ठंड के दिनों मे नानी का चूल्हा बहुत याद आता है
पहले घर घर मे चूल्हा जलाये जाते थे उस समय गैस के चूले नही थी |उस समय लकडी से चूल्हे मे आग जलाई जाती थी | जब हम लोग सपरिवार ठंड के दिनों मे नाना-नानी के घर जाते थे तो उनके यहाँ करीब ५० सदस्य थे और उन सभी का खाना एक ही छत के नीचे बनता था | घर मे एक विशाल चूल्हा था उस चूल्हे को जलाने के लकडी का उपयोग किया जाता था | ठंड के दिनों मे मेरे नाना के घर के सभी सदस्य और हम लोग सुबह होते ही चाय पीने के बहाने चूल्हे को घेर कर बैठ जाते थे और आग तापते थे | आग तापना उस समय बड़ा सुखद अच्छा लगता था | ठंड के दिनों मे हम सभी मिल जुलकर सुबह और शाम चूल्हे के सामने जा बैठते थे और उस चूल्हे के सामने बैठकर खाना खाते थे और आग तापते जाते थे बीच-बीच मे मेरी नानीजी एक-दो कहानी भी हम सभी को सुना देती थी बड़ा अच्छा लगता था | अब जब जब ठंड आती है तो उस समय का चूल्हा और आग सेकना याद आ जाता है | अब बदलते समय के साथ-साथ लकडी के चूल्हे बंद हो गए है और घर-घर मे गैस के चूल्हे जलाये जाते है | अब तो लकडी की भारी किल्लत है आग तापना तो दूर लकडी के दर्शन करना भी दुर्लभ है | इस भारी ठंड मे गैस पर खाना बनाने वाला ख़ुद आग ताप नही सकता है तो परिवारजनों के भारी ठंड मे आग तापने की बात करना बेकार है | मेरी समझ से आग तापे बिना ठंड भी तो नही जाती है कुल मिलाकर लकडी से जलाये जाने वाले परम्परागत ठंड के दिनों मे बहुउपयोगी थे आग तापने के साथ साथ खाना बनाने के काम भी आता था | ठंड के समय मे उस ज़माने के लकडी से जलाये जाने वाले परम्परागत चूल्हे को मेरी पीढी के लोग भुला नही सकते है |
3.2.08
ठंड के दिनों मे नानी का चूल्हा बहुत याद आता है
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1 comment:
महेन्द्र जी,भड़ास किस बात पर है नानी जी पर या चूल्हे पर या फिर इस बात पर कि याद क्यों आई...
ही ही ही....
आप ताकत लगाइए और हम भी सरकार को बाध्य करें कि सौर ऊर्जा जो अरबों रुपए की रोज़ ही बेकार हो जाती है वो बचाकर चूल्हे की कमी पूरी करी जा सके जिससे नानी जी को भी हमारी प्रगति पर नाज़ हो सके...
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