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7.2.08

कौन थे वो लोग?

६ दिसम्बर १९९२ की बात है मैं अपनी छह माह की बच्ची को गोद में लिये बाजार की तरफ़ जा रही थी ,बाजार नज़दीक ही था । अचानक भगदड़ मच गई लोग भागने लगे ,दुकानें बंद होने लगीं ,सामने की सड़क से कुछ २०-२२ लोग हाथों में हाकी ,डंडे और पत्थर लिए दौड़े चले आ रहे थे । हर चीज तोड़ी जा रही थी ,दुकानें बंद करवाई जा रही थीं । सड़क के कोने पर एक ६०-६५ साल का बूढ़ा पपीते बेंच रहा था । मैं अक्सर आते-जाते उस बूढ़े से फल लिया करती थी क्योंकि वह अपने ग्राहको से ही नहीं बल्कि सभी से बहुत प्यार से पेश आता था । उस बूढ़े का जवान बेटा रोड एक्सीडेंट में गुज़र गया था और यह बूढा़ ही घर की विधवा बहू और उसके चार बच्चों का खर्च चलाया करता था । भीड़ में से दो मुस्टंडे आए और आ कर उस बूढ़े की फल की टोकरी को पैरों से कुचल दिए और वह बूढा़ बस क्या भाई...क्या भाई कहता हुआ शायद जानना चाह रहा था कि जो लोग कल तक उसे चाचा कह्ते थे वे आज उसे क्यों सता रहे हैं ? उस भीड़ में से एक आदमी ने उसे खूब गालियां देते हुए पास की किराने की दुकान से एक सोडा वाटर की बोतल उठायी और फ़ोड़ कर उसके पेट में घुसेड़ दी ,दो-तीन वार करने से उस बूढ़े की आंतें बाहर निकल आईं और उसने वहीं जगह पर तड़प कर दम तोड़ दिया । मुझे तो जैसे काठ मार गया था मैं गली के कोने में खड़ी ही रह गई और फिर मुझे नहीं पता कि किसने मुझे और मेरी बच्ची को अपने घर में अंदर कर लिया क्योंकि मेरा दिमाग़ काम करना बंद हो गया था । हर ओर खून ही खून और चीख पुकार मची थी । कर्फ़्यू लगा दिया गया ,बहुत से लोग मारे गए उन दंगों में उस बूढ़े फल वाले की तरह जिन्हे पता ही नहीं था कि उन्हें क्यों मारा जा रहा है ; बाबरी मस्जिद क्या है ? कहां है ? क्या किस्सा है ? लेकिन जो बात मुझे आज तक नहीं पता है वह ये कि वो बूढ़ा हिन्दू था या मुसलमान या कोई और ? उसे मारने वाले कौन थे हिन्दू या मुसलमान ? लेकिन एक सच समझ में आया कि लोग अशिक्षा के कारण ही इतने जाहिल हैं कि वे कुछ लोगों के भड़काने से एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं । ठीक वैसा ही माहौल अभी हाल ही में एक क्षेत्रवादी नेता ने हिन्दी और मराठी भाईयों को लड़वाने के लिये रच दिया था मैं चाह कर भी उन डरावनी यादों को नहीं भूल पाती हूं । आप सबसे हाथ जोड़ कर विनती है कि खूब गुस्सा निकालिए लेकिन अपना ही खून बहा कर नहीं और अगर अपना खून बहाना ही है तो वतन की राह में बहाओ ।
भड़ास ज़िन्दाबाद

4 comments:

ghughutibasuti said...

अशिक्षा बुरी हो सकती है, एक कारण भी हो सकती है, परन्तु सदा नहीं । अभी जो गुजरात के पाटन शहर में कुछ शिक्षकों ने अपनी छात्राओं के साथ किया उसमें अशिक्षा व धर्म आदि का कोई हाथ नहीं था । शायद केवल अपनी शक्ति पर अभिमान व कानून से कोई डर नहीं होना ही इसके पीछे था ।
घुघूती बासूती

राजीव तनेजा said...

मुनव्वर सुल्ताना जी ऐसे लोगों का कोई धर्म..कोई ईमान नहीं होता..
ये नेताओं की कठपुतलियां होते हैँ...

कुछ कुछ ऐसा ही यहाँ दिल्ली में 84 के दंगो के वक्त भी हुआ था। चारों तरफ लूटमार मची हुई थी।
दंगई गर्व से बता रहे थे कि उसने इतने काटे और उसने इतने....सरे आम सरदारों को नीचे गिरा कर उनके गले में टायर डाल कर ज़िन्दा जलाया जा रहा था। पुलिस मूक दर्शक बनी बस तमाशा देख रही थी .....आज भी याद करते हैँ तो रोंए खडे हो जाते हैँ ...

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

शिक्षा और विद्या में क्या यही फ़र्क है क्योंकि बोला गया है , "विद्या ददाति विनयम ,विनयम ददाति पात्रता....."
चार किताबें पढ़ कर डिग्री हाथ में ले लेना विद्वान नही बना देता । शक्ति पर अभिमान और कानून से कोई भय न होना पाटन की घटना के मूल कारण प्रतीत होते हैं पर इससे लगता है कि मनुष्य के सामाजिक पशु होने की बात ठीक है पर यह घटना मनुष्य में पशुता नहीं पाशविकता दर्शाती है ,उपाय सोचिए कि क्या करा जाए ......

यशवंत सिंह yashwant singh said...

क्यों आदमी भीड़ का हिस्सा बनते ही दिल व दिमाग से अंधा हो जाता है और वो सब कुछ करता है जिसे वह निजी व सार्वजनिक तौर पर गलत मानता था।

आपने अपने अनुभव को बयान कर काफी हिम्मत का काम किया है। इससे उन सभी को सबक मिलेगी जो सोचते हैं कि झगड़ों व दंगों से कोई हल निकल आयेगा।
जय भड़ास
यशवंत