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12.10.08

ये मान कर चलिए कि ये भड़ास भी बस कुछ दिनों का ही मेहमान है

बहुत दिनों बाद भड़ास पर लिखने को मजबूर हुआ हूं। राम, धर्म, हिंदु, मुस्लिम, आतंकवाद, धर्मनिरपेक्षता, विहिप, भाजपा, संघ.... को लेकर लगातार लोग अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं और उनके विचार के प्रतिवाद में विचार आ रहे हैं। मैं यहां कौन सही कौन गलत का भाषण देने नहीं आया क्योंकि इस विषय पर बुद्धिमान से बुद्धिमान भी चाहे जो बोल ले, जो जिसे मानता है वो मानेगा ही और उसके पक्ष में तर्क या कुतर्क देगा ही। आपका तर्क मेरे लिए कुतर्क हो सकता है और मेरा तर्क आपके लिए कुतर्क। इन बहसों से देश का भला तो नहीं ही हुआ है, नुकसान भले हो गया हो। इस बहाने राजनेता और समाज व धर्म के ठेकेदार अपना ठेका लगातार रिन्यू कराके चला रहे हैं और वे चाहते हैं कि ये सब चीजें बहस का विषय बनी रहें ताकि उनका ठेका चलता रहा।
मुस्लिम ज्यादा कट्टरपंथी हो गए हैं, हिंदु उदार रहे हैं या हिंदुओं को अब कट्टरपंथी हो जाना चाहिए और मुसलमानों को सबक सिखाकर उन्हें औकात में लाना चाहिए....जैसे विषयों पर ढेर सारे लोग अपने अपने बुद्धि सीमा में अपने अपने घरों, ब्लागों, महफिलों, मंचों पर बातें करते रहते हैं। करते रहिए, शुक्रिया, थैंक्यू, जय श्री राम, अल्ला हो अकबर....पर हम लोगों को यहां छोड़ दीजिए, अपने सड़ांध में मस्त रहने के लिए। किसी बेरोजगार को रोजगार देने न जय श्री राम आता है और न पैगंबर मोहम्मद। किसी भूखे को रोटी देने न भाजपा आती है और न ही सिमी के लोग आते हैं। किसी गरीब के पक्ष में न कांग्रेस आती है और न भाजपा और न हिंदुस्तान और न पाकिस्तान। ये सब चोंचलेबाजों की चोंचलेबाजी हैं जिसमें हम फंसे हुए हैं या यों कहिए कि फंसाए गए हैं। भड़ास मंच इन चूतियापों से हटकर बना था, पर पिछले दिनों इस पर भड़ास कम, अपनी बौद्धिक त्वरा ज्यादा दिखाई जा रही थी। रजनीश हों या हृदयेश या धीरेंद्र....सभी अपने जगह पर सही हैं लेकिन आप अपने विचार अपने ब्लागों पर रखिए, अपनी महफिलों पर रखिए, अपने मंचों पर रखिए, यहां काहें बात रहे हैं कि मुस्लिम आतंकवादी हैं या हिंदु महान हैं या श्रीराम खराब हैं या पैगंबर मोहम्मद अच्छे है या तुम अच्छे या हम अच्छे।

हृदयेश और धीरेंद्र को भड़ास से हटाने का निर्णय भड़ास संचालक मंडल का है, न कि रजनीश का। हम भड़ासी सभी भगवानों को वो चाहे राम हों या अल्ला हों या गुरु नानक हों या ईसा मसीह हों, सभी को एक बराबर मानते हैं और सबसे बड़ी बात कि हम इनमें से किसी को नहीं मानते।

हां, हम इनमें से किसी को नहीं मानते। जब हम नहीं मानते तो हम इनमें से किसी का कोई लिहाज भी नहीं करते। हम गालियां देंगे तो सबको देंगे किसी एक को नहीं देंगे। किसी एक को दे रहे हैं तो इसका मतलब यही है कि सबको दे रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा क्या उखड़ जाएगा अपन लोग का। सर कलम करवा दोगे। करवा दो। इससे क्या उखाड़ लोगे। एक दो चार दस पांच हजार दस हजार को कटवा दोगे तो इससे तुम्हार अल्ला या राम या रहीम या नानक या मसीह बड़ा नहीं हो जाएगा और न छोटा बन जाएगा बल्कि तुम यही साबित करोगे कि जिन लोगों को प्रतीक बनाकर पूरी दुनिया में धन, धर्म और हथियार का कारोबार चल रहा है उसे बढ़ावा देने में तुम सभी हम सभी मददगार हैं।

हमें नहीं रहना किसी के साथ। अपने भगवान को अपने घर में पूजो। हमारे भगवान तो वो इंसान हैं जो परेशान हैं और जिनके किसी काम आ जाएं तो लगता है कि हम अपने भगवान को पूज लिए। जो लोग जीते जागते इंसान को हिकारत से देखते हैं और अदृश्य सत्ताओं को पूजते हैं वो दरअसल एक तरह से पाखंड और असहिष्णुता को ही बढ़ावा देते हैं।

हम भड़ासी दिल से आप सभी हृदयेश, धीरेंद्र, रजनीश, कुमारेंद्र...सभी से माफी मांगते हैं कि प्लीज, हमें माफ कर दो। आप अपने घरों में चैन से रहो, हमें चैन से रहने दो। न चले भड़ास, न चले ये ब्लाग। पर हम अपने जीवन के उद्येश्य जो हमारे फक्कड़पन में, हमारे कबीरानापन में, हमारे सूफियाने में, हमारे मस्तमौलापन में, हमारे मानवतावाद में निहित है, को जी लेना चाहते हैं। जी लेने दो इस पल को, कल की देखेंगे कल को। तो भई, गूगल ने ब्लाग बनाने की फ्री सुविधा दी है। सब लोग बनाएं। अपने अपने पर लिखें। भड़ास का एक समय काल था, जब यह शुरु हुआ और हिट हुआ। हो सकता है इसका बुरा वक्त आ रहा हो। आने दीजिए। हर एक चीज का एक समय होता है। उसके चरम पर जाने का वक्त और उसके पतन शुरू होने का वक्ता। हो सकता है भड़ास का खराब समय आ गया है लेकिन हम अपने खराब समय में भी खुश रहेंगे क्योंकि हम जो हैं सो हैं। आप सभी लोग सही हो सकते हो, हम गलत हो सकते हैं। क्योंकि हम भड़ासी शुरू से ही गलत रहे हैं। हम गांव, देहात के लोग हैं जो शहर के चूतियापे में आकर जिंदगी की एबीसीडी सीख रहे हैं। हम तो वैसे ही दोयम और गए गुजरे लोग हैं। हमें नहीं पता कि धर्म क्या है, मस्जिद क्या है, मंदिर क्या है, राम क्या है, मोहम्मद क्या है, ईसा क्या है। हमको तो ये पता है कि घुरहू का दुख क्या है, विवेक की परेशानी क्या है, तौफीक की पीड़ा क्या है, जसवंत की जरूरत क्या है......। इन नामों से धर्म पहचानने वाले, जाति पहचानने वाले, क्षेत्र पहचानने वाले कभी बड़ा नहीं बन सकते, वो चाहें जितना दावा करें लेकिन हम ये कह सकते हैं कि हम बिलकुल बड़े नहीं हैं। हम चूतिया थे, हैं और रहेंगे।

प्लीज, बंद करिए ये कोसना, आरोप लगाना और अपने को श्रेष्ठ साबित करना।

दुनिया का पहला ऐसा ब्लाग है भड़ास जहां कोई भी सदस्य बनकर सीधे अपनी बात कह सकता है। जिसने भी अब तक जो बात कही है उसकी बात को डिलीट नहीं किया गया है। ये भले हो सकता है कि बाद में सदस्यता खत्म कर दी गई हो लेकिन किसी ब्लाग से किसी की सदस्यता खत्म कर देने का क्या मतलब होता है। कोई मतलब नहीं होता। ब्लाग एक फ्री सुविधा है जहां योनि पर विवेचना करने से लेकर नंगी नंगी फोटो छापने और भगवान व आदर्शों पर चर्चा करने तक की छूट है। लोग कर रहे हैं। ऐसे में किसी के आने या जाने, किसी के बनने या निकाले जाने को कोई मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। देश और समाज में वैसे ही बहुत दुख हैं कम से कम इस मंच पर इन दुखों की काली परछाई मत लाइए।

उसी ईश्वर के वास्ते, उसी अल्लाह के वास्ते, उसी नानक और ईसा मसीह के वास्ते, जो कभी रहे होंगे तो इसलिए बड़े हुए क्योंकि उन्होंने सबकी पीड़ा समझी और सबको साथ लेकर चलने का माद्दा कायम किया। उनके जाने के बाद उनको पेर पेर करके गलत सलत अर्थ निकालने के बाद अपनी अपनी दुकान चलाने वाले इनके पैरोकर क्या समझेंगे भगवान और खुदा के मायने। इसीलिए हम इन भगवानों और खुदाओं से दूर रहना चाहते हैं क्योंकि इन्हीं भगवान और खुदा के नाम पर दुनिया में मनुष्य का सबसे ज्यादा खून बहा है और इन्हीं भगवान और खुदा के वास्ते होने वाले जंग में हथियार बेचकर सबसे ज्यादा धन कमाया गया है।

रजनीश जी भड़ास के संयोजक हैं। वे दो तरह की भूमिकाएं इस ब्लाग पर निभा रहे हैं। एक भड़ास के प्रतिनिधि के रूप में। दूसरा एक निजी मनुष्य के रूप में। निजी मनुष्य के रूप में श्री राम और सीता को लेकर जो कुछ कहा उन्होंने, ये उनका निजी विचार था और है। उससे भड़ास ब्लाग के सहमत असहमत होने का उसी तरह कोई मतलब नहीं है जिस तरह हृदयेश और धीरेंद्र के लिखे पोस्टों से सहमत असहम होने का भड़ास से कोई मतलब नहीं है। रजनीश ने भड़ास के प्रतिनिधि के रूप में भड़ास संचालक मंडल द्वारा लिए गए फैसले को सब तक पहुंचा रहे हैं और आगे भी पहुंचाते रहेंगे। वे अच्छे हैं या बुरे हैं, इससे फरक इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि वे दिल से एक सच्चे इंसान हैं और सच्चे भड़ासी हैं, इसका परीक्षण कई बार हो चुका है।

हदयेश, धीरेंद्र और डा. कुमारेंद्र से अपील है कि वो अन्यथा न लें। इन लोगों ने स्वयं अपने ब्लाग बनाए हुए हैं। उनके विचारों से हम भले असहमत हों लेकिन एक मनुष्य के रूप में इऩ लोगों के व्यक्तित्व का हम हमेशा आदर करेंगे। हां, हम लोग आप लोग जैसे विचारवान और हर मुद्दे के विशेषज्ञ नहीं हैं। क्योंकि हम किसी विषय पर सरलीकृत राय देने के बजाय उस विषय पर आने वाले प्रतिवाद या दूसरे मत पर भी उदारता से विचार करते हैं। इसी का प्रतीक है कि इस मंच पर कोई कठमुल्ला हो या उदारवादी, कोई कम्युनिस्ट हो या कोई संघी, सबका स्वागत किया जाता है। सबको सदस्यता दी जाती है। क्योंकि हम ये मान कर चलते हैं कि यहां जो आएगा वो दूसरों को ज्ञान पेलकर पढ़ाने की बजाय अपने व्यक्तित्व की कमियों व अच्छाइयों को भड़ास के रूप में उजागर करेगा। मैं खुद अपने को गलतियों और कमियों का पुतला मानता हूं। मैं अपने आपको आज तक नहीं समझा पाया कि मैं किसी को सिखा सकता हूं या उसे कोई दिशा दे सकता हूं क्योंकि मैं अपने आप को भटका हुआ और एक निरा बेवकूफ प्राणी पाता हूं जो अपने मूड और मिजाज के हिसाब से हर पल बदलता रहता है और उसी के हिसाब से जिंदगी के खट्टे बुरे अच्छे कड़वे अनुभवों को जीता रहता है।

मैं शायद सफाई देने के लिए नहीं आया हूं। बस यह याद दिलाने आया हूं कि अपने को कुत्ता, चूतिया, लोफर, आवारा, बेईमान, हरामजादा, सूअर, चूतिया जो नहीं कह सकता वो सच्चा भड़ासी नहीं हो सकता क्योंकि इस चरम पतन के दौर में महानता का दावा करने वाला हमेशा ढोंगी ही होगा। ये हो सकता है कि वो महानता आपको दूर से दिखती हो लेकिन पास जाएंगे तो वो महान आत्मा आपसे ज्यादा गिरी हुई और खून से सनी होगी।

फिलहाल इतना ही। जिन लोगों की सदस्यता खत्म की गई है अगर वो दुबारा सदस्यता के लिए अपील करें तो उन्हें फिर से सदस्यता दी जा सकती है। हम कोई कठोर कानून चलाने बनाने वाले लोग नहीं हैं। अपने घर के लोगों को समझाने के लिए कभी कभी कुछ कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं पर घर वाले तो घर वाले ही होते हैं। उन्हें हम उतना ही प्यार करते हैं जितना किसी अन्य से करते हैं।

यहां यह साफ तौर पर कहना चाहूंगा कि भड़ास कोई राजनीतिक मंच नहीं है। भड़ास कोई धर्म की स्थापना का मंच नहीं है। भड़ास अपनी कमियों, कुंठाओं, दिक्कतों को सुंदर शब्दों का रूप देकर प्रकट करने का मंच है ताकि हम अपने अंदर के आवेग से सबको परिचित कराकर खुद को संतुष्ट कर पाएं, खुद को मुक्त कर पाएं, खुद को हलका कर पाएं, खुद को सहज कर पाएं।
प्लीज, देखिए और लोगों को, कितने दिल से वो भड़ासी बने हुए हैं। अपने गोयल जी की जानलेवा चुटकियां भड़ास पर चार चांज लगाती हैं। अपने कई साथी बहुत अच्छा लिख रहे हैं लेकिन दिक्कत क्या है कि हम जब लिखने बैठते हैं तो लगते हैं बड़ी बड़ी बात ठोंकने। अमां यार, सामने वाले बेवकूफ नहीं हैं। सब पढ़े लिखे हैं। धर्म को मानना कोई बड़ी चीज नहीं है, धर्म से मुक्त होकर एक पूर्ण मनुष्य बनना बड़ी चीज है। दरअसल धर्म बने ही इसलिए कि मनुष्य संपूर्ण हो सके लेकिन यही धर्म मनुष्य को जानवर बनाने के काम आने लगे हैं। ऐसे में इन धर्मों का बहिष्कार ही सबसे बड़ी सफलता है। जिसने अपना घर न छोड़ा, अपना परिवार न छोड़ा, संघर्ष न किया, दूसरे के दुखों में न डूबा, प्रेम न किया, दुख न सहा.....वो क्या धर्म पर बात कर सकता है। धर्म एक अपढ़ आदमी का अंतिम हथियार है जहां वह अपने को टिकाकर जीने का रास्ता पाता है लेकिन जो पढ़ा लिखा है उसे धर्म के आगे जाकर मनुष्य को दुखों से मुक्त करने के बारे में सोचना चाहिए। और इसी सोचने के क्रम में बुद्ध पैदा होते हैं, नानक पैदा होते हैं, राम पैदा होते हैं, पैगंबर पैदा होते हैं, ईसा पैदा होते हैं। लेकिन चालाक व चतुर लोग इन दुख हरने वालों को ही बेच खाए और इनके नाम पर क्या करें क्या न करें की दुकान सजा कर माल बेचने बैठ गए। हम आप जैसे चढ़ावा चढ़ाने वाले लोग बहुत हैं, सो दुकान इनकी चलती रहती है। 21वीं सदी में बात इस पर होनी चाहिए कि आखिर क्यों सब कुछ के बाद भी सड़क पर भीख मांगता बूढ़ा दिख जाता है, कूड़ा उठाता बच्चा दिख जाता है, तन बेचती लड़की दिख जाती है, भूख से मरते मनुष्य दिख जाते है। सैकड़ों आयोग बने हैं, चूतियापे के लेकिन क्यों नहीं भूख आयोग बनाया जाता है ताकि कोई भूखा भूख के मारे जान देने से पहले भूख आयोग से भोजन के लिए गुहार कर सके। क्यो नहीं रोजगार आयोग बनता है ताकि कोई बेरोजगार हथियार उठाने से पहले अपने हाथ में दो जून की रोटी के लिए काम मांगने के लिए अपील कर सके। ये सब नहीं बनेगा क्योंकि इसके लिए आवाज उठाने का हमारे पास वक्त नहीं। इनके पास सोचने और लिखने के लिए हमारे पास दिमाग नहीं। हम तो फंस हैं वहीं पे जहां से चले थे। वही भगवान श्री राम, अल्ला हो अकबर, गुरु नानक, ईसा मसीह.....। अमां यार, जाने भी दो इनको। अपना देखो। अपने समय को देखो। अपने समाज को देखो और कुछ करो। या फिर चुप रहो। भाषण न पेलो। बहुत सुने हैं नेताओं के भाषण। हिंदुत्व पे सुने हैं। धर्मनिरपेक्षता पे सुने हैं। मुस्लिमों के पक्ष में सुने हैं। मुस्लिमों के विरोध में सुने हैं। जाति के हिसाब से सुने हैं। क्षेत्र के लिए सुने हैं। पर इनके कोई मायने नहीं भाई। ये सब हरामजादे लोग हैं जो हमको आपको इनमें फंसाकर अपनी गोटी सेट करना चाहते हैं। पूरी दुनिया में महामंदी छाई है। आई है। गहराई है। भाजपा हो या कांग्रेस या कम्युनिस्ट, सब साले चुप हैं। कोई बोलता भी है तो इसलिए बोलता है ताकि जो सत्ता में है उसकी कुर्सी जाए और वो कुर्सी पर आ जाए। वो आ जाएगा तो वो भी यही सब आर्थिक नीतियां चलाएगा क्योंकि ये नीतियां राजनेताओं से नहीं बनती, ये बनाते हैं दुनिया के चलाने वाले चंद अमीर लोग जिनके हाथों में दुनिया की असली सत्ता है। नेता और सत्ताधारी इनके नुमाइंदे भर होते हैं जो धर्म और जाति जैसी बातें करके हम लोगों को बांट करके पारी पारा सत्ता में आते रहते हैं।

समझे। नहीं समझे तो न समझें लेकिन शांत रहें और हमें भी शांत रहने दें।

जो गए, उनका शुक्रिया, जो हैं उनका तहेदिल से शुक्रिया, जो जाएंगे उनका और ज्यादा शुक्रिया, जो न जाएंगे उनका बहुत बहुत शुक्रिया.....। हल हाल में हर मनुष्य का शुक्रिया।


ये मान कर चलिए कि ये भड़ास भी बस कुछ दिनों का ही मेहमान है क्योंकि अगर लोग इसी तरह इस पर आकर चूतियापों का स्यापा करते रहेंगे तो एक दिन ये भी अन्य चूतियापे के ब्लागों जैसा हो जाएगा तब इसे चलाने के बजाय इसे बंद करने में मेरी रुचि ज्यादा होगी क्योंकि करना वही चाहिए जो मन को भाए, जो न भाए उसे ढोते रहने से अच्छा है उसे नमस्कार कर दिया जाए।

फिलहाल तो आप सभी से नमस्कार
जय भड़ास
यशवंत

7 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

shri yashwant ji aap se to kam se kam aisa likhane ki ummid nahi thi.aap mukhiya hai. "ch...." hamare yahan to gali hain aapke yahan pata nahin kya hai.words me shalinata,garima to honi hee chahiye. aapne kaha kee rajnish jee achchhe insan hain to baki kya bekar hain.aapko ek paksh nahi judge kee bhumika me hote to best hota.

RAJNISH PARIHAR said...

भाई यशवंत जी,नमस्कार आज पहली बार आपके विचार पढने को मिले लेकिन ये क्या?मुझे आपसे व्यवहार की टी उम्मीद नही थी..मैं तो सोच भी नहीं सकता की आप इस तरह की भाषा का प्रयोग करतें है......मैं आपको एक बात बता दूँ...आप बार बार अपने को गाँव का बताते है....लेकिन गाँव में ऐसी भाषा नहीं बोली जाती है.....इसी प्रकार सारे शहरी लोग भी च...................नही होते है...अगर आप सनसनी ही फैलाना चाहते है तो फ़िर..ठीक है बाकी आपको बड़े भाई की तरह मामले को सल्ताना चाहिए था...धन्यवाद....रजनीश परिहार.....

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

भी रजनीश जी,
आपको एक बार फिरसे आना पडा सफाई करने (क्षमा करें, सफाई करने नहीं सफाई देने)
हो सकता है कि आपकी नजर में भडासी वही हो जो ............................................... ये सब हो. हरामजादा का तात्पर्य समझते हैं...................जिसे अपने बाप का पता न हो यानि कि जिसकी माँ के कई पुरुषों से शारीरिक सम्बन्ध हों. (आप संचालकों की नजरों में जैसे राम.............क्योंकि दशरथ तो नपुंसक थे) अब कितने भडासी ये हैं पता नहीं.
दूसरी बात हिन्दुओं के राम के बाप का तो फ़िर भी पता था पर किसी दूसरे धर्म में जाकर देखा है जहाँ बिन ब्याही माँ भी है. यदि माँ के कारण कोई एतिहासिक, पौराणिक पात्र (चाहे वो किसी भी धर्म का हो पूज्य है तो आज समाज में बिन-ब्याही माँओं को अपमान क्यों सहना पड़ता है?) क्या आप लोग इस गैर हिन्दू धर्म की इस माता पर कुछ प्रकाश (चूतिया, कुतिया, हरामखोर टाईप टिप्पणी) डालेंगे?
महान चित्रकार हुसैन देवी दुर्गा की नग्न तस्वीर बना देते हैं वो भी अनजाने में....(पता नहीं देश में कभी नहीं रहे या हिन्दू धर्म से परिचित नहीं हैं? पता नहीं कितने अनजान रहते हैं?) पर अपनी अम्मा की या अपने मजहब में इबादत के योग्य मानी गई किसी महिला (नाम बताएं फातिमा) की नग्न तस्वीर नही बना देते. यहाँ अनजान या जान कर कुछ नहीं होता. सलमान रश्दी और तसलीमा नसरीन से पूछिए मुस्लिमों के विरुद्ध कुछ भी कहने का दर्द. ये हिन्दू है जो सहिष्णु है वरना अभी तक तो तमाम चूतियों की, तमाम कुत्तों की, तमाम हरामजादों की (ये सब आपकी भाषा में) ............................................. क्या हो जाती क्या लिखें.............आप तो बिना लिखे ही समझ जाते हैं.

यशवंत सिंह yashwant singh said...

जी, भाई जी लोग। मैं ऐसा ही हूं। आप लोगों ने शायद पुरानी पोस्टें पढ़ी नहीं हैं। बहुत लतखोर और गालीबाज टाइप लोग हैं हम लोग। चमार को जानते हैं न, वहीं हैं हम भड़ासी। सबसे दलित। सबसे सूअर। बाकी सब तो लिख ही रखा है। आप लोग शिष्ट, सभ्य और सज्जन लोग हैं। जरूरी नहीं कि आपकी तरह का मैं भी हूं। फिर मैंने कब कहा कि आप मेरे बारे में कोई अच्छी धारणा बना कर रखें। यही तो दिक्कत है कि लोग तुरंत धारणा बना लेते हैं कि फलां बड़ा महान है, फलां बहुत बड़ा है। सच कहूं, सब चिरकुट और चूतिया होते हैं। हरामजादा को मतलब चाहे जो होता हो, लेकिन हम लोग अपने को हरामजादे ही मानते हैं। इन गालियों से मुक्त होने के लिए खुद को गलियाना ही भड़ासीपना है। ये न समझ पाएंगे आप लोग क्योंकि आप लोगों की दिमागदानी बंद है उन शब्दों में जिनके मतलब आपने समझे ही नहीं। शब्दों से, गालियों से, महानताओं से मुक्त होइए। फिर देखिए, क्यो कुछ फूटता है अंतस में। सबने अपना अपना एक वेश बना रखा है, और हर वेश वाला चाहता है कि उसे अच्छा माना जाए। पर मैं नहीं मानता कि मुझे अच्छा माना जाए। हम लोग परम गधे, हरामखोर, गलीज प्राणी हैं। दुनिया के सबसे कमीने लोग हैं। दरअसल बहुत दिनों से भड़ास पर बहुत अच्छा अच्छा चल रहा है, यह अच्छा अच्छा हम लोगों को उबकाई देता है, इन्हें पढ़कर मन करता है उल्टी करने का। जो मंच उल्टी करने का था वहां पर लोग ठाकुर जी की मूर्ति लगाकर आरती गाने लगे हैं। भाई, अपने अपने ब्लागों पर ठाकुर जी की मूर्ति लगाइए। यहां के दर्शन को अगर नहीं समझ सकते हैं तो खामखा गाल बजाने से क्या फायदा। मैं थोड़ा तीखा लिख रहा हूं क्योंकि मैं ऐसा ही मुंहफट और लंठ हूं। जो चीज आप लोग डैश डैश ...... लगाकर कहते हैं हम लोग उसे खुलकर कहने की ताकत रखते हैं क्योंकि डैश डैश वहां किया जाता है जहां दिल दिमाग में विभेद हो हम भड़ासी दिल दिमाग को एक सा रखते हैं, इसलिए हमें दिक्कत नहीं होती कुछ भी छिपाने और कुछ भी फर्जी बताने की। वही पुरानी बहसें शुरू हो जाती हैं कि गाली नहीं देनी चाहिए या देनी चाहिए। इन बहसों पर बहुत बार बहस हो चुकी है।
दिल से सोचिए, अगर आपको लगता है कि ये मंच आपको सूट नहीं कर रहा तो आप निर्णय लीजिए। पर हां, हिप्पोक्रेसी नहीं चलेगी। मोटे मोटे फर्जी सिद्धांत और फर्जी बातें नहीं चलेंगी।

हम लोगों ने इस मंच पर ऐसे ऐसे लोगों को आते और फिर भागते देखा है कि बाद में लोगों के बारे में धारणा बदलनी पड़ी। आखिर तक वही चलेगा जो सच्चा हीरा होगा। सफर में दम तोड़ने वाले साथियों के लिए मन में एक अच्छा भाव ही हो सकता है, दुख के मारे सफर खत्म कर उनके शव पर स्यापा करना अपन लोगों की फितरत नहीं।

जय भड़ास
यशवंत

rajendra said...

dada, jin logon ka dimag dharm ke nashe me bhanna raha ho, unko manavta ki bat samjh me nahin aati. lekin in logon ki baton se ham nirash nahin hai. duniaya ka itihas dharmon ke nam par hone wale narsanharon ka itihas hai, lekin ye log itihas nahin padte. in logon ne puran-kuran toton ki tarah yaad kar liye hai. ye har mauke par wahi baten dohrate rahte hai or khud ko buddhiman or dusron ko murkh samjhte hai.

Anonymous said...

aadarneey mitra yashwant sapream namaskar.apki safai padi.apke tark bhi dekhe.prastuti acchi hai.pr aap ne apne tarko pr gambhirata se vichar kiya hai aisa mujhe nahi laga.kyoki jis apradh me aap ne hame aur hrdesh ji ko badas pariwar se bahar karne ka farmaan jari kiya us apradh me rajneesh ji bhi utne hi gunahgar the.yadi aap me vakai nyay karne ki ichhashakti hoti to aap unki bhi sadsyta khatm karte.khair apko mai is pariwar ka abhibhavak manata tha.lekin durbhagya se aap aadhunik bhism pitamah nikale aur aapke samne droupadi cheer haran se bhi badi ghatana gati aur apne uska virodh karne ki vajay uska samarthan kiya jisase hamari manytao ko chot pahaoochi.mera bhi blog hai lekin mai samay nikal kar bhadas pr likhata tha to uska ak hi karan tha ki mai apne apko pariwaar ka dulara sadsya manta tha.lekin jis tarah se bhadas sanchalak mandal ne mere sath vyohar kiya vah dukhdayee hai.khair mai apne bhadasi bhaiyo se gujaris karuga ki vo hamare blog alag vichar blogspot.com pr hamse mil sakte hai.aur jo bhai mujhe sampark karna chate hai vo hamare mobile no--9990790610 pr sampark kar sakte hai.aap logo apna hi chhota bhai dheerendra pratap singh.durgvanshi.new delhi

Anonymous said...

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