विनय बिहारी सिंह
अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि कृष्ण और काली कैसे एक हैं? इसका प्रमाण क्या है? प्रमाण तो वे संत और सन्यासी हैं जो कृष्ण और काली के दर्शन कर चुके हैं। इनमें रामकृष्ण परमहंस और परमहंस योगानंद जैसे दिव्य संतों का नाम लिया जा सकता है। रामकृष्ण परमहंस तो गोपाल (कृष्ण) के साथ स्नान करते थे, उनके साथ खाते थे और बाल कृष्ण शरारत करते थे तो उन्हें मारते भी थे। बालकृष्ण मार खा कर रोते थे। फिर वे रामकृष्ण परमहंस से रूठ जाते थे। रामकृष्ण परमहंस तब रो कर उन्हें मनाते थे। गोपाल एक संत का सरल हृदय औऱ भक्ति देख कर पिघल जाते थे और फिर उनके साथ खेलने लगते थे। मां काली ने उन्हें कैसे दर्शन दिया, यह इन पंक्तियों के लेखक ने पहले ही एक लेख में विस्तार से बताया है। इसी तरह परमहंस योगानंद ने कृष्ण और जगन्माता के कैसे दर्शन किए यह उनकी पुस्तक योगी कथामृत (आटोबायोग्राफी आफ अ योगी) में है। भगवान कृष्ण के दो बाएं हाथों में शंख और पद्म (कमल का फूल) है तो मां काली के दाहिनी ओर के दोनों हाथ भक्तों को अभय दान और वरदान दे रहे हैं। भगवान कृष्ण के दोनों दाएं हाथों में चक्र और गदा है तो मां काली के दोनों बाएं हाथों में नरमुंड और खड्ग है। यानी दो हाथों में दुष्ट शक्तियों के संहार के साधन और दो हाथों में भक्तों की रक्षा और वरदान- यह मां काली और भगवान कृष्ण दोनों ही के चित्र संकेत करते हैं। मां काली का तीसरा नेत्र भी है। दोनों भौंहों के बीच में।यह दिव्य नेत्र है। भक्तों को भी यह दिव्य नेत्र उपलब्ध हो सकता है। अगर वे अपना हृदय और दिमाग मां काली को अर्पित कर दें। भगवान कृष्ण को तो योगेश्वर या महायोगी कहा ही गया है। जब वे अर्जुन को अपना दिव्य रूप दिखाते हैं तो उनकी असंख्य आंखें, असंख्य मुंह, असंख्य हाथ पैर और सारे अंग हैं। यानी वे अनंत हैं। मां काली भी अनंत हैं। दोनों ही एक हैं। एक प्रकृति हैं तो दूसरे पुरुष। और अगर गहरे जाएं तो प्रकृति और पुरुष भगवान ही हैं। वे ही प्रकृति हैं और वे ही पुरुष। तमाम संतों ने कहा है कि जो कृष्ण हैं, वही काली हैं।
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