाकर नामक छात्र जो बस्ती के हरैया तहसील के गांव का रहने वाला है और गरीब घर का है लेकिन पढ़ने में बेहद प्रतिभावान है, अपनी जिंदगी के बचे हुए पांच छह महीने जियेगा और उसके बाद यह दुनिया छोड़कर चला जाएगा। दुख तो यह कि इन बचे हुए छह महीनों में डाक्टरों की सलाह के मताबिक उसे मां बाप के साथ रहने का सुख भी नहीं नसीब हो सकेगा क्योंकि उसके पिता को कुछ प्रभावशाली लोगों ने जेल भिजवा रखा है। उसके पिता को और खुद करुणाकर को यह नहीं पता कि करुणाकर की उम्र अब छह महीने है। यह बात केवल अमित द्विवेदी को पता है जो करुणाकर के साथ सिर्फ भावना और मनुष्यता के नाम पर जुडे़ हैं, उनका इलाज कराने में मदद कर रहे हैं, उन्हें आज सुबह एम्स के डाक्टर ने बताया कि इस करुणाकर की उम्र बस छह महीने बची है। इन दिनों को वो अपने परिजनों के संग गुजारे। कुछ नहीं हो सकता अब।
पूरा मामला इस तरह है---
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के हरैया तहसील के एक गांव के गरीब ब्राह्मण ओंकार का बेटा करुणाकर पढ़ाई में इतना तेज था कि वो हर एक्जाम में ब्रिलियेंट पोजीशन पाता। उसकी रुचि और इच्छा को देखते हुए ओंकार ने बेटे को करुणाकर को पढ़ाने के लिए नोएडा के एक इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिला दिया। इसके लिए खेत बेचकर पैसे दिए। बेटा जब यहां पढ़ने लगा तो उसे दर्द वगैरह हुआ और कई चरण की जांच पड़ताल के बाद उसके फेफड़े में कैंसर पाया गया। डाक्टरों ने कह दिया है कि वो अब जिंदा नहीं बचेगा, जीवन के जो कुछ दिन शेष हैं, उसे घर में परिजनों के साथ गुजारे।इस मामले में मैं हिंदी दुनिया के सभी साथियों, दोस्तों, दुश्मनों, परिचितों, अपिरिचितों से अपील करूंगा कि वे जो कुछ बन पड़े इस मामले में करने के लिए आगे आए।
उधर, उसके पिता ओंकार मिश्रा इन दिनों जेल में है। उन्होंने अपने गांव में किसी बुजुर्ग की खूब सेवा की और उस बुजुर्ग ने अपने नौ दस बीघे खेत ओंकार के नाम लिख दिए। बुजुर्ग की मृत्यु के बाद उनके कथित चाहने वालों ने पैसे के बल पर ओंकार को जल भिजवा दिया, यह आरोप लगाते हुए कि उन्होंने चार सौ बीसी करके जमीन अपने नाम लिखवा लिया है। इन दिनों वो गोंडा जेल में बंद हैं। पिता को नहीं पता कि उनका लाडला और तेज तर्रार बेटा अब कुछ दिनों का मेहमान है।
जैसे इस परिवार पर आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा हो। पिता जेल में, बेटा मृत्यु शैय्या पर। घर में फूटी कौड़ी नहीं। मामला हाइकोर्ट में है। लखनऊ में करुणाकर के एक मामा रहते हैं सोहन तिवारी। वे ओंकार के मामले में पैरवी कर रहे हैं।
कुछ तथ्य यहां और दे रहा हूं....
-करुणाकर ने आरकुट पर अपनी प्रोफाइल भी बना रखी है। उसका लिंक अमित द्विवेदी मुझे मुहैया कराने वाले हैं।
-करुणाकर की तस्वीर और उनके गांव घर के डिटेल अमित द्विवेदी मुझे जल्द ही मेल करने वाले हैं।
-करुणाकर के मामा सोहन तिवारी जो लखनऊ में हैं और करुणाकर के पिता ओंकार के जेल में होने के मामले में छुड़ाने के लिए पैरवी कर रहे हैं, उनका मोबाइल नंबर मेरे पास अमित ने भिजवा दिया है।
-लखनऊ के एक बड़े अखबार के स्थानीय संपादक और एक नेशनल न्यूज चैनल के लखनऊ स्थित मुख्य रिपोर्टर को इस मामले के बारे में मैंने जानकारी दे दी है। दोनों लोगों ने इस मामले को मीडिया में फ्लैश कर इस पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने का वादा किया है। जल्द ही दोनों लोगों तक इस मामले के सारे डिटेल मेल के जरिए पहुंचा दूंगा।
अपील
-अगर आप मीडिया में हैं और इस पोजीशन में हैं कि गोंडा, बस्ती और इलाहाबाद में वकील, अफसर, नेता के जरिए दबाव बनाकर पिता ओंकार को जेल से रिहा करा सकें तो कृपया इस दिशा में पहल करें। मुझे रिंग कर सकते हैं -09999330099 पर। मुझसे डिटेल ले सकते हैं yashwantdelhi@gmail.com पर मेल करके।
-अगर आपके परिवार, दोस्त, जानकारी में कोई इलाहाबाद में ठीकठाक वकील हों, बस्ती और गोंडा में प्रशासनिक अफसर या नेता हों तो उन्हें इस मामले में पहल करने के लिए अनुरोध करें। यह सिर्फ और सिर्फ मनुष्यता का मामला है। घनघोर स्वार्थ के इस दौर में अगर हम थोड़ी सी पहल करके किसी का भला करा सकते हैं तो हमें करना चाहिए।
-अगर आपकी जानकारी में कोई डाक्टर ऐसा हो जो फेफड़े के कैंसर का इलाज करने में सक्षम हो तो ओंकार को दुबारा उन डाक्टरों से दिखवाने की पहल करें।
-प्लीज, करुणाकर हमारी आपकी तरह है। उसके पिता हमारे आपके पिता की तरह हैं। हम अलग अलग शरीर भले ही धारण किए हुए हैं पर हमारे होने की पहचान एक दूसरे को मदद देने, एक दूसरे को बेहतर बनाने से है, इसलिए इस मामले में आगे आइए।
- अगली पोस्ट में भड़ास पर करुणाकर की तस्वीर और उससे जुड़े सारे तथ्य डिटेल में डालूंगा। अमित द्विवेदी से अनुरोध है कि वे शीघ्र सारी जानकारियों को मेल करके मुझ तक पहुंचाएं।
(उपरोक्त जानकारियां अमित द्विवेदी से फोन पर हुई बातचीत पर आधारित है)
भड़ास के सदस्य और पत्रकार साथी अमित द्विवेदी ने इस मामले में जो दो पोस्टें भड़ास पर डाली हैं, उन्हें आप जरूर पढ़िए.... (यह ध्यान रखिए कि अमित अभी हफ्ते भर भी नहीं हुए, भड़ास के मेंबर बने हैं, और आनलाइन हिंदी लिखना सीख रहे हैं, इसके चलते गूगल ट्रांसलेशन वाले सिस्टम से लिखने में कई शब्द अशुद्ध रूप से हिंदी में अनुवादित हुए हैं, इसलिए इन शब्द व व्याकरण के दोषों को नजरअंदाज करके पढ़ें.....)
पहली पोस्ट
एक कहानी जो जारी है
दूसरी पोस्ट
उसकी जिंदगी अंतिम पड़ाव पर आ गई
जय भड़ास
यशवंत
और उसकी ज़िंदगी अन्तिम पडाव पर आ गयी
आज सुबह जब मैं उससे मिला तो वो एक नयी कमीज़ और पन्त में था मुरझाई आँखों में एक आशा की नयी किरण नज़र आ रही थी। एम्स के ओपीडी के सामने वोह बैठा मेरा अखबार यानी की अमर उजाला पढ़ रहा था। मुझे देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल गया। मैंने कहा क्या बात है करुनाकर तुम तो एकदम हीरो लग रहे हो। देखो हमेशा खुश रहा करो। हम साथ साथ एम्स के एक्सरे डिपार्टमेन्ट की तरफ़ रूम नम्बर एक में गए। सुबह के यही कोई सवा आठ बजा रहा होगा। डॉक्टर ने सिटी स्कैन की रिपोर्ट और अन्य रिपोर्ट जामा करवा ली और बाहर वेट करने को कहा। हम बेसब्री से बाहर डॉक्टर का इंतज़ार कर रहे थे। अंदर से डॉक्टर अरविन्द लगभग १० बजे बाहर आए। उन्होंने हमारा नाम पुकारा। जब हम उनके पास गए तो उन्होंने मुझे बताया की सर्जरी नही हो सकती क्यूंकि दोनों तरफ़ का लुंग प्रभावित हो चुका है। आप एक काम करो डॉक्टर जुल्का से मिलो और उनसे कीमियो थेरेपी के लिए बात कर लो। बस यही एक अब इसका इलाज़ है। हम एम्स के रेड बिल्डिंग में गए तो पता चला की डॉक्टर जुल्का कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर गए हुए हैं। रूम नम्बर चार में एक दूसरे डॉक्टर बैठे थे मैंने उनके पास पर्चा जामा करवा दिया। थोड़ी देर बाद में मुझे उन्होंने कॉल किया जब मैं गया की ये तुम्हारा क्या लगता है। मैंने बोला भाई। उन्होंने करुनाकर को रूम से बाहर भेज दिया और मुझे बताया की इसकी उम्र अब सिर्फ़ ६ या ७ महीने बची है। आप को इसके मम्मी पापा को ये बता देना चाहिए। यहाँ पर इसे भरती करवाने का कोई फायदा नही है। इसे अपने परिवार के पास रहना चाहिए। इसका इलाज़ जहाँ पहले करवाया था आप वहां ही करवाते रहें। और आगे भगवान् पर छोड़ दें। मैं जब बाहर निकला तो करुनाकर से बात नही की बस यही बोला की मैं गाडी लेकर आता हूँ। जब मैं आया तो उसने कहा भैया मुझे अब की दवा नही करवानी है कुछ दिन और जीकर क्या करूंगा। उसकी यह बात सुनकर मैं बहुत दुखी हुआ। मेरे आंखों से आंसू निकल पड़े। मैं उसे क्या बोल्लूँ समझ में नही रहा था। बस पूरे रस्ते एक बात सोचता रहा की भगवान् मुझे इसकी जगह मुझे क्यूँ नही अपने पास बुला लेता। उसके सारे सपने जो थे सब टूट गए। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही है की उसके माँ बाप ने उसके लिए इतना किया पर बदले में उसने उन्हें क्या दिया। जब देने की बारी आयी तो मौत ने दस्तक दे दी। दिल को दहला देने वाला ऐसा वाक्या पहली बार मेरे साथ घटा है। मैं इतना दुखी अपने पूरे जीवन में नही हुआ था जितना की आज हूँ। किसी से बात करता हूँ तो आंसू टपकने लगते हैं। बस मैं एक चीज़ चाहता हूँ की किसी तरह उसके पापा जेल से बाहर आ जायें और उसकी बची हुयी ज़िंदगी में उसका साथ दें। मैं चाहता हूँ की कोई एक कदम इसके लिए बढाये जिससे इस दर्दनाक स्टोरी में कुछ तो गम दूर हों। किसी को यह पता चल जाए की उसकी ज़िंदगी बस इतने दिन और बची है इसका दर्द क्या होता है इसे एक बार सोचकर भी महसूस किया जा सकता है।
................ अभी भी बाकी है ये कहानी
अमित द्विवेदी
गुलाम अली और बाजा
एक थे गुलाम अली और एक था बाजा । बाजा किसी और का था , लेकिन संयोग कुछ ऐसा था कि उसे गुलाम अली भी बजा रहे थे । समाज ऐसा था कि जिसका बाजा था वह अगर उसे चाहे कितना अच्छा या बुरा बजाए कोई चर्चा ही नही करता था , पर कोई और कैसा भी बजाए तो नमक-मिर्च लगाकर चर्चा करता था । तो गुलाम अली के भी बडे चर्चे थे । हालाँकि गुलाम अली को किसी ने बाजा बजाते देखा नही था , पर सबका पक्का विश्वास था कि गुलाम अली उसे जरूर बजाते हैं और जब चाहे बजा लेते हैं । कुछ लोगों का तो यह भी कहना था कि अगर गुलाम अली कभी न भी चाहें और बाजा उन्ही से बजने पर उतारू हो जाए तो वह ख़ुद ही उनके मुंह में घुस जाता है । हलाकि लोगों का स्पष्ट मानना था कि बाजा मुंह से नही बजता था बल्कि उसे बजाने के लिए शरीर के सभी अंगों का सहयोग चाहिए था , पर लोग कहते थे कि गुलाम अली तो गुलाम अली , जब अपनी पर उतर जाते तो चाहे जिस अंग से चाहें वे बजा लेते थे और लोगों का अनुमान था अच्छा बजा लेते थे । गुलाम अली ने दरअसल बाजे को एक ऐसा आश्वाशन दे रखा था कि बाजा ख़ुद ही उनसे अच्छे से बज जाता था । गुलाम अली बडे ओहदेदार थे और हमेशा गर्व से ऐंठे रहते थे , हालाँकि वे ऐसे-ऐसे काम करते थे और रोज करते थे कि उन्हें शर्म से भीगा हुआ रहना चाहिए था , पर यही तो बात है कि उन्हें कभी भी शर्म नही आती थी । चूँकि उन्हें शर्म नही आती थी इसलिए वे निपट मुर्ख होते हुवे भी अपने को बहुत ज्ञानी समझते थे , विद्वान् समझते थे , कवि समझते थे । बाजा उनकी इसी अदा पर तो फ़िदा था । दरसल बाजा भी कुछ-कुछ वैसा ही था । था पुराना मगर अपने को न्य-नवेला समझता था । जब वह बजता होगा तो जरूर उससे कोई अश्लील धुन निकलती होगी , इसीलिए कलयुग के सरे साधक उसे एक बार , कम से कम एक बार बजा कर देख ही लेना चाहते थे । बाजा इस बात को न जानता हो ऐसा नही कहा जा सकता था , लेकिन उसके अपने कलयुगी नखरे थे । एक दिन इसी नखरे में गुलाम अली तमाशा बनेगे , लोग ऐसा सोचते थे । लेकिन गुलाम अली को शर्म नही आती थी और तमाशे को भी वे व्यापार में बदल देने की कला में माहिर थे । गुलाम अली एक बडे संसथान में नौकरी करते थे और कोतवाल थे और बाजा भी । हम चाहते थे एक दिन गुलाम अली हमारे सामने उस बाजा को बजा क्र दिखाएँ , पर हम छोटे लोग थे और गुलाम अली को मजाक-मजाक में भी अपनी इच्छा बता नही सकते थे । हमारे बाल- बच्छे थे , उन्हें हमे पालना था और हमारे अंग विशेष के ऊपर एक पेट था जिसे भरना था नही तो हम भी कौन कम थे हम तो बजाने वाले को ही बजा देने की हसरत रखते थे आमीन ।
Posted by Unknown 3 comments
आप कल के लिए?
हास्य-गज़ल
तुक भिड़ाएंगे क्या आप कल के लिए
गीत गाएंगे क्या आप कल के लिए
नाश्ते में कनस्टर को खाली किया
भर के लाएंगे क्या आप कल के लिए
आज रेंके तो कर्फ्यू शहर में लगा
गुल खिलाएंगे क्या आप कल के लिए
आखिरी थी अठन्नी उड़ी इश्क में
अब बचाएंगे क्या आप कल के लिए
दिल में जो कुछ भी था हिनहिनाया अभी
बिलबिलाएंगे क्या आप कल के लिए
जितना मक्खन था सब मल दिया बॉस को
दुम हिलाएंगे क्या आप कल के लिए
पूरा वेतन महाजन के हत्थे चढ़ा
अब पकाएंगे क्या आप कल के लिए
इक पजामा था नीरवजी चोरी हुआ
अब सिलाएंगे क्या आप कल के लिए?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
Posted by Unknown 1 comments
Labels: हास्य-गज़ल
बीहड़ सुधरे तो मिले दस्यु समस्या से छुटकारा
बीहड़ी इलाकों में दस्यु समस्या का कारण इस क्षेत्र में फैला बीहड़ है। भुमी कटाव से हर वर्ष 0.3 फीसदी उपजाऊ भूमि बीहड़ में तब्दील हो जाती है। इस बीहड़ का समतलीकरण करके और भूमि कटाव को रोककर जनता को दस्यु समस्या से छुटकारा दिलाया जा सकता है। शासन ने भूमि सुधार के अब तक जो भी प्रयास किए हैं वह नाकाफी रहे हैं और इनमें जनता की सीधी भागेदारी नहीं हुई है।शासन और प्रशासन के लिए इटावा, जालौन, कानपुर, हमीरपुर, आगरा, फीरोजाबाद, मध्यप्रदेश में भिंड और मुरैना के लगभग 10 लाख हेक्टेयर में फैले बीहड़ की भूमि को उपयोग में लाना एक चुनौती है वहीं इस क्षेत्र में पल रहे दुर्दांत डकैत, लोगों की जान माल के दुश्मन बने हुए हैं। इस बीहड़ भूमि में वृक्षारोपण के प्रयास तो किए गए हैं, लेकिन अभी भी कई ग्राम सभाओ के पास नंगी, सूखी, बंजर भूमि प़ड़ी हुई है।मैने खुद इटावा और औरैया जिले में इसके हालात देखे और जांचे हैं। यहां के भूमि संरक्षण विभाग के एक अध्ययन के मुताबिक बढ़ता बीहड़ हर साल लगभग 250 एकड़ उपजाऊ भूमि को निगल रहा है। हर सात साल में 2.3 फीसदी अच्छी भूमि कगारों के ढहने और कटने से बीहड़ में तब्दील होती जा रही है। जिला भूमि उपयोग समिति के आंकड़ों के मुताबिक इटावा और औरैया जनपद की कुल कार्यशील जनसंख्या में 79.9 फीसदी लोग कृषि कार्य में लगे हैं। 1995-96 में शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल 1 लाख 42 हजार 605 हेक्टेयर था जो 1997-98 में घटकर 1 लाख 40 हजार 431 हेक्टेयर रह गया है।चंबल और यमुना के संगम पर फैले अगर पंचनद बीहड़ की बात करें तो यहां हालात और भी खराब हैं। यहां यमुना, चंबल, पहुंच,सिंध और क्वारी का मिलन होता है। इसके साथ ही इटावा, औरैया, जालौन और मध्यप्रदेश के भिंड जिले की सीमा यहां मिलती है। इन नदियों के प्रवाह क्षेत्र के लगभग 220 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बीहड़ है। तेजी से बढ़ रहे बीहड़ी क्षेत्र से हर वर्ष उपजाऊ भूमि का 0.3 फीसदी भाग बेकार हो जा रहा है।
नाकारा प्रशासन
बेकार पड़ी भूमि को उपयोग में लाने के लिए जनता को प्रोत्साहित करने को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बनी भूमि उपयोग समिति भी इस दिशा में सार्थक काम नहीं कर सकी है। इस समिति का काम साल में एक दो बैठक करने तक ही सिमट गया है। भूमि संरक्षण विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि कटान से हर साल 250 एकड़ की गति से बढ़ रहे बीहड़ की रफ्तार को कुछ गांवों में चकडैम बनाकर कुछ कम तो किया गया है लेकिन बीहड़ी क्षेत्रफल को देखते हुए यह कदम कुछ भी नहीं है।
क्या कर सकते hain
biihad को समतल करने का काम जनता के हाथ में दे दिया जाए। समतल की गई भूमि का पट्टा उसी व्यक्ति या किसान के नाम कर दिया जाए। एक व्यक्ति को एक तय जमीन ही समतल करने को दी जाए। इससे होगा यह कि भूमिहीनों को जहां जमीन मिल सकेगी वहीं खेती का रकबा भी बढेगा। इसके साथ ही बीहड़ साफ होने से डाकुओं की समस्या से ही निजात मिल सकेगी।
Posted by बीहड़ 0 comments
राज ठाकरे ने औरंगाबाद में भी पर्प्रन्तियता का सवाल उठाया
राज ठाकरे जैसे राजनीती करने वाले नेतगनो को जेल मैं रखना चाहिए। ऐसे लोग देश को बांटने का कम कर रहे हैं। भारत गणतंत्र है, किसी को भी कहीं भी जाकर कम करने का अधिकार है, पढने का अधिकार है, अब हम ऐसे में प्रन्तियातियता की बात क्यों कर रहे हैं। ऐसे कलुषित विचार क्यों सुनने को मिल रहें हैं। अरे भाई लोगो की सेवा करो, लोगों को बांटो नही। राज साहेब की कारगुजारियों से लोगो के बीच मतभेद दूरियां बाद रही है। क्या भारत में यही राजनीती है। लेकिन मुझे यह कहते हुए शर्म आती है है की दुनिया में इस तरह की कारगुजारियों से क्या तस्वीर बन रही है। मुझे लगता है की महाराष्ट्र के लोगों को इस मामले में आगे आना चाहिए। अरे भाई हम देश की बात कह रहें हैं। देश को तोड़ने की बात नहीं कह रहें हैं.
Posted by aditya 2 comments
27.6.08
सदस्य संख्या पहुंची 355, जय हिंदी, जय ब्लागिंग, जय भड़ास
भड़ास की सदस्य संख्या 355 होने पर बधाई। इस महीने हर रोज दो से लेकर चार अनुरोध भड़ास की सदस्यता के लिए आते रहे और इनमें से जिन लोगों ने अपने मोबाइल नंबर, पता और काम-धाम के बारे में जानकारी दी, उन्हें सदस्य बनने के लिए निमंत्रण भेजा गया। नए लोग न सिर्फ भड़ास से तेजी से जुड़ रहे हैं बल्कि आनलाइन कैसे हिंदी लिखना सीख कर टूटी फूटी जुबान में अपनी बात कहने की कोशिश भी कह रहे हैं। हिंदी ब्लागिंग के लिए यह बेहद शुभ है। एक तरफ जहां ढेर सारे ब्लागर अपने ब्लाग को एकला चलो रे के नारे के तहत चला रहे हैं और कई कम्युनिटी ब्लाग अपने कथित वैचारिक दीवारों के चलते नए लोगों को बाहर से ही दर्शक के रूप में बनाए रखने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं, ऐसे में भड़ास जैसा दुनिया का सबसे बड़ा ब्लाग खुले दिल दिमाग से नए लोगों को हिंदी ब्लागिंग का क ख ग सिखा रहा है और उन्हें गलत सही कुछ भी लिखने के लिए, सीखने के लिए, पोस्ट करने के लिए प्रेरित कर रहा है। उम्मीद है भड़ास के जरिए ब्लागिंग सीखने वाले हिंदी भाषी आगे चलकर आनलाइन दुनिया में हिंदी को सम्मान दिलाने के साथ साथ खुद भी आनलाइन माध्यम में अपनी सक्रियता से विशेषज्ञता हासिल कर सकेंगे।
भड़ास संचालन समिति की तरफ से सभी नए भड़ासियों का दिल खोलकर स्वागत करता हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि अगर ब्लागिंग करने में किसी भी तरह की तकनीकी दिक्कत आ रही हो तो कृपया वे पोस्ट डालकर या किसी पोस्ट पर कमेंट करके पूछ सकते हैं।
कृपया कोई समाधान बताए?
मुझे खुद एक दिक्कत आ रही है जिसका समाधान दूसरे वरिष्ठ ब्लागर बताने की कृपा करें। भड़ास पर पोस्ट करते समय अक्सर पोस्ट तुरंत पब्लिश नहीं होता और इरर आ जाता है। बाद में दुबारा कोशिश करने पर वह पोस्ट दो या तीन बार भड़ास पर पब्लिश हो जाती है। ऐसा क्यों होता है, समझ में नहीं आता। इसी तरह कई बार पोस्ट करते समय सर्वर इरर शो करता है। क्या यह दिक्कतें भड़ास पर ज्यादा पोस्टें होने के चलते तो नहीं आ रही? कृपया इस बारे में कोई गाइड करे।
आभार के साथ
जय भड़ास
यशवंत
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 3 comments
Labels: 355, दिक्कत, ब्लागिंग, भड़ास, सदस्य संख्या, स्वागत, हिंदी
मीडिया फेलोशिप के लिए आवेदन करें
चाइल्ड इन नीड़ इंस्टीट्यूट स्वास्थ्य के अधिकार विषय पर मीडिया फेलोशिप देने जा रही है. इस फेलोशिप को पाने के लिए आपको सिनी के दफ्तर के पते -357-A, अशोक नगर, रांची पर अपना आवेदन भेजना होगा. आवेदन भेजने की अन्तिम तिथि 7 जुलाई 2008 दिन के तीन बजे तक है. इस फेलोशिप के लिए विष्णु राजगढ़िया को समन्वयक बनाया गया है. वैसे फेलोशिप के लिए उम्मीदवार का चयन एक कमेटी करेगी, जिसमे डॉ सुरंजन, विजय पाठक, बलराम, सुधीर पाल, नवतन कुमार, गुरजीत और विष्णु राज्गाडिया शामिल हैं. फेलोशिप के लिए हजारीबाग, पलामू, पश्चिमी सिंहभूम और रांची से दो-दो पत्रकारों का चयन होगा. जल्दी कीजिये ये फेलोशिप आप भी कर सकते हैं।
प्रेषक
नदीम अख्तर, रांची से
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 1 comments
एक कहानी ऐसी भी जो जारी है
मैं ऑरकुट का मेंबर बना तो कई ऐसे दोस्त मुझे मिल गए जिन्हें मैं भूल चुका था। अचानक इसी कडी में एक तकनीकी शिखा ग्रहण कर रहे एक बन्दे का मुझे स्क्रैप मिला उसने मुझे बताया की वोह भी बस्ती का रहने वाला है । आजकल नॉएडा के एक ingeeneering कॉलेज से पढाई कर रहा है। मैंने उसे अपना दोस्त मान लिया एक दिन उसने मेरा नम्बर माँगा तो मैंने उसे दे दिया और उसने मुझे कॉल किया तो पता चला की वो मेरे गांव के पड़ोस का रहने वाला है। मुझे उससे बात करके अच्छा लगा क्यूंकि वो एक बहुत ही अच्छा लड़का था। दिन रात मेहनत करके वो पढाई करता था उसके पिता जी उसकी हर एजूकेशन को दिलवाने के लिए कृतसंकल्प थे। मैंने एक बार जब गांव गया तो पुछा अंकल आप अपने बच्चों को इतना पढा कैसे रहे ही जब आपके पास इतना पैसा नही है तो उन्होंने जवाब दिया की बेटा अगर वो गानों में रहते तो खेती बड़ी करते जब मैंने देखा की वो पढ़ना चाहता है तो उसे मैंने शहर भेज दिया की जावो कुछ बनकर दिखावो। उसके लिए मैंने अपने कुछ खेत बेंच दिए। अब मुझे अच्छा लग रहा है की वो अच्छा कर रहा है।
पर जो ऊपर वाला बैठा है उसकी परीक्षा इतनी कठिन है की शायद ही उसे कोई पास कर पाए। २००४ में करुनाकर नाम के उस होनहार बच्चे ने तुमेर के चलते अपना दाहिना पैर गंवा दिया। फिर भी उसने हिम्मत नही हरी। इतना कुछ होने के बवोजूद उसने अपने मुकाम को पाने के लिए मेहनत जारी रक्खी और नॉएडा के एक अच्छे से तकनीकी कॉलेज में उसे प्रवेश भी मिल गया। अच्छे मार्क्स से उसने अपने सारे सेमेस्टर क्लीअर किए बाद में जब उसका अन्तिम साल रहा गया तो इस होनहार बहादुर छात्र को सीने में दर्द उठा और खांसी आयी। जब उसने इसे डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की उसके फेफडे में कैंसर हो गया है। उसका इलाज़ ठीक तरीके से नही हो सका क्युकी उसके पिता जी को गांव के कुछ लोगों ने जमीन के एक मामले में जेल भिजवा दिया। और इसमें सबसे बड़ी दिलचस्प बात ये है की छोटे से ज़मीन के मामले में पैसे वाली पार्टी ने पुलिस को घूस देकर उन्हें अन्दर करवाया है। जिसमे कोर्ट उन्हें जमानत देने में झिझक रही है जैसे वो बड़े क्रिमिनल हों कोई। करुनाकर ने एक दिन मुझे फ़ोन किया और उस समय जब वो बिल्कुल टूट चुका था। कोई उसके पास नही था। दिल्ली के करोल्बाघ के यूनानी मेडिकल कॉलेज में वो भरती हो चुका था। मैं उससे मिलने गया तो वो ऐसे टूट गया था जैसे उसके लिए दुनिया में कुछ रहा ही नही। पूरी दुनिया को देखने का सपना देखने वाला बहादुर लड़का बीमारी से हार गया था। यह ऐसा हॉस्पिटल था जहाँ उसका कोई इलाज़ नही था। घर का उसके साथ कोई नही था। क्यूंकि हर कोई उसके पापा की ज़मानत के लिए चक्कर लगा रहा है। जेब में उतने पैसे नही थे जिससे किसी अच्छे हॉस्पिटल में दवा कराई जा सके। मैंने उसकी हालत देखी तो रो पडा। भइया कहकर मुझे जब भी वो पुकारता मुझे अपने पर शर्म आती क्यूंकि मेरे हाथ में उसके करने के लिए कुछ नही था। मैंने एम्स में उसके लिए बात करनी शुरू की। तीन दिन बाद किसी तरह से सर्जरी डिपार्टमेन्ट में डॉक्टर अरविन्द को उसे दिखने में सफल रहा। पर डॉक्टर अरविन्द ने उसकी एक्सरे रिपोर्ट देखकर जो जवाब दिया उसने मुझे हिला दिया। उन्होंने कहा की इन्फेक्शन फेफडे में दोनों तरफ़ फ़ैल गया है। आप इसका सिटी स्कैन करवाकर शनिवार मोर्निंग में यानी की २८ जून को मिलिए फिर हम आपको बताएँगे की हम इसे सही कर पाएंगे या नही। अभी कल सुबह आने में १२ घंटे हैं पर मैं बहुत दुखी हूँ की एक बाप ने अपने बेटे पर वो सारी पूंजी लगा दी जिससे उसने उम्मीद की थी की एकदिन वो कुछ बन जायेगा पर बेटा लायक होते हुए भी अपने बीमारी से हरता जा रहा है। उसे अपने पापा के जेल से बाहर आने का इंतज़ार है। उसे अब कुछ नही सिर्फा अपने पापा चाहिए। पर इस घूसखोर प्रथा में मुझे नही लगता की एक बाप ज़िंदगी मौत से जूझ रहे अपने बेटे तक पहुँच पायेगा। मुझे पता है इस भडास से बहुत से पत्रकार जुड़े हैं अगर किसी की पहुच हो तो चाहूंगा की एक बेटे की आख़िर खवाहिश पूरी करने में कुछ कर सकें तो करके दिखाएँ। यह कहानी नही असलियत है और मैं तब तक लिखता रहूँगा जब तक एक इक्कीस साल के नौजवान को ठीक ना करवा लूँ। उससे मेरा कोई रिश्ता नही है पर हाँ आज की डेट में मेरे लिए वो सबसे बढ़कर है जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। ......... ये कहानी जारी रहेगी यूँ ही।
Posted by amit dwivedi 7 comments
हम आयें हैं यूपी -बिहार लुटने....
विकास की बात तो कुछ हद तक समझ में आती है, पर विधि-व्यवस्था में सुधार की बात पाच नही रही है। क्योंकि यहाँ विधि-व्यवस्था कानून से नही,नेता की जाति से तय होती है। अमन-चैन गुंडों के सुपुर्द है। रही सही कसर यहाँ की पुलिस पुरी कर देती है। सच पूछे तो राज्य को सरकार नही, बल्कि बाहुबली नेता, पुलिस और रंगदार ही चलाते हैं। और रंगदारी वसूलना तो पुलिस का परम कर्तव्य है। इसलिए उन्होंने पारदर्शिता के लिए बहाल किए गए कानून 'सूचना के अधिकार' को भी कमाई का ज़रिया बना लिया है। सूचना मांगने वालो को जेलों में डालने की बात पुरानी पड चुकी है। अब तो आवेदकों से सूचना जमा करने का भी पैसा वसूल रही है यूपी की पुलिस....
जी हाँ! यूपी पुलिस ने अधिकार से बचने और अपनी जेब गरम करने का आसान रास्ता निकाल लिया है। जब सुल्तानपुर के डॉक्टर राकेश सिंह ने पुलिस महानिदेशक से राज्य में मुसहर जाति के ख़िलाफ़ चल रहे पुलिसिया कारवाई के बारे में सूचना मांगी तो पुलिस महानिरक्षक ने श्री सिंह को बताया कि "इसके लिए 7.15 लाख रुपए जमा करें तभी मिलेगी आपको सूचना...... क्योंकि सूचना मुख्यालय में उपलब्ध नही है, जिससे वांछित सूचना दिया जाना सम्भव नही है। इन सूचनाओ का सम्बन्ध पुरे प्रदेश के थानों से है, इस कारण सूचना संकलित करने में सात लाख पन्द्रह हज़ार रुपये का खर्च आने कि संभावना है, जिसे आप जमा कर दे। "
बात अगर आर टी आई कि करें तो एक्ट में कहीं भी सूचना संकलित करने हेतु उस पर होने वाले व्यय के लेने का प्रावधान नही है, पर पुलिस महानिरक्षक पाण्डेय साहेब एक्ट पर कोई बहस नही करना चाहते...... आप कर भी क्या सकते हैं, और वैसे भी लुटने वालों को लुटने का बहाना चाहिए...........
Posted by सूचना एक्सप्रेस 1 comments
इनामी दस्यु मोहन गुर्जर ढेर
मध्यप्रदेश और राजस्थान में वांटेड और अपना नया गैंग खड़ा करने वाला मोहन गुर्जर गुरुवार की सुबह पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया। घंटे भर चली गोलीबारी में 20 हजार का इनामी और लगभग 30 मामलों में वांछित मोहन गुर्जर मुरैना पुलिस की गोली से धराशायी हो गया। उसके छह साथी भागने में सफल हो गए।राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीहड़ में आतंक मचाने वाला डकैत सरगना जगन गुर्जर गैंग के सदस्य मोहन गुर्जर ने जगन गुर्जर से खटपट के बाद खुद का गैंग बना लिया था। उसके गैंग में छह सदस्य थे। मोहन राजस्थान के धौलपुर, बाड़ी, डांगबसई और मध्यप्रदेश के मुरैना, जौरा, सबलगढ़ आदि क्षेत्रों में लगातार वारदातें कर रहा था। वह राजस्थान में वारदात कर मध्यप्रदेश की सीमा में आ जाता था और फिर मध्यप्रदेश में वारदात करने के बाद राजस्थान भाग जाता था। मुरैना पुलिस के मुताबिक मोहन चंबल के बीहड़ों में अपने साले के यहां देवगढ़ में शरण लिए हुए थे। पुलिस ने बताया कि गैंग के पास एके 47 भी है। मुठभेड़ स्थल से पुलिस को एके 47 के कुछ राउंड मिले हैं। मोहन गुर्जर थाना डांगबसई नयापुरा राजस्थान का रहने वाला था।
Posted by बीहड़ 1 comments
Labels: बीहड़, बीहड़ में नई पौध, योगेश
डर
मेरे पड़ोस मे गिलहरी आती है
मेरे घर मे भी गिलहरी आती है
मेरे पड़ोस मे गौरैया भी आती है
मेरे घर मे भी गौरैया आती है
मेरे पड़ोस मे कई तरह के भय आते हैं
मेरे पड़ोस मे कई तरह के अपराध होते हैं
मगर फिर भी मेरे पड़ोस मे
गौरैया और गिलहरी दोनों आते हैं
कभी कभी मेरे घर पर भी!
मित्रों, मैं अब क्या करूँ
मुझे अब गौरैया और गिलहरी
दोनों से डर लगने लगा है!!
शशि भूषण द्विवेदी
Posted by shashi 2 comments
कराची में भारत के तूफान के आगे नहीं टिका पाकिस्तान
आज भारत का मैच देखकर मजा आ गया। वीरू की क्या कहें , अब तो अपने वीरू फॉर्म में आ गएँ हैं। काफी दिनों बाद सुरेश रैना की बैटिंग को देखकर मुझे मजा आ गया। एक बार मैं जमशेदपुर में भारतीय टीम के डिनर में हिस्सा लिया था। उस समय रैना से मेरी बातें डिनर टेबल पर हुई थी। उस समय गुरु ग्रेग भी टीम के साथ जुरे हुए थे। डिनर टेबल पर रैना बातें करने में कोई कंजुशी तो नहीं की लेकिन उसमे कांफिडेंस की कमी दिख रही थी लेकिन आज की पारी देखकर के नही लग रहा है की ये वाही रैना है। पाकिस्तान के खिलाफ तूफानी बैटिंग की और कांफिडेंस का परिचय भी दिया है। कल होंकोंग के खिलाफ रैना की पारी को क्रिकेट जानने वाले गंभीरता से नहीं ले रहे थे। लेकिन आज की पारी की बात ही कुछ और है। रैना को शुभकामनायें।
Posted by aditya 1 comments
26.6.08
ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर
हरे भाई ने जयपुर की सांस्कृतिक पत्रकारिता को लेकर मेरा ब्लॉग भडास पर डाला तो देश भर से फ़ोन पर फ़ोन आए। लेकिन क्या हम नही जानते कि हमारे टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर किस किस्म की मूर्खताएं हो रही हैं। कुछ नमूने आप भी मुलाहिज़ा फरमाएं । इन तस्वीरों के लिए सजग दर्शकों के प्रति हार्दिक आभार।
Posted by Unknown 4 comments
Labels: ब्रेकिंग न्यूज़ पत्रकारिता खबरें
भड़ास: भड़ास सुभिदा
भड़ास: भड़ास सुभिदा
pehle to sabhi bhadshion ko mera pyar bhara salam....
iske baad main apne saher se start krta hu.
meerut main media alag andaj main nazar aane laga hai.new jainration kuch kar gujarne ko tayyar hai. kuch dimagi taor par abhi tayyar ho rahe hai. fiza badalne lagi hai. jiske bhi hath main kemra aur kalam hai whi khud ko reporter samajhne laga hai. yeh senior reporter's ka dard bhi hai aur unki duwidha ka sabab bhi.
Posted by SHEHZAD AHMED 2 comments
E-24 से एक साथ 30 मीडियाकर्मी बाहर किए गए
हिंदी मीडिया की एक बड़ी खबर। इंटरटेनमेंट न्यूज चैनल E-24 से 30 पत्रकार एक साथ बाहर निकाल दिए गए हैं। मुंबई से भड़ास4मीडिया को सूत्रों द्वारा मिली पक्की सूचना के मुताबिक इंटरटेनमेंट चैनल E-24 जो अभी हाल में ही लांच किया गया था, से 30 हिंदी मीडियाकर्मियों को एक झटके में बाहर कर दिया गया। न तो इन्हें कोई नोटिस दिया गया और न ही कोई अग्रिम सूचना। एक साथ इतने ज्यादा मीडियाकर्मियों को बाहर किए जाने के पीछे जो कारण बताये जा रहे हैं उसके मुताबिक यह चैनल इंटरटेनमेंट न्यूज के कांसेप्ट पर सफल नहीं पाया और लगातार अंदरूनी उठापटक के चलते वो मुकाम न हासिल कर सका जिसकी कल्पना करके इसे लांच किया गया था। साथ में एक अपुष्ट खबर यह भी है कि.......
Read More....
हिन्दी मीडिया का काला अध्याय
एक प्रोडक्शन हाउस ने हाल ही में खोले गए अपने हिन्दी इंटरटेन्मेंट चैनल से एकमुश्त ३० स्थायी मीडियाकर्मियों की छंटनी कर दी औऱ अब ये सारे के सारे सड़क पर आ गए हैं। हाउस ने छंटनी करने के एक दिन पहले तक उन्हें नहीं बताया कि उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है। छंटनी के दिन उनसे सीधे कहा गया कि अब हमें आपकी जरुरत नहीं है।
हिन्दी टेलीविजन के इतिहास में पहली ऐसी घटना है जहां एक साथ ३० लोगों को बिना पूर्व सूचना के काम से बाहर निकाल दिया गया। यह कानूनी तौर पर गलत तो है ही साथ ही मीडिया एथिक्स के हिसाब से भी गलत है। वाकई हिन्दी मीडिया के इतिहास का यह काला अध्याय है और हम ब्लॉग के जरिए इसका पुरजोर विरोध करते हैं।
मीडिया संस्थानों से पत्रकारों को निकाल-बाहर करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी कई चैनलों से बड़े-बड़े अधिकारियों को आपसी विवाद या फिर चरित्र का मसला बताकर निकाल-बाहर किया गया है। लेकिन टेलीविजन के इतिहास में शर्मसार कर देनेवाली शायद ये पहली घटना है जब एक ही साथ तीस मीडियाकर्मियों को जरुरत नहीं है बताकर निकाल दिया गया। इनमें नीचे स्तर से लेकर प्रोड्यूसर लेबल तक के लोग शामिल हैं। हाउस अगर निकालने की वजह सबके लिए व्यक्तिगत स्तर पर बताती है तो इसके लिए उसे काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। संभव है कि अगर ये सारे लोग मिलकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं तो प्रोडक्शन हाउस पर भारी पड़ जाए।
Read More....
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 2 comments
Labels: ई 24, नौकरी से बाहर, बैग, भड़ास4मीडिया, मीडिया हलचल, हिंदी मीडिया
25.6.08
सूत्रधार के लिए
पिछले दिनों हरे प्रकाश जी के विचार भड़ास पर पढ़े जिसमे भिखारी ठाकुर की कविता 'रेलिया बैरन पिया को लिए जाय रे 'को उधृत करते हुए उन्होंने भिखारी ठाकुर को याद किया था तब एक रेख सी बनी थी दिमाग में भिखारी ठाकुर की , जो एक भोजपुरी कवि की थी लेकिन जब संजीव का उपन्यास 'सूत्रधार ' को पढ़ रहा हूँ तो मन जैसे भिखारी ठाकुर के छपरा में घूम रहा है । जहाँ 'विदेसिया 'की गूंज है 'नाइ बहार' है 'भाई वियोग ' सूत्रधार पढ़ने के बाद पता चला की भिखारी ठाकुर की सख्शियत लोक और संस्कृति को अपने नाट्य रगों से सीचने वाले शख्स की रही है मामूली हज्जाम से नत सम्राट की इस रंग यात्रा में जातिगत घृणा के जिन कडुवे अनुभवों से भिखारी ठाकुर को गुजरना पड़ा वे अंत तक शूल की तरह उनकी छाती में गड़ते रहे और सूत्रधार को पढने वाले पाठक के ह्रदय में भी यह सच है की विज्ञानं ने हमारे कठिन जीवन को सरल बनाया और बडे नाजुक मौको पर अपना हाथ बढा कर मानवता की पीड़ा को दूर किया लेकिन यह भी सच है की विज्ञानं की देन आधुनिक प्रचार माध्यमो ने हमारे मन के उन कोनो को बंजर भी बनाया है जिनमे तीज त्यौहार गीत गवनई उमंग और उल्लास के साथ लहलहाते रहें हैं । गाँव के खपरैल और चूल्हे चौके से उठने वाले गीत तो ख़त्म हो ही रहे हैं लोक संस्कृति की छौंक लिए नाच नौटंकी भी इन माध्यमो ने लील लिए ऐसे में भिखारी ठाकुर को याद करना तपती हुई धूप में एक बादलके टुकडे जैसा है जो चंद लम्हों के लिए ही सही राहत ज़रूर देता है ।
दीपेन्द्र
Posted by Deependra 0 comments
प्रिंसीपल रिचा बावा चौहरे कत्ल की सीबीआई जांच
आरूषि व हेमराज हत्याकांड को नोयडा में बैठी अंतरराष्ट्रीय मीाडिया जिस तरह महिमामडिंत कर रही है, मान लेते हैैं कि ठीक है। लेकिन देश के भागों में ऐसे कई अनगिनत हत्याएं हो रही हैैं, जिसमें राजनेता से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों की सांठ-गांठ होती हैैं। दिल्ली में बिल्ली छत से कूदती है तो उसे क्भ्भ् देश देखता है, लेकिन जब दिल्ली के बाहर कोई बड़ी घटना घट जाती है तो उसे कोई नहीं देख पाता। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के पीछे की सच्चाई जानने में जुटी नोयडा व दिल्ली की प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया को जालंधर (पंजाब) में चौहरे कत्ल के राज से भी पर्दा उठाने की कोशिश करना चाहिए। पंजाब में जालंधर को माडिया सैैंटर माना जा रहा है, लेकिन जालंधर में एक ही रात में चार लोगों का कत्ल होता है, कुछ दिन तक पुलिस के साथ-साथ मीाडिया दिग्गज अंधेरे में तीर चलाते हैैं, बाद में पुलिस चुप के साथ मीडिया चुप हो जाती १९० दिन बाद भी पुलिस को कोई अहम सुराग नहीं लगा है। सबसे बड़ी बात तो यह कि जालंधर में जिसकी हत्या की गई वह कोई ऐरी गैरी नहीं थी, बल्कि समाज की प्रतिष्ठित महिला थी। जालंधर के कन्या महाविद्यालय (केएमवी) की तेजतर्रार प्रिंसीपल रिचा बावा थीं। जिनका समाज के कई तबकों से तालुक था। शिक्षा जगत में अपने नाम की लोहा मनवा चुकीं रिचा बावा का नाम राजनीति गलियारों से लेकर बालीवुड के उम्दा कलाकारों के साथ जुड़ा रहा। जालंधर ही नहीं पंजाब, दिल्ली, कलकत्ता, हिमाचल, नोयडा, मुंबई और देश के अन्य स्थानों पर उनके अच्छे जानने वाले थे। पर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में उनके चौकीदार समेत उनकी हत्या कर दी गई। पुलिस भले ही जांच टीम का बहाना बनाकर मामले से पर्दा न उठाना चाहे, लेकिन खुद सरकार भी इस मामले से परदा नहीं उठवाना चाह रही है। अरूषि-हेमराज हत्याकांड की यूपी की मुख्ममंत्री से दिलेरी दिखाते हुए जांच सीबीआई को सौंप दी, जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को अपनी पुलिस पर ही यकीन है। बावजूद 5 महीने से ऊपर होने को हैैं, पुलिस अभी तक हत्यारों का सुराग तक नहीं लगा सकी। ऐसे में पंजाब पुलिस और पंजाब सरकार दोनों कठघरे में हैैं। पंजाब सरकार इसलिए कठघरे में है कि जालंधर के भाजपा विधायक केडी भंडारी द्वारा सदन में सीबीआई जांच करने की मांग को अकाली-भाजपा सरकार ने यह कह कर मना कर दिया कि पुलिस जांच करेगी।
क्रमश : -
महाबीर सेठ, जालंधर
Posted by Unknown 0 comments
प्रिंसीपल डॉ ऋचा बावा समेत चौहरे कत्ल की सीबीआई जांच क्यों नही
आरूषि व हेमराज हत्याकांड को नोयडा में मीडिया जिस तरह परदे पर दिखा रही है, मान लेते हैं कि ठीक है। लेकिन देश के अन्य भागों में ऐसे कई अनगिनत हत्याएं हो रही हैं , जिसमें राजनेता से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों की सांठ-गांठ होती है ।
दिल्ली में बिल्ली छत से कूदती है तो उसे १५५ देश देखता है, लेकिन जब दिल्ली के बाहर कोई बड़ी घटना घट जाती है तो उसे कोई नहीं देख पाता। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के पीछे की सच्चाई जानने में जुटी नोयडा व दिल्ली की प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया को जालंधर (पंजाब) में चौहरे कत्ल के राज से भी पर्दा उठाने की कोशिश करना चाहिए।
पंजाब में जालंधर को मीडिया सेंटर माना जा रहा है, लेकिन जालंधर में एक ही रात में चार लोगों का कत्ल होता है, कुछ दिन तक पुलिस के साथ-साथ मीडिया दिग्गज अंधेरे में तीर चलाते हैं , बाद में पुलिस चुप के साथ मीडिया चुप हो जाती है । १९० दिन बाद भी पुलिस को कोई अहम सुराग नहीं लगा है। सबसे बड़ी बात तो यह कि जालंधर में जिसकी हत्या की गई वह कोई मामूली हस्ती नहीं थी, बल्कि समाज की प्रतिष्ठित महिला थी। जालंधर के कन्या महाविद्यालय (केएमवी) की तेजतर्रार प्रिंसीपल डॉ रीता बावा थीं। जिनका समाज के कई तबकों से तालुक था। शिक्षा जगत में अपने नाम की लोहा मनवा चुकीं डॉ ऋचा बावा का नाम राजनीति गलियारों से लेकर बालीवुड के उम्दा कलाकारों के साथ जुड़ा रहा। जालंधर ही नहीं पंजाब, दिल्ली, कलकत्ता, हिमाचल, नोयडा, मुंबई और देश के अन्य स्थानों पर उनके अच्छे जानने वाले थे। पर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में उनके चौकीदार समेत उनकी हत्या कर दी गई। पुलिस भले ही जांच का बहाना बनाकर मामले से पर्दा न उठाना चाहे, लेकिन खुद सरकार भी इस मामले से परदा नहीं उठवाना चाह रही है।
क्रमशा :
Posted by Unknown 0 comments
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को
सुरा को लेकर मैंने जो सुरा के संबंध में टिप्पणी की थी , मेरी उस टिप्पणी पर पी.सी. रामपुरिया, बहन मनीषा, मोहतरमा मुनव्वर सुल्ताना,डॉक्टर रुपेश श्रीवास्तव और भव्य भड़सी यशवंतजी की बेहद मज़ेदार और दिलचस्प टिप्पणियां मेरे खाते में दर्ज हुई हैं । पढ़कर खुमारी और बढ़ गई। हां एक बात समझ में नहीं आई कि जो डाक्टर मरीज को नियमित दवा-दारू लेने की सलाह देते हैं वही डाक्टर सुरा का विरोध कैसे कर सकते हैं? आसव और अरिष्ट भी सुरा के ही रूप हैं। और-तो-और दही भी दूध के फरमेंटेशन से ही बनता है। दूध के (दहःधातु यानी दहन ) जीवाणु दहन से दही का बनना भी वही है, जो मंड या शर्करा के फरमेंटेशन से सुरा का बनना है। इसी दही को अमृत तुल्य मानकर पंचामृत के रूप में भक्तगण पूजा के बाद ग्रहण करते हैं। हां दोष सिर्फ मात्रा का होता है,मजमून का नहीं।
सुरूर शराब का मिकतार पर होता नहीं मौकूफ
शराब कम है तो साकी नजर मिला के पिला
शिकन जबीं पर न डाल शराब देते हुए
ये मुस्कुराती चीज़ है मुस्कुरा के पिला।
और फिर मेरे तजुर्बे के मुताबिक
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को
इसने खिला-खिला दिया झरते गुलाब को
दो दिन जिये या चार चलो पी के तो जिए
वैसे भी ये जगह हमें कब पसंद है
रिंदों में नाम लिख लिया अच्छा ही किया
माथे से लगा बढके तू इस खिताब को
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को।
खैर..इस बहाने एक अच्छी गल्प-गोष्ठी हो गई और इस महफिल में जो भी शामिल हुए सभी का शुक्रीया।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
प्रस्तुतीःमृगेन्द्र मकबूल
Posted by Maqbool 1 comments
गुमनामी का ग़म
कुछ दर्द लफ्ज़ बन कर दिल से निकल जाते हैं,
कुछ शूल बनकर इस दिल में ही रह जाते हैं,
इन्ही कहे-अनकहे लफ्जों से लिखी हुई
एक दर्द-ऐ-दिल की दास्तान हूँ मैं
कुछ आंखों से अश्क बन कर बरस पड़ते हैं,
कुछ आंखों में अंगार बन कर रह जाते हैं,
इन्ही ख़ामोश, गहरी आंखों में बसे,
मूक अश्कों की बेबस जुबां हूँ मैं।
कभी गिरी तो ज़मीन पर से न उठाया किसी ने
मेरी धूल पोंछकर न सीने से लगाया कभी,
ख़ुद गिरना-संभालना बहुत हो चुका,
अब इस तन्हाई-बेबसी से परेशान हूँ मैं।
आज आया क्या यहाँ पर हे मसीहा कोई???
झुककर मुझे उसने उठाया है अभी,
पोंछ कर मेरी धूल सीने से लगाया है मुझको,
ये क्या हो रहा है? कैसे भला ...
सोचकर बहुत हैरान हूँ मैं
फिर रख कर मुझे सामने बड़े प्रेम से
वो मुझे गौर से पढ़ने लगा,
हर लफ्ज़ पे उसकी निगाह जो गयी,
पढ़ कर उसकी आँखें डबडबा सी गयीं,
जी उठी दास्ताँ, मिल गई रोशनी,
यूँ लगा, जैसे अश्कों को जुबां मिल गयी।
पर वो भी इंसान था, कोई मसीहा नहीं,
पढ़ लिया मगर, समझा न एक लफ्ज़ भी सही,
रख दिया मुझे फिर वहीँ ज़मीन पर,
और होटों पे उसके हसीं छा गयी
ऐसे ही नासमझों की झूठी मुस्कान हूँ मैं।
मैं अनजान हूँ, मैं परेशान हूँ
जान कर भी न कोई पहचाने मुझे
इस बात से हैरान हूँ मैं।
मैं हूँ बेबस निगाहों से बहता लहू,
जुबां है मगर फिर भी बेजुबान हूँ मैं।
कहे-अनकहे लफ्जों से लिखी हुई
एक दर्द-ए-दिल की दास्तान हूँ मैं।
ओ जानेवाले, मुड़ कर तो देख
सिर्फ़ दास्ताँ नही, एक इंसान हूँ मैं।।
-ऋतु गुप्ता
Posted by Ritu Gupta 4 comments
Labels: poetry, ऋतु गुप्ता, कविता, पहली पोस्ट, भड़ास
मां रोती क्यों है
उत्तरप्रदेश के अधिकांश हिस्सों में एक प्रथा है. शादी के लिए बेटे की बारात बिदा करते समय,हर मां आखिरी बार बेटे को दूध पिलाती है.उस दौरान अधिकतर मांओं को मैंने रोते हुए देखा है. मेरी मां ने भी शादी के समय मुझे दूध पिलाया था. मैंने देखा कि उसकी आंखें नम थीं. इसका कारण आज तक ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा हूं.हर मां अपने बेटे को दूल्हा बने देखना चाहती है. उसकी खुशियां चाहती है. संतान को जरा सी तकलीफ होने पर रोने लगती है. उसकी खुशी के लिए कुछ भी करने के लिए हर समय तैयार रहती है. पर जब बेटा जवान होकर दुल्हनियां लाने चलता है, तो मां रोती क्यों है? क्या इसलिए कि उस दिन उसका बेटा पराया हो जाता है. या फिर इसलिए कि उस दिन मां सबसे अधिक खुश होती है. या फिर इसलिए कि वह यह सोचती है कि जो बेटा कल तक उसकी गोद में खेलता था, कितनी जल्दी बड़ा हो गया. कारण जो भी हो, मां आखिर रोती क्यों है???????????????
Posted by विशाल अक्खड़ 2 comments
24.6.08
गुम
यशवंत दादा आजकल मनीष राज जी नज़र नहीं आ रहें हैं । बेगुसराई से गए और न ही कोई नम्बर और पता दिए। किर्पया नम्बर तो भेजें । दिल्ली में कैसा चल रहा है। भड़ास में मेरी भी कोई जरुरत है या ........... खैर अपना पता और नम्बर जरुर मेल करें। deep555052@gmail.com
Posted by DINKAR 1 comments
उदय प्रकाश का कोई कांटेक्ट नंबर है?
from
Neeraj Kumar (neeraj.com@gmail.com)
to
Yashwant Singh (yashwantdelhi@gmail.com)
Yashwant bhai
namaskar,
Kya aapke paas Uday Prakash ka koi contact number hoga. Ek mitra "jaduiee yatharthvaad" (magical realism) par m.phil. karna chah raha hai aur mere gyan me Uday Prakash iske liye sabse makool shakhshiyat hain.
Aapko dubara sadhanyawaad shadhuwaad.
neeraj
neeraj.com@gmail.com
(नीरज भाई, मेरे पास उदय जी का नंबर नहीं है। कोई भड़ासी मित्र आपके मेल आईडी पर आपको उदय जी का नंबर मेल कर देगा, इस आशय से आपकी मेल को यहां डाल रहा हूं।....यशवंत)
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 3 comments
Labels: उदय प्रकाश, जानकारी, भड़ास, मेल, मोबाइल नंबर
अनुजा का ब्लागः जिस स्त्री-विमर्श शब्द को आदि-अंत माना गया है, मैं उसे नहीं मानती
मत-विमत नामक ब्लाग अनुजा का है। इस ब्लाग को भड़ास के कोने में जोड़ने के लिए अनुजा ने मेल भेजा था। इन दिनों जो व्यस्तताएं हैं उसमें दूसरे ब्लागों पर क्या चल रहा है, क्या लिखा जा रहा है....इसे देखने जानने की फुर्सत नहीं मिलती लेकिन उन ब्लागों को एक नजर जरूर देखता हूं जिन्हें भड़ास से जोड़ने के लिए अनुरोध किया जाता है। इसी क्रम में अनुजा के ब्लाग पर पहुंचा तो वहां ज्यादा पोस्टें तो नहीं दिखीं पर जो भी थीं वो गज़ब की ओरीजनल अंदाज में लिखी गईं थीं। किसी पूर्वाग्रह और दुराग्रह से मुक्त होकर, वही कुछ लिखा है अनुजा ने जिसे उन्होंने सच माना है, जिसे उन्होंने समझा-बूझा और गुना है। आप भी मत-विमत पर जाकर पढ़िए। एक पोस्ट चोरी करके यहां प्रकाशित कर रहा हूं। सिर्फ इसी पोस्ट को पढ़ लें तो आपको काफी कुछ जानने-समझने को मिल जाएगा।
-यशवंत
---------------------------
खोखला है यह स्त्री विमर्श
--अनुजा--
-----------
अधिकांश लोग यह कहते हैं कि 'मैं स्त्री-विमर्श को समझ नहीं पाई हूं। हमेशा स्त्री-विमर्श को देह से जोड़कर उसे अश्लील बना देती हूं।'
एक महिला-ब्लॉगर ने मुझको सुझाया कि 'मैं स्त्री की सीमाओं में रहकर ही अपनी बात को कहा-लिखा करूं। यूं खुलकर स्त्री की देह पर बात करना या लिखना हमारी सभ्यता-संस्कृति-परंपरा के खिलाफ है।'
मैं हर उस क्रिया-प्रतिक्रिया का स्वागत करती हूं जो मेरे लेखन या विचार की सहमति में आए या असहमति में। असहमतियां मेरे लेखन-विचार को ज्यादा 'मजबूत' बनाती हैं क्योंकि उनमें तर्क-वितर्क की संभावनाएं अधिक होती हैं।
खैर, जिन्हें ऐसा महसूस होता है कि मैं स्त्री-विमर्श को समझने में 'कमजोर' रही हूं या स्त्री-देह पर बात अधिक करती हूं तो उनसे इतना ही कहूंगी मैं 'बंधनों में रहकर' या 'लकीर का फकीर' बने रहना नहीं चाहती। मुद्दतों से जिस शब्द स्त्री-विमर्श को आदि-अंत मानकर स्वीकार लिया गया है मैं उसे नहीं मानती। न ही इस शब्द के प्रति मेरी कोई व्यक्तिगत या लेखिकीय सहानुभूति है।
पश्चिम से उधार लिए गए इस शब्द (स्त्री-विमर्श) पर हम सदियों से बहस करते चले आ रहे हैं मगर नतीजा 'शून्य' ही रहा है। इसके शून्य रहने का कारण भी है क्योंकि हमने स्त्री-विमर्श को 'देह से आगे' और 'देह से बाहर' जाने ही नहीं दिया। स्त्री-विमर्श या देह-विमर्श से आगे भी कोई स्त्री या उसका वजूद होता है हमने कभी जानने या समझने की कोशिश ही नहीं की। करते भी क्यों और कैसे? क्योंकि हमारे बुद्धिजीवि वर्ग ने स्त्री-विमर्श को अपनी 'जोरू' बनाकर जो रख छोड़ा है।
उन्हें जब भी स्त्री-विमर्श पर बात या बहस करनी होती है पहले अपनी जोरू को चाट-पकौड़ी खिलाकर उसे चटपटी-मसालेदार बनाते हैं फिर उसकी 'देह की चाट' से अपने कथित विमर्श को शांत करते हैं। उन्हें स्त्री-विमर्श नहीं केवल स्त्री की गर्दन और कमर से नीचे का लज़ीज स्वाद चाहिए ताकि उसके दमपर स्त्री-विमर्श किया जा सके। स्त्री उनके लिए देह थी, देह है और देह ही रहेगी।
एक बात और। कुछ 'पीड़ित लेखिकाएं' कह रही हैं कि 'स्त्री-विमर्श की ताकत के सहारे अब स्त्रियां खुल रही हैं। अपनी देह के मायने समझने लगी हैं।'
वाह! क्या तर्क रखा है पीड़ित लेखिकाओं ने। स्त्री-विमर्श में अगर ताकत होती तो आज 21वीं सदी में भी स्त्री की देह और अधिकार का फैसला पुरुष नहीं स्त्री ही कर रही होती। विवाह-संस्था तब पुरुषों की नहीं स्त्रियों की गुलाम होती। शादी की पहली रात मर्द के मर्द होने का सर्टिफिकेट मर्द नहीं स्त्री उसे देती। अगर तुमने स्त्री को देह के मायने समझाए होते तो आज मर्द का स्त्री की देह पर नहीं बल्कि स्त्री का अपनी देह के साथ मर्द की देह पर भी एकाधिकार होता।
स्त्री-विमर्श की पैरवी कर रहीं पीड़ित लेखिकाओं से मेरा कहना है कि एक बार वो अपने 'खोखले विमर्श' से बाहर आकर उस स्त्री को देखें, उसके संघर्ष, उसके त्याग को समझें जो दिनभर यहां-वहां मजदूरी कर मुश्किल से 15-20 रुपए कमा पाती है और दिनभर मजदूरी के बाद घर लौटकर घर में मजदूरी करती है तब उसके पास जाकर उससे पूछें कि तुम स्त्री-विमर्श के बारे में कितना और कहां तक जानती हो? अरे, 'ठंडे कमरों' में बैठकर 'गर्म स्त्री-विमर्श' करने से न स्त्री देह से मुक्त हो पाएगी न अपनी गुलामी से।
खोखले ढकोसले गढ लेने भर से कभी कोई विमर्श सार्थक नहीं हो सकता इसलिए मैं इस कथित स्त्री-विमर्श को सिरे से नकारती हूं, अब आप जो समझें।
अनुजा के ब्लाग मत-विमत से साभार
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 1 comments
Labels: अनुजा, चिंतन, बहस, ब्लाग प्रमोशन, मत-विमत, सोच, स्त्री विमर्स
सुरां न पीबति सः असुरः।
ध्यानार्थः श्री यशवंतजी और उनके देवतुल्य भड़ासियों के लिए
सुरा की महत्ता को लेकर जगदीश त्रिपाठी का रोचक लेख पढ़ा, मन हुआ कि सुरा के समर्थन में कुछ तथ्य मैं भी प्रस्तुत कर दूं। यथा- महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं- दीति और अदीति। दीति के पुत्र दैत्य तथा अदीति के पुत्र देवता कहलाए। असुरों ने सुरा न पीने का संकल्प लिया मगर सुरों ने उस प्रतिबंध को नहीं माना क्योंकि उनके पिता महर्षि कश्यप को इससे परहेज नहीं था। संस्कृत में कश्य का अर्थ ही शराब होता है। (कश्यःशराब,अपःपीनेवाला।) जिस जगह बैठकर देवता शराब का उत्कर्षण करते थे यानी आसव का उत्कर्षण (उत-सव) करते थे, वह क्रिया ही उत्सव कहलाई। मंड की बनी शराब, जिस स्थान पर देवता पीते थे, वह जगह ही मंडप कहलाई। और पीनेवालों का समूह मंडली कहलाया। शराब को सुरा भी कहा जाता है और ठीक वैसे ही जैसे मद्य को पीनेवाला मद्यप कहलाता है वैसे ही सुरा को पीनेवेले को सुर और न पीनेवाले को असुर कहा गया। सामवेद में तो यह तक कह दिया गया कि- सुरां न पीबति सः असुरः। हिंदू धर्म में गाय का मांस वर्जित है, शराब नहीं। इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध है मांसाहार पर नहीं और ईसाइयत में न शराब पर प्रतिबंध है और न ही मांसाहार पर। फारसी में स का उच्चारण ह होता है जैसे सप्ताह को हफ्ता कहा जाता है। वैसे ही असुर को अहुर कहा जाता है। अहुर राज्य असीरिया से अफगान और ईरान तक फैला था और नासिरयाल यहां का बादशाद था जो अपने को अहुर कहता था। अहुरमत्जा के महत्व को सभी जानते हैं। सुरा,सीता,प्रसन्ना,मधु, कादंबरी, आसव वारुणी, सौ से अधिक शब्द शराब के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हैं जो इस बात को प्रतीक हैं कि सुरों के समुदाय में सुरा का प्रचलन कितना था ? सुरा का ईश ही सुरेश कहलाता है जो तीस से अधिक सरक (पैग ) लगाकर ही सुर में आता है। सोमपान ही सामवेद में साम है और बिना साम के सामंजस्य कहां ? इसलिए है देवपुत्रो समस्त देवी-देवताओं के पावन स्मरण के साथ आप पतितपावनी वारुणी का प्रतिदिन पवित्र भाव से आचमण करें और अपने देवत्व में श्रीवृद्धि करें। ओम वारुणाय नमः।
पं. सुरेश नीरव
Posted by Unknown 6 comments
Labels: शराब
जिस शहर में अख़बार ख़ुद ही हॉबी क्लासेस चलायें और उसे ही सांस्कृतिक विकास का पैमाना मानें, उस शहर में सांस्कृतिक पत्रकारिता का यह हश्र तो होना ही था
Posted by Unknown 3 comments
Labels: पत्रकारिता, भड़ास, शिकायत, समय
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
खुले में कहीं वो नहाने लगेंगे
बदन पर जो साबुन लगाने लगेंगे
कसम से खुदा की मैं कहता हूं यारो
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
००००
जो बूढ़े भी नजरें लड़ाने लगेंगे
वो मंजर भी कितने सुहाने लगेंगे
किया इश्क का न बुढ़ापे में लफड़ा
तो बच्चों को डैडी जनाने लगेंगे।
-पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
Posted by Arvind pathik 1 comments
Labels: दो कते, पं. सुरेश नीरव, भड़ास
पं. सुरेश नीरव सम्मानित
भोपाल-सिंधुभवन, शिवाजी नगर में आयोजित विराट कवि सम्मेलन में हिंदी के लोकप्रिय कवि पं. सुरेश नीरव को श्री माथुर चतुर्वेदी महासभा की भोपाल शाखा तथा अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन ने स्वर्ण काव्य किरीट से सम्मानित किया और अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर जन्मदिवस के अवसर पर उन्हें अभिनंदित किया। इस अवसर पर इक्कीस कवियों ने रचना पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती उषा चतुर्वेदी( अध्यक्षः महिला कल्याण बोर्ड) ने की तथा संचालन अरविंद पथिक ने किया। इस अवसर पर भगवान सिंह हंस तथा पुरुषोत्तम नारायण सिंह को इस वर्ष के साहित्य श्री सम्मान से विभूषित किया गया।
प्रेषकः अरविंद पथिक
Posted by Arvind pathik 2 comments
Labels: सम्मान
एनकाउंटर पर उबले दिग्विजय
मध्यप्रदेश की मुरैना जिले की तहसील कैलारस में इन दिनों हलचल है। हलचल है एक अपराधी को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराए जाने की। असल में विरोध पुलिस के एनकाउंटर को लेकर है। पुलिस ने बीते दिनों यहा कल्लू सिकरवार नाम के व्यक्ति का एनकाउंटर कर दिया। पुलिस के मुताबिक वह फरार चल रहा था। इस बात पर जनता ने तीव्र विरोध है। लोगों का कहन है कि कल्लू फरार नहीं था। वह बकायदा अपने परिवार के साथ कैलारस कस्बे में रह रहा था। वह एक मामले के सिलसिले में कोर्ट में पेशी पर गया था। तभी पुलिस ने उसे मार गिराया। यहां तक तो बात ठीक थी लेकिन इस मामले में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी कूद पड़े हैं। उन्होंने बयान दिया है कि पुलिस को यह एनकाउंटर महंगा पड़ेगा। बताते हैं कि यह व्यक्ति दिग्विजय सिंह का रिश्तेदार था। इस रिश्तेदारी के कारण पूर्व मुख्यमंत्री को मुंह खोलना पड़ा। सच्चाई कुछ भी हो लेकिन इससे मध्यप्रदेश की पुलिस की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल खड़ा हो गया है।
Posted by बीहड़ 1 comments
Labels: बीहड़, बीहड़ में नई पौध, योगेश
23.6.08
स्वागत के प्रत्युतर में दो शब्द
आज भडास पर यशवंत भाई नै म्हारे स्वागत मै बढै कसीदे
काढ राखे सैं । और भई क्युं ना काढै आखिर हम इस
लायक है ही । इब शरमा शरमी मै, मैं न्युं तो नही कहूंगा
के नही नही मैं इस लायक कहां ? पर भई ताऊ तो इस लायक सै
और सोलह आनै सै । किसी नै ऐतराज हो तो हुया करै ।
बल्कि हमनै तो यो लागै सै कि स्वागत किम्मै माडा (कमजोर) ही
हुया सै । बातां सै तो घणा ही स्वागत हुया पर भाई , जरा
ढोल ढमाकां की कमी सी रह गी सै । कोई बात ना यशवंत जी आगे
भी मोके आते ही रहेंगे ।
आगे आपने स्वागत भासण मै कह्या सै की - म्हारे भडासी बनने
से कूछ लोगां नै तकलीफ़ हो सकै सै । सो भाइ हम उनके
कहनै सै तो भडासी बने नही सैं । म्हारी मर्जी , हम भडासी
बनै या संडासी । और जब तक हम भडासी सैं तब तक
तो ठिक सै , उनका पीछा सिर्फ़ बातां धोरै ही छूट ज्यागा ।
और जै हम संडासी बण गे तो भाई उनको घणी तकलीफ़
खडी हो जावैगी । इब थम तो जाणो ही हो कि, संडासी किस काम
आवै सै ? भई वो ही .. जिसनै कुत्ते और बन्दर पकडने के लिये
उनके गले मै डाल्या करते हैं । तो भाइ जिसनै तकलीफ़ हो रही
हो , वो सोचले कि ताऊ की के इच्छा सै । सो सोच समझ कर
बात करैं तो ठिक रहवैगा ।
और भाई इब ताऊ कै जचगी तो जचगी .. कर ले जिसने
जो करना सै .. ताऊ तो बन गया भडासी । किसी नै ऐतराज हो तो
अपनी राधा नै खिलावै । पर ताऊ सै इस बारे मैं बात नही करै ।
ताऊ एक बार अपनै ऊंट नै लेके सडक कै बीचों बीच जावै था ।
पिछे सै एक छोरा अपनी नई नई कार लेके ताऊ कै पीछे
पीं... पीं... होर्न बजानै लग रया था । ताऊ नै किम्मै ध्यान दिया नही ।
सो उस छोरे नै कार की खिडकी मै से गरदन काढ के जोर से आवाज
लगाई-- ओ ताऊ तेरे कान फ़ूट गे क्या ? एक तरफ़ क्यूं नही
हटता, इतनी देर से होर्न बजानै लग रहा हूं ?
ताऊ-- अरे छोरे ! ताता (गर्म) क्युं हो रया सै ?
यो सडक के तेरे बाप की सै ?
वो छोरा भी किम्मै अकडू ही दिखै था । सो उसनै जबाव दिया कि--
हां यो सडक म्हारे बाप की ही सै ! बोल इब के कर लेगा ?
ताऊ बोल्या-- अरे तो , उस तेरे बाप नै कहता क्युं नही के,
तेरे खातर इसनै चोडी करवा दे..... ! ताऊ तो बीच मै ही चलेगा ।
सो भाइ किसी नै तकलीफ़ हो तो म्हारा जबाव पढ लियो ।
अच्छा भाइ इब म्हानै इजाजत देवो कूछ काम धन्धा भी करण दो ।
सप्ताह खत्म होनै तक कूछ कचरा दिमाग मै इक्क्ठा हो गया
तो फ़ेर थारै दिमाग मैं उंडेल देवांगे । तब तक थ्यावस (सब्र) राखो ।
राम राम ..
Posted by Pt. P.C. Mudgal 4 comments
Labels: ताऊ
ब्लागर बालक के सवाल, गुरुवर अनिल यादव के जवाब
ब्लाग विवेचन कौमुदी
- अनिल यादव -
------------------
अयं कः?
-अयं ब्लागरः
ब्लागरं किं करोति?
-कटपट-पश्यति-खटपट- पश्यति, क्लिकति पुनपुनः मूषकम्।
ब्लागर कौन होता है?
-जिसके पास कम्प्यूटर होता है।
कंपूटर किसके पास होता है?
-जो साक्षर होता है।
क्या कंपूटर होने से कोई प्राणी ब्लागर होता है?
-नहीं, सिर्फ मनुष्य अब तक ब्लागर होता पाया गया है और इंटरनेट कनेख्शन भी अपरिहार्य है।
इंटरनेट किसके पास होता है?
-जो शुल्क देता है।
यह शुल्क लेता कौन है, क्या वणिक?
-चुप वे देवता हैं जो ज्ञान, सूचना और अभिव्यक्ति और मनोरंजन के समुद्र में तैरने के लिए कास्ट्यूम और उसके खारे जल की हानियों से जिज्ञासुओं की त्वचा को बचाने के लिए आसुत जल और तदुपरांत लोशन देते हैं। साधु, साधु।
किंतु कंपूटर किसके पास होता है?
-जिसके पास उसे रखने के लिए एक मेज हो।
मेज किसके पास होती है?
-जिसके पास उसके समक्ष रखने के लिए एक कुर्सी हो।
कुर्सी किसके पास होती है?
-हां यह भी एक तरह की खामोश, अनुल्लेखनीय सत्ता है, अधिक काल तक उस पर वही बैठ पाता है जो नितंब-दाह से बचने के लिए उस पर कुशन रखता है।
कुशन किसके पास होते हैं?
-जिसके पास अन्य कुशन होते हैं अर्थात वे समूह में रहते हैं।
अन्य उपादान?
-नेत्र हानि से बचने के लिए चश्मा, पानी के लिए जलछुक्कक, काफी का मग जिसमें काफी, चाय या बियरादि वैकल्पिक द्रव हों.
ये सब क्या अंतरिक्ष में अवस्थित होते हैं?
-मनुष्य जिस गुरूत्वाकर्षण का दास है उसी से आबद्ध होने के कारण कदापि नहीं, ये किसी नगर या उपनगर के किसी पुर के भवन में या भवन के एक कमरे में स्थित होते हैं।
भवन या कमरा किसका होता है?
जो उसका स्वामी होता है या किराया अदा करता है।
किराया का पण्य क्या होता है?
-मुद्रा- लीरा, डालर या रूबल देश, काल, परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय किंतु अपने मूल स्वरूप में अविचल एवं अपने समान पण्य की सभी वस्तुओं यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि को क्रय कर सकने में सक्षम. साधु साधु।
ब्लागर का संपूर्ण अपरिहार्य एवं तात्कालिक परिवेश कितने मूल्य का होता है?
-अगर वह अविवाहित, समूह में रहते हुए लैमारी का अभ्यासी या कार्यालय के संसाधनों का प्रयोग करने में निपुण नहीं है तो भारतीय मुद्रा में न्यूनतम बीस हजार रूपए।
इतनी भारतीय मुद्रा कहां से आती है?
-चाकरी, व्यापार किवां उत्कोच या चोरी करने से अन्य स्रोत भी हैं जिनका तुम्हारी हरी धनिया सी ताजी और खुशबूदार चेतना पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। साधु-साधु।
उत्पादन की प्रक्रिया का चिंतन से गूढ़ संबंध है अस्तु बीस हजार या अधिक भारतीय मुद्रा अर्जित करने की प्रक्रिया ब्लागर रूपी जातक की चेतना पर प्रभाव डालती है और उसके विचारों को कैसे रूपांतरित करती है?
-उसके मष्तिष्क का प्रतिबद्धता भाग लुप्त हो जाता है, विवेक भाग उत्तरोत्तर क्षीण होता है, अपने वर्तमान स्तर की सुरक्षा व प्रगति हेतु चेष्टा करने वाला भाग ग्रीष्म के वायु की भांति प्रलयंकर हो जाता है। तो क्या निर्धन, विकलांग, स्त्रियां, बालक या पण्यविहीन वनों में रहने वाले संन्यासी ब्लागिंग नहीं कर सकते यदि करें तो उनके विचार कैसे होंगे? किसी प्रकार की विकलांगता, लिंग या वय से इसका संबंध नहीं है इसका संबंध संसाधन एवं तकनीक के ज्ञान से है जिसके संसाधन गुड़ है जिसके पीछे ज्ञान कुत्ते की तरह विचरण करता है। साधु साधु।
ब्लागिंग का उपयुक्त काल क्या है और इसे कैसे करना चाहिए?
-प्रातः प्रातराश से पूर्व या रात्रि को कोलाहल प्रिय परिजनों के शयन के पश्चात, यदि सिद्ध हो जाए तो कभी भी किया जा सकता है।
इसका हेतु क्या है और यह क्यों आवश्यक है?
-इसका अविष्कार ग्राम सभ्यता, संयुक्त परिवारों एवं कृषि आधारित व्यवस्था के उच्छेद काल के परवर्ती भ्रष्टाचार के कच्चे माल से चलने वाले उद्योगों से प्रकीर्ण महानगरों में मनुष्य के अकेले पड़ जाने के पश्चात असुरक्षा की भावना के शमन के लिए हुआ। भली प्रकार से सुसज्जित एवं अन्य सुखकर उपादानों से आच्छादित किंतु बंद प्रकोष्ठों में बैठे मनुष्य समूह से पृथक श्रृंगालों की भांति हुंआ-हुंआ करते हैं अन्य उनकी ही ध्वनि को प्रतिध्वनित करते हैं तब उन्हें एक बार फिर समूह में होने का आभास होता है। इसी प्रक्रिया में एक अन्य रसायन का भी स्राव होता है जिससे लगता है कि श्वान काष्ट की विशाल गाड़ी की छाया में सुखपूर्वक चलने की बजाय उसे संपूर्ण बल से खींच रहा है। तदनंतर इस कल्पित पुरूषार्थ से श्वास फूलने लगता है और वत्स तुमसे यह गुप्त भेद कहता हूं कि उसकी अनुभूति संतति प्राप्ति हेतु किए गए मैथुन से श्लथ आत्मा को मिलने वाले उल्लास मिश्रित आनंद से भिन्न नहीं होती।
इन श्रृंगालों का स्वामी कौन है?
-वे आभासी विश्व में रहने के अभ्यस्त हो चले हैं अतः उनमें से अधिकांश स्वयं को स्वामी कहते है, कुछ के स्वामी आभासी विष्णु हैं जो क्षीरसागर में बीस हजार किमी से अधिक लंबे इंटरनेट केबिल रूपी शेषनाग पर लेटे लक्ष्मी से पैर दबवाते रहते हैं।
क्या विष्णु ब्लागिंग करते हैं?
-नहीं करते तो अब करेंगे लेकिन अब तुम जाओ सुत रहो। अगले सत्र में अपने मातृकुल से अनुमति से लेकर आना।
-anil yadav मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
(अनिल यादव के ब्लाग हारमोनियम से साभार)
नही तो विस्फोटक होगी स्थिति
एक ब्रितानी संस्था एक्शन ऐड ने दावा किया है की भारत में नवजात बच्चियों की जानबूझकर अनदेखी की जाती है और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, संस्था का कहना है की भारत में कन्या भ्रूण हत्या का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है, संस्था की रिपोर्ट विस्फोटक खुलासा करती है की देश के संपन्न मने जाने वाले राज्य पंजाब में प्रति दस लड़कों के अनुपात में केवल आठ लड़कियाँ हीं हैं, आधुनिकभारत में भी क्शिषित दंपत्ति लड़कों की चाहत रखतें हैं और व्रत-उपवास रखतें हैं, एक्शन ऐड का कहना है की यदि जल्द ही भारतीय लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं हुआ तो स्थिति विस्फोटक हो जायगी, सनद रहे की हरियाणा में आज लड़कों को शादी के लिए लड़कियाँ नहीं मिल रहीं हैं, इसके चलते वे बंगाल जाकर शादी रचाने को मजबूर हैं, और तो और अभी हाल ही में हरियाणा में फर्जी दुल्हन सप्लाई करने वाला गिरोह पकडाया है, जो वहां के लड़कों और उनके परिजनों को सुंदर लड़कियां दिखाकर विवाह का झांसा देतें हैं, मुहमांगी कीमत लेकर उनकी शादी करते थे और उनकी तथाकथित पत्नी उनका सामान लेकर चंपत हो जतिन थीं. ब्रितानी संस्था ने खुलासा किया है की प्रति १००० लड़कों कस अनुपात में ९५० लड़कियां होनी चाहिए, जबकि भारत कस पञ्च शहरों में किए गए सर्वे के अधर पर यहाँ प्रति १००० लड़कों पर केवल ८०० लड़कियां मिलीं. २००१ की जनगणना के बाद लड़के और लड़कियों के अनुपात में गजब का अन्तर आया है, इतना ही नही पिछ्के २० सालों में करीब १ करोर लड़कियों को गर्भ में मर दिया गया, भारत जैसे देश में, जहाँ की संस्कृति संवेदनशील maनी जाती है, उसमे बेटियों के लिए संवेदनशीलता क्यों नही है, इस दिशा में न तो सरकार कुछ खास कर नही पा रही है, भले ही अल्ट्रा साउंड तकनीक से भ्रूण जाँच पर प्रतिबन्ध हो, लेकिन सभी जानते हैं की गली-गली में खुल रहे क्लिनिक लोगों को यह सुविधा उपलब्ध करा रहें हैं, इन पर अंकुश लगने के लिए सरकार को केवल कड़े कदम ही नही उठाने होंगें बल्कि कुछ रचनात्मक और प्रोत्साहनात्मक योजनायें भी चलानी होगीं जैसे मध्य प्रदेश सरकार ने किया है, लाडली लक्ष्मी और मुक्यमंत्री कन्यादान योजना दो ऐसीही योजनायें हैं, जो अधिकारों से वंचित लड़कियों को उनके पैरों पर खड़े होना सिखाती है, नही तो वो दिन दूर नही जब इस देश के लड़कों को कुंवारा ही रहना होगा, और गिनी चुनी बची लड़कियां अपने भाग्य पर इत्रएँगीप्रियंका kaushal
Posted by priyankakhat 2 comments
खुद चूने का पान हुए संयोजकजी
हास्य-ग़ज़ल
कवियों में मलखान हुए संयोजकजी
रसिकों के रसखान हुए संयोजकजी
इतनी तंबाकू-कत्थे से की यारी
खुद चूने का पान हुए संयोजकजी
चुनचुनकर सब फ्लाप कवि, एक टीम रची
खुद उसके कप्तान हुए संयोजकजी
मंचखोर तुक्कड़ कवियों के टापू में
मनचाहे वरदान हुए संयोजकजी
भरते सुबहो-शाम जिन्हें मिलकर चमचे
ऐसे कच्चे कान हुए संयोजकजी
मरियल कवि को मिला लिफाफा मोटा-सा
मंद-मंद मुस्कान हुए संयोजकजी
पाल-पोसकर बड़े किये चेले-चांटे
गुरगों के भगवान हुए संयोजकजी
पशुमेला क्या लालकिला तक चर डाला
भैया बड़े महान हुए संयोजकजी
फसल बचाएं मठाधीश की चिड़ियों से
देखो स्वयं मचान हुए संयोजकजी
नीरव से मुठभेड़ हुई जब करगिल में
पिटकर पाकिस्तान हुए संयोजकजी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
Posted by Unknown 3 comments
Labels: हास्य-ग़ज़ल