जी, भाई जी लोग। मैं ऐसा ही हूं। आप लोगों ने शायद पुरानी पोस्टें पढ़ी नहीं हैं। बहुत लतखोर और गालीखोर टाइप लोग हैं हम लोग। चमार को जानते हैं न, वहीं हैं हम भड़ासी। सबसे दलित। सबसे सूअर। बाकी सब तो नीचे वाली पोस्ट में लिख ही रखा है। आप लोग शिष्ट, सभ्य और सज्जन लोग हैं। जरूरी नहीं कि आपकी तरह का मैं भी हूं। फिर मैंने कब कहा कि आप मेरे बारे में कोई अच्छी धारणा बना कर रखें। यही तो दिक्कत है कि लोग तुरंत धारणा बना लेते हैं कि फलां बड़ा महान है, फलां बहुत बड़ा है। और हर आदमी अपने को महान कहलाने के लिए किसिम किसिम का नाटक नौटंकी किए पड़ा है। कोई शब्दों का भोकाल दिखाए है, कोई धन की चांप से सज्जनता बताए है। सच कहूं, ये सारे के सारे रीयल चिरकुट और चूतिया लोग होते हैं।
हरामजादा का मतलब चाहे जो होता हो, लेकिन हम लोग अपने को हरामजादे ही मानते हैं। जो लोग गालियों को दिल पर लेकर इसके लिए जान लेने देने के लिए तैयार रहते हैं वो दरअसल मनुष्य बन ही नहीं पाए हैं। उनके अंदर इतनी गांठें हैं कि इन गांठों को खाद पानी देने में ही जीवन कट जाएगा। गांठों से मुक्त होने के लिए पहले जो विरेचन और आत्म मुक्ति का अभ्यास किया जाता था वो अब कहां है। एक ध्यानस्थ संन्यासी को गरिया लो, सुंदरी नचवा दो, उसे कोड़े लगवा दो....वो रिएक्ट नहीं करेगा। वो अपने आनंद में डूबा है। वो मस्त है। उसे जीवन के सार समझ में आ चुका है। वो दुनियावी चूतियापों से मुक्त हो चुका है। वो शब्दों, ध्वनियों, कृत्यों, कुकृत्यों से परे हो चुका है। उसे एहसास ही नहीं होगा कि उसे सूली चढ़ाया जा रहा है। उसे पता ही नहीं चलेगा कि उसे किसी समाज व धर्म के ठेकेदार ने दंडित करने का आदेश दिया है और उसे दंड दिया जा रहा है। वो जो कुछ हो रहा होगा उसे उस निगाह से देखेगा जैसे बच्चे कोई दंड दंड न्याय न्याय का खेल खेल रहे हों।
शब्दों से, गालियों, संप्रदायों से, धर्मों से, अपनों से, परायों से, गांठों से, कुंठाओं से मुक्त होने के लिए खुद को गलियाना पड़ता है। अपने को एक मनुष्य बनाना पड़ता है। वरना वो औरत है वो मर्द है, वो बनिया है वो पंडित है, वो राजपूत है वो चमार है। वो हिंदुवादी है, वो मुल्ला है। वो सरदार है वो शिखंडी है। भड़ासीपना को, भड़ास दर्शन को न समझ पाएंगे आप लोग। इसके लिए उलटबांसी करनी पड़ती है। अपने दिमागी धारणाओं को आग लगाना पड़ता है। अपना घर फूंकना होता है। तभी कबीर के साथ चल पाएंगे। तभी सूफी फक्कड़ औघड़ हो पाएंगे।
शब्दों से, गालियों से, महानताओं से मुक्त होइए। फिर देखिए, क्यो कुछ फूटता है अंतस में। सबने अपना अपना एक वेश बना रखा है, और हर वेश वाला चाहता है कि उसे अच्छा माना जाए। पर मैं नहीं मानता कि मुझे अच्छा माना जाए। हम लोग परम गधे, हरामखोर, गलीज प्राणी हैं। दुनिया के सबसे कमीने लोग हैं।
दरअसल बहुत दिनों से भड़ास पर बहुत अच्छा अच्छा चल रहा है, यह अच्छा अच्छा हम लोगों को उबकाई देता है, इन्हें पढ़कर मन करता है उल्टी करने का। जो मंच उल्टी करने का था वहां पर लोग ठाकुर जी की मूर्ति लगाकर आरती गाने लगे हैं। भाई, अपने अपने ब्लागों पर ठाकुर जी की मूर्ति लगाइए। यहां के दर्शन को अगर नहीं समझ सकते हैं तो खामखा गाल बजाने से क्या फायदा। मैं थोड़ा तीखा लिख रहा हूं क्योंकि मैं ऐसा ही मुंहफट और लंठ हूं।
जो चीज आप लोग डैश डैश ...... लगाकर कहते हैं हम लोग उसे खुलकर कहने की ताकत रखते हैं क्योंकि डैश डैश वहां किया जाता है जहां दिल दिमाग में विभेद हो हम भड़ासी दिल दिमाग को एक सा रखते हैं, इसलिए हमें दिक्कत नहीं होती कुछ भी छिपाने और कुछ भी फर्जी करने कहने की। वही पुरानी बहसें शुरू हो जाती हैं कि गाली नहीं देनी चाहिए या देनी चाहिए। इन बहसों पर बहुत बार बहस हो चुकी है। गाली अगर आत्मा से आती है तो दीजिए। नहीं आती है तो आप एक सीढ़ी उपर चढ़ चुके हैं। लेकिन ये न हो कि गाली देने का मन करता है और आप दे नहीं रहे क्योंकि आपको बुरा बन जाने का डर सता रहा है। कौन आपको बुरा होने का सार्टिफिकेट दे रहा है। ये जो सर्टिफिकेट देने वाले हैं इनसे डरकर जिएंगे तो फिर आप अपनी जिंदगी नहीं जी रहे, आप वो डर जी रहे हैं जिसे सर्टिफिकेट देने वालों ने पैदा किया है।
दिल से सोचिए, अगर आपको लगता है कि ये मंच आपको सूट नहीं कर रहा तो आप निर्णय लीजिए। पर हां, हिप्पोक्रेसी नहीं चलेगी। मोटे मोटे फर्जी सिद्धांत और फर्जी बातें नहीं चलेंगी।
हम लोगों ने इस मंच पर ऐसे ऐसे लोगों को आते और फिर भागते देखा है कि बाद में लोगों के बारे में धारणा बदलनी पड़ी। आखिर तक वही चलेगा जो सच्चा हीरा होगा। सफर में दम तोड़ने वाले साथियों के लिए मन में एक अच्छा भाव ही हो सकता है, दुख के मारे सफर खत्म कर उनके शव पर स्यापा करना अपन लोगों की फितरत नहीं।
हम लोग संत नहीं। हम लोग मनुष्य हैं। सारी कमजोरियां हैं जो मनुष्यों में होती हैं। हम सहज मनुष्य बने रहना चाहते हैं। हम देवता नहीं बनना चाहते। हम नेता नहीं बनना चाहते। हम उपदेशक और धर्म गुरु नहीं बनना चाहते। बहुत ज्यादा हैं ये लोग। गली मोहल्ले तक में ये बिखरे पड़े हैं। हम लोग भड़ासी हैं और भड़ासी बने रहना चाहते हैं। हम लोगों को उपदेशक नहीं चाहिए, हम लोगों को सिद्धांत पेलने वाले नहीं चाहिए, हम लोगों को धर्म का पाठ और सभ्यता व संस्कृति की समझ देने वाले नहीं चाहिए। हम गलीज लोग हैं। गली नाली और सड़क साफ करने वाले। झाड़ू लगाने वाले। थोड़े पढ़ लिए लिए हैं इसलिए शब्दों के मायने समझने लगे और इन मायनों से उठकर फिर वहीं सड़ांध में थूथन मारने जाना चाहते हैं। दरअसल हम सूअरों को वहीं लोटने में आनंद आता है। शायद ऐसा आनंद आप लोगों को पूजा पाठ करने में आता होगा। अपने धर्म सभ्यता संस्कृति पर गर्व करने में आता होगा। पर क्या करें, ये सब हम लोगों को आता ही नहीं।
जय भड़ास
यशवंत
12.10.08
दरअसल हम सूअरों को उसी सड़ांध में थूथन मारने में मजा आता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
17 comments:
क्या यशवंत भाई, सुलग गई,
अब कहोगे भादासियों की सुलगती नहीं है (यहाँ भडासी एपी जैसों से तात्पर्य है क्यों की हम आपकी तरह हिम्मत वाले नहीं और मुन्ह्फत भी नहीं) अब सुलगती न होती तो मेरी टिप्पणी के तुंरत बाद ही आपकी एक और पोस्ट. वैसे आपको बधाई क्योंकि जो अन्य भडासी आपकी एक पोस्ट देखने को तरस जात्वे थे उनको एक साथ एक दिन में ही दो-दो पोस्ट देखने को मिल रहीं हैं. आपने तो रिकार्ड ही बना डाला.
वैसे जिस शब्दावली के जिक्र को लेकर आप दो तरफा सिद्धांत रखने की बात कर रहे है तो क्या आप बताएँगे कि आप लोग अपने घरों में अपनी माता जी, बहिन, बेटी पत्नी (पत्नी नहीं क्योंकि पत्नी तो आपको नंगा भी देखती है) के समें, उनके सामने भी ऎसी ही शब्दावली प्रयोग करते हैं? यदि नहीं तो क्या ये आपका एक सिद्धांत वाला धर्म है? और यदि यही सूअर, थून्थान मरने वाली शब्दावली प्रयोग करते हैं तो आप वाकई महान हैं, वाकई कबीर जी के साथ चलने वाले हैं (देखियेगा कबीर के पास ही न चले जाइयेगा) वाकई में उलटबांसी करने वाले हैं.
हम तो ठाकुर जी की तस्वीर तो पहले से अपने ब्लॉग पर लगाए हैं (आख़िर हमारी तस्वीर लगी है और हम ठहरे ठाकुर, हिंसक, शोषक, अत्याचारी............) अब आप पर भी तो अत्याचार कर रहे हैं जो बार-बार आपको पोस्ट लिखने के लिए विवश कर रहे हैं.
वैसे शब्दों की अतिरंजिता में ध्यान रखियेगा आपने इस पोस्ट पर वो शब्द प्रयोग किया है (आपकी भाषा में चमार) हम सीधे-सीधे नहीं लिख सकते है, कहीं आपको मुकदमेबाजी का शिकार न बना दे. समझे वैसे सरकार भी.......................(फ़िर डॉट-डॉट.....क्या करें थोड़ा डरते हैं आप लोगों की तरह.....)
चलिए अब आज आपको परेशां नहीं करेंगे.....अब आज कोई टिप्पणी नहीं. आज के लिए इतना ही बहुत है......
आपका
भडास का पूर्व सदस्य
डाक्टर साहब, मैंने कहा न, समझा पाना बहुत मुश्किल होता है। हर आदमी अपनी मान्यताएं जीता है और उसी को सच मानता है। सच वही है जो आप मानते हैं। मेरा सच जो होगा शायद वो आपका सच नहीं होगा और आपका जो सच होगा वो मेरा नहीं होगा।
रही बात सुलगने की तो भई, इतनी गरमागरम बहस हो रही है तो वहां हाथ जलाने का लोभ मैं संवरण नहीं कर पाया। मनुष्य हूं, तो मनुष्योचित काम करता रहता हूं। अन्य कामों में व्यस्तता के चलते भड़ास पर लिखने का अपना प्रिय काम नहीं कर पाता था लेकिन आप लोगों ने फिर लिखने को प्रेरित किया या मजबूर किया, इसका श्रेय तो आप ले ही सकते हैं। वैसे, मैंने अतीत में एक दिन में नौ नौ पोस्ट लिखने के रिकार्ड बनाए हैं इसलिए दो पोस्ट लिखने का रिकार्ड कहना मेरा अपमान है :)
मुकदमों से कौन डरता है डाक्टर साहब। कहा न, ध्यानस्थ संन्यासी को क्या फरक पड़ता है कि उसे कौन दंडित कर रहा है, कौन मुकदमा चला रहा है, कौन खराब मान रहा है, कौन अच्छा मान रहा है...
पर आप एक झूठ बोल रहे हैं। आपने लास्ट में लिखा है भड़ास का पूर्व सदस्य। पर आप अब भी भड़ास के सदस्य हैं तभी आपकी टिप्पणियां बिना माडरेट हुए सीधे पब्लिश हो जा रही हैं। भड़ास का पूर्व सदस्य होने का मतलब होता है कि आप अपनी सदस्यता सेटिंग में जाकर खुद खत्म कर लें और उसके बाद जो कमेंट लिखेंगे तो वो तुरंत पब्लिश नहीं होगी बल्कि उसे माडरेटर ओके करेगा तब पब्लिश होगी।
चलिए.....जिंदगी तो यही है। जहां गरम नरम है। जहां खटपट है। अगर सब आप जैसे ही हो जाते या मेरे जैसे ही हो जाते तो दुनिया इतनी रंगीन और अच्छी न होती। तब बड़ा स्थूल शांत और नष्टप्राय सा हो जाता। हमारी विसंगतियां और हमारी विविधता ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
शुक्रिया
जय भड़ास
यशवंत
yashwant jee ek baar aapne apni tulna ek pahuche huye sadhu se ki jo har paristhiti me saman hai ek baar isamaish se jo dusaron ke liye suli par chad gya. aap agar dono me se koi hain to main aapko dandwat pranaam karta hun.uske baad kuchh bhee tika tippani karna unki adab me gushtakhi karna jaise hoga. rahi.... me likhane kee bat to hum punjabi elake ke hain jitana khula bolte hain utna khulha nhate hain . magar main pahle din se hee bhasa or shabdon kee garima ka pakshdhar hun[ vishwas naa ho to meri post dekh le]fir bhee agar aap chahte hain ki gande shabd likhane se koi uncha uthata hai to fir jitane bhee dharm prachar karne wale hain,teachers hai unke liye ye shabd jaruri kar dene chahiye. main docter saheb kee tarah palayan nahin karunga.aapka rajnish chahe to nikal de.
rajneesh babujee aapne kahaa hai ki aap- कबीर के साथ चल पाएंगे। तभी सूफी फक्कड़ औघड़ हो पाएंगे।
is line se kahi na kahi iteefak rakhte hai --jo ki kabir ke baare ma hai---aap kabir jaisa ban na chahte hain--matlab ki unki vichardhara se samanataa hai--to yye bhi to dekhiye ki--NINDAK NIYARE RAKHIYE--ANGAN KUTI CHHWAY---
Par aapne to nindako ko bina SHOW CAUSE NOTICE diye hi naikal diyaa-----bahut sahi ye hoti hai HIPPOCRACY----
भाई यशवंत जी हम तो धन्य हो गए जो आपको बार बार सफाई देते देख रहें है...आपने अचानक रजनीश जी को हटा कर ख़ुद मोर्चा संभाल लिया है...अच्छी बात है..सेनापति को आगे आना ही चाहिए...पर आप और कुछ सदस्य आपस में इस तरह न लड़िये...भडास ke ४८८ मेंबर आपको पढ़ रहें है...अपने आप को सूअर कहने से आपकी जिम्मे दारी ख़तम नहीं हो जाती है...बुरा बनना बहुत आसान है....एक चोगा उतरने की जरुरत है...लेकिन हम क्या करें ये भडास की भाषा हो सकती है ...हमारे घर और समाज की नही...फ़िर आप हमे चाहे चु.... कहें या.नपुसंक हम तो शालीनता नहीं छोडेंगे....यदि भडास की यही शर्त है तो हमें मंजूर नहीं है....रजनीश परिहार.....
bahut sargarbhit vivachana
humare blog pr nazren inayat
bahut khub
regards
bahut sargarbhit vivachana
humare blog pr nazren inayat
bahut khub
regards
Tumhari Saakh mit jati,
ki rutba ghat gaya hota
jo gusse me kaha tumne
vahi hans ke kaha hota
prakash
kolkata
अरे यशवंत !! थोड़ा पढ़ा तो मज़ा आया...मज़ा बढ़ता चला गया... मगर अंत में लगा कि इतना कुछ इन शब्दों में लिखा जाना व्यर्थ ही था ...यशवंत अगर सीधा- सीधा कहने में ऐसा ही सार होता तो अच्छी भाषा कि जरुरत ही क्या थी ?सारी बातों को गंदे से गन्दा भी कहा जा सकता है और अच्छे-से-अच्छा भी ..... मान लो अगर तुम ही कभी कोई गलती करो और सीधे-सीधे तुम्हारी माँ-बहन करता हुआ कोई तुम तक चला आए तो कैसा लगेगा ??कोई भी मंच अच्छा और पवित्र होता है ...वहां किसी किस्म की टट्टी नहीं की जानी चाहिए .... नहीं की जानी चाहिए ना यशवंत !!
यसवंत भाई
समाज मे हर विचारधारा के ब्यक्ति है लेकिन यह जरूरी नही की सब एक दूसरे से सहमत हो। यहां सुअर,कुत्ते और हरामजादे कहलाना हो सकता है की एक फ़ैशन हो लेकिन यह सभ्य समाज मान्य नही है।अगर मान्य होता तो हर ब्यक्ति गर्व से अपने को यही कहलाना पसदं करता। कुछ लोग तो नाम के कुत्ते ,सुअर हरामजादा है लेकिन कई कर्म से भी है उन्हे लोगो की भावनाओं से कोई मतलब नही
यसवंत भाई
समाज मे हर विचारधारा के ब्यक्ति है लेकिन यह जरूरी नही की सब एक दूसरे से सहमत हो। यहां सुअर,कुत्ते और हरामजादे कहलाना हो सकता है की एक फ़ैशन हो लेकिन यह सभ्य समाज मान्य नही है।अगर मान्य होता तो हर ब्यक्ति गर्व से अपने को यही कहलाना पसदं करता। कुछ लोग तो नाम के कुत्ते ,सुअर हरामजादा है लेकिन कई कर्म से भी है उन्हे लोगो की भावनाओं से कोई मतलब नही
aadarneey mitra yashwant sapream namaskar.apki safai padi.apke tark bhi dekhe.prastuti acchi hai.pr aap ne apne tarko pr gambhirata se vichar kiya hai aisa mujhe nahi laga.kyoki jis apradh me aap ne hame aur hrdesh ji ko badas pariwar se bahar karne ka farmaan jari kiya us apradh me rajneesh ji bhi utne hi gunahgar the.yadi aap me vakai nyay karne ki ichhashakti hoti to aap unki bhi sadsyta khatm karte.khair apko mai is pariwar ka abhibhavak manata tha.lekin durbhagya se aap aadhunik bhism pitamah nikale aur aapke samne droupadi cheer haran se bhi badi ghatana gati aur apne uska virodh karne ki vajay uska samarthan kiya jisase hamari manytao ko chot pahaoochi.mera bhi blog hai lekin mai samay nikal kar bhadas pr likhata tha to uska ak hi karan tha ki mai apne apko pariwaar ka dulara sadsya manta tha.lekin jis tarah se bhadas sanchalak mandal ne mere sath vyohar kiya vah dukhdayee hai.khair mai apne bhadasi bhaiyo se gujaris karuga ki vo hamare blog alag vichar blogspot.com pr hamse mil sakte hai.aur jo bhai mujhe sampark karna chate hai vo hamare mobile no--9990790610 pr sampark kar sakte hai.aap logo apna hi chhota bhai dheerendra pratap singh.durgvanshi.new delhi
यषवंत जी आपने जो भाषा का इस्तेमाल किया है वह गलत है क्योंकि हरामजादे हम नहीं आप हैं क्योंकि हरामजादे का मतलब आप नहीं जानते शायद इसलिए। आपने यहां से रजनीष अगर भगवान राम को गाली देकर बोलता है कि राम के बाप का पता नहीं और उनके बाप दषरथ तो नपंुसक थे तो यह मान लीजिए की उनके पिता को तो सारे भारतीय जानते हैं कि उनके पिता का नाम दषरथ मगर आपके और रजनीष अपने पिता का नाम जानते हैं या फिर आप अपने बाप का नाम नहीं जानते इसलिए दूसरे को हरामजादा और कुत्ता बोल रहे हो हरामजादे का मतलब आपको बता दें कि हरामजादे का मतलब यह होता है कि आपकी मां कई मर्दों की रखेल है और उनमें न जाने किस नाली के गंदे कीड़े की औलाद हैं जो भगवान राम को नाजायज बोल रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं कि हिन्दू इतना सीधा और शालीनता वाला व्यक्ति है कि जब तक चुप रहता है तब तक शांति जिस दिन हिंदू जागा उस दिन आपके धड़ से आपका सिर अलग होगा क्योंकि राम को गाली यानि अपनी मां को गाली और हम सभ्य लोग अपनी मां को दूर दूसरे की मां को भी गाली नहीं देते लेकिन आपने तो भगवान राम को भी नहीं छोड़ा नाजायज कहने में तो अपनी मां क्या छोड़ते होगे।
यषवंत जी आपने जो भाषा का इस्तेमाल किया है वह गलत है क्योंकि हरामजादे हम नहीं आप हैं क्योंकि हरामजादे का मतलब आप नहीं जानते शायद इसलिए। आपने यहां से रजनीष अगर भगवान राम को गाली देकर बोलता है कि राम के बाप का पता नहीं और उनके बाप दषरथ तो नपंुसक थे तो यह मान लीजिए की उनके पिता को तो सारे भारतीय जानते हैं कि उनके पिता का नाम दषरथ मगर आपके और रजनीष अपने पिता का नाम जानते हैं या फिर आप अपने बाप का नाम नहीं जानते इसलिए दूसरे को हरामजादा और कुत्ता बोल रहे हो हरामजादे का मतलब आपको बता दें कि हरामजादे का मतलब यह होता है कि आपकी मां कई मर्दों की रखेल है और उनमें न जाने किस नाली के गंदे कीड़े की औलाद हैं जो भगवान राम को नाजायज बोल रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं कि हिन्दू इतना सीधा और शालीनता वाला व्यक्ति है कि जब तक चुप रहता है तब तक शांति जिस दिन हिंदू जागा उस दिन आपके धड़ से आपका सिर अलग होगा क्योंकि राम को गाली यानि अपनी मां को गाली और हम सभ्य लोग अपनी मां को दूर दूसरे की मां को भी गाली नहीं देते लेकिन आपने तो भगवान राम को भी नहीं छोड़ा नाजायज कहने में तो अपनी मां क्या छोड़ते होगे।
यषवंत जी आपने जो भाषा का इस्तेमाल किया है वह गलत है क्योंकि हरामजादे हम नहीं आप हैं क्योंकि हरामजादे का मतलब आप नहीं जानते शायद इसलिए। आपने यहां से रजनीष अगर भगवान राम को गाली देकर बोलता है कि राम के बाप का पता नहीं और उनके बाप दषरथ तो नपंुसक थे तो यह मान लीजिए की उनके पिता को तो सारे भारतीय जानते हैं कि उनके पिता का नाम दषरथ मगर आपके और रजनीष अपने पिता का नाम जानते हैं या फिर आप अपने बाप का नाम नहीं जानते इसलिए दूसरे को हरामजादा और कुत्ता बोल रहे हो हरामजादे का मतलब आपको बता दें कि हरामजादे का मतलब यह होता है कि आपकी मां कई मर्दों की रखेल है और उनमें न जाने किस नाली के गंदे कीड़े की औलाद हैं जो भगवान राम को नाजायज बोल रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं कि हिन्दू इतना सीधा और शालीनता वाला व्यक्ति है कि जब तक चुप रहता है तब तक शांति जिस दिन हिंदू जागा उस दिन आपके धड़ से आपका सिर अलग होगा क्योंकि राम को गाली यानि अपनी मां को गाली और हम सभ्य लोग अपनी मां को दूर दूसरे की मां को भी गाली नहीं देते लेकिन आपने तो भगवान राम को भी नहीं छोड़ा नाजायज कहने में तो अपनी मां क्या छोड़ते होगे।
भाई अनाम, गुमनाम, बेनाम,
चलो तुम्हारी बात पर बहस बाद में, अफल अपने सर से बेनामी का ताज तो हटाओ.
aap jaisa besharm nahi dekha rajnish jee. govind goyal sriganganagar name bhee likh rahan hun address bhee jo karna hai kar lo.or cell number bhee likh raha hun himmat hai to cell par vaisi bhasa ka istemal karke dikhana jaisi tumhari hai.vaise anam,benam se main nahi likhata.
cell--09414246080
Post a Comment