तन्हाई की चुभन
रातो में सताती है
जाने कौन है वो जो
दबे पाव चली आती है
क्या जनता हूँ में उसे
या बस मेरा एक खवाब है
जाने क्या है उसमे
की हर पल वो मेरे पास है
दिन रत भटकता हुआ
जाने में किधर चल पड़ा
उसकी तलाश में ख़ुद को दूदने लगा
सोचा मेलूँगा तो कुछ पूचुगा उससे
पर जब मेला तो
होसे ही गवा गया
अब उससे बिचादने का गम
मुघे हर पल सताने लगा
जाने क्यों हर पल रातो में वो मुगे
वह रुक रुक कर रुलाने लगा
प्यार और इंतजार की इस हद को तोड़कर
अब मुगे जाने कौन सा रास्ता है जो फिर बुलाने लगा
फिर बुलाने लगा फिर बुलाने लगा !
2 comments:
vineet acha likha hai
apna yha prayas jari rakhna
vineet apna likhna jari rakhna acha likha h
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