आज सारा देश जिस विडंवना से गुजर रहा है,वह सोचने लायक है। जानकारी के लिये बताना चाहता हूँ,मैं धर्म-निरपेक्षवादी बिल्कुल नहीं हूँ बल्कि धर्म-सापेक्षवादी हूँ। आज धर्म-निरपेक्षता का मतलव हिन्दुओं का विरोध है। जो राजनैतिक स्तर पर ही नहीं हम से भी जुडा हुआ है। उनके लिये खास कर कहना चाहता हूँ जो राजनीति की बात को राजनीति मानते हैं। जब देश में चल रहे हालात के लिये राजनीति ही ज़िम्मेदार है तव उसकी चर्चा क्यों ना की जाये मेरे प्रिय साथियों के लिये भी कहना चाहता हूँ जो हिन्दुओं की आँख बंद करके बुराई करते हैं पुरानी वो बातें करते हैं जो उस दौर में सब धर्मों में थीं। अगर इतना ही एतराज़ है अपने धर्म से तो छोड क्यों नहीं देते या फिर आप अपने को अलग बता कर क्या दिखाना चाहते हैं? ऐंसे हिन्दुओं के लिये सिर्फ यही शब्द हैं कि या तो वो आलोचना छोंडें या फिर आगे आकर जहाँ जो सुधार लगता है वो करें किसने रोका है। हिन्दू धर्म की खामियां दूर करने आयें कौन मना करता है। हिन्दुं के पक्ष का मतलव मुस्लिमों का विरोध नहीं है भाईयों खुद में कोई गलती है तो अपनेआप को मार डालना या छोड देना ठीक बात है ना ये संभव है। व्यवस्था बदलने के लिये व्यवस्था में रहना चाहिये ना कि व्यवस्था से हट कर इसे बदलने का निर्थक प्रयास करने चाहिये।
3.10.08
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2 comments:
bilkul sach hai, hinduon ke hit kee bat karo to samparaik or musalmano ki karo to sachcha dharmnirpeksh.
व्यवस्था बदलने के लिए व्यवस्था में रहना चाहिये.....
भाई आपने सही कहा, मगर व्यवस्था बदलने की नौबत ही क्योँ आन पड़ी, वस्तुतः समाज की बुराइयों ने जिस कदर हमारे समाज का तीय पांचा किया है, मनुवादियौं ने जिस तरह से शोषित वर्गों को दबाया है, धार्मिक मठाधीशों ने मठ का उपयोग सत्ता और स्वम्सुख के लिए किया है, ये तो होना ही था, समय आ गया है जब बराबरी और समानता के साथ सभी को स्वीकार करें नही तो अपनी अपनी ढोल और डफली बजाते रहें, कोई मुस्लिम को मारे कोई ईसाई को,
हिंदू अपनी जाति-पाति में उलझकर अपने सामाजिक तंत्र को ही कमजोर करता रहे और चंद चूतिये हिन्दुओं के ठेकेदार बनते रहें.
जय जय भड़ास
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