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30.12.08

संत- महात्मा करते क्या हैं?



विनय बिहारी सिंह


कई मित्रों ने सवाल किया है कि संत- महात्मा करते क्या हैं? वे समाज का भला तो करते नहीं? आज इसी पर विचार किया जाए। लेकिन यहां उन कथित बाबाओं, संतों वगैरह की बात नहीं हो रही जो धर्म या आध्यात्म को धन और ख्याति के बाजार में उतरने की सीढ़ी मानते हैं। उनकी संख्या आज बहुत ज्यादा हो चली है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि धर्म, अध्यात्म या संसार के सभी धर्म ग्रंथ व्यर्थ हैं। आज भी इन धर्म ग्रंथों की प्रासंगिकता है। यहां उनकी बात हो रही है जो परमार्थ के लिए संत हैं या बीते समय में रहे हैं।
-वृक्ष कबहुं न फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।।
(वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाता, न ही नदी अपना जल संचित करती है। साधु परमार्थ के कारण ही शरीर धारण करता है)।
इससे तो साफ हो गया कि साधु- संतों का काम क्या है। आध्यात्म तो विग्यान है (तकनीकी कारणों से ग्य ऐसे ही लिख पा रहा हूं)। हमारे दिमाग में १०० बिलियन न्यूरांस होती हैं। जब हम नींद में होते हैं इनमें से ज्यादातर सुषुप्ता अवस्था में होती हैं। लेकिन ज्योंही हम जग जाते हैं, ये सक्रिय हो जाती हैं। जागते ही हमारा दिमाग चारो तरफ दौड़ने लगता है। सच्चे साधु- संतों ने हमें सिखाया है कि दिमाग को कैसे शांत रख सकते हैं। आइंस्टाइन ने हमें बताया था- इनर्जी इज इक्वल टू मैटर। यानी पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है। इसी तरह ऊर्जा को भी पदार्थ में बदला जा सकता है। फिर आइंस्टाइन ने ही कहा- अगर किसी ऊर्जा को माइनस २७३ डिग्री सेल्सियस तक ले जाया जाए तो वह जिरो इनर्जी यानी ऊर्जा विहीन की स्थिति होगी। इसे ही हम टोटल केल्विन स्टेट कहते हैं। ध्यान या मेडिटेशन के जरिए, हम इसी टोटल केल्विन स्टेट तक पहुंचते हैं। तब हमारा मन एकाग्रचित्त हो जाता है। संत- महात्मा हमें इसी टोटल केल्विन स्टेट तक पहुंचने का वैग्यानिक तरीका बताते थे। इससे क्या फायदा होता है? इसे बताने की जरूरत है क्या? मन जब शांत रहेगा तो हमारा दिमाग ज्यादा रचनात्मक होगा। झगड़ा- फसाद औऱ तनाव से मुक्त होने का तरीका साधु- संत पैसा लेकर नहीं बताते थे। वे तो इसे मुफ्त में बांटते थे। व्यक्ति से ही तो समाज, देश औऱ दुनिया बनती है।

2 comments:

प्रकाश गोविंद said...

विनय बिहारी जी आपका कहना बिल्कुल सही है !
मैं भी मानता हूँ कि सभी संत ऐसे नहीं होते !
मेरा विरोध अनर्गल प्रचार....अंध विश्वाश... वगैरह से है !

किसी भी पूजा - पाठ - प्रवचन का सन्दर्भ मन की शान्ति से होता है ! मन की शान्ति आपको कैसे मिलती है यह आपका व्यक्तिगत मामला है !

किसी को हनुमान चालीसा या दुर्गा चालीसा सुहाता है , किसी को साई बाबा या मुरारी बाबा की भक्ति में आनंद मिलता है, किसी को मजार पे चादर चढाने से शान्ति मिलती है ! जैसे मुझे शान्ति मिलती है नदी के किनारे बैठने से !

दुविधा तब शुरू होती है जब भक्त अपने को बहुमत में लाने के लिए तरह - तरह के हथकंडे अपनाना शुरू कर देता है ! अपने ईष्ट देवता और गुरु की पब्लिसिटी के लिए भाँती प्रकार के मिथ्या चमत्कारों और अनुभवों का आल्हा गाना शुरू कर देता है !

मैं बहुत मजबूर हूँ अपने आप से कि आख़िर श्रद्धा कहाँ से लाऊं ? मेरा मानना है कि श्रद्धा और विवेक एक साथ नहीं रह पाते ! बनारस से मेरा सम्बन्ध रहा है तो बाबाओं से भला कैसे न रहता ! बेशुमार बाबाओं को बेहद करीब से जानने का सुअवसर प्राप्त हुआ ! मुझे तो इन बाबाओं के मुखमंडल पर वह शान्ति और सरलता भी नजर नहीं आती जो किसी मेहनतकश मजदूर के चेहरे पर नजर आती है !

कभी आप लखनऊ आईये ..... विस्तार से
बातें होंगी !

Anonymous said...

i think the archive you wirte is very good, but i think it will be better if you can say more..hehe,love your blog,,,