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25.2.08

खराब दिन: चोखेरबालियों ने धक्के देकर भगा दिया, पिल्ले के कारण पत्नी ने गरिया दिया

आज जब आनलाइन हुआ और ब्लाग ओपेन किया तो देखा कि डैशबोर्ड में मेरे दो ब्लागों में से सिर्फ एक ही बचा है, और वो है भड़ास। अभी हाल में ही जिस चोखेरबाली ब्लाग का हिस्सा बना था, वो डैशबोर्ड पर गायब था। माने, चोखेरबाली की चीफ माडरेटर ने मुझे बिना बताये, सूचित किये, बिना सो काज जारी किए, मुझ गरीब को धक्के (इसी को तो धक्के देकर निकालना कहा जाता है ना!!!) मारकर ब्लाग से बहरिया दिया। मजेदार तो ये देखिए कि आज मेरा दिन सुबह से खराब चल रहा है। हर जगह कुछ ऐसा हो रहा है कि मन और दिल छोटा हुआ जा रहा है। इसी सब चक्कर के कारण आज आफिस भी सेकेंड हाफ में लंच के बाद पहुंचा और ब्लाग ज्यों खोला तो देखा कि चोखेरबालियों ने मेरे साथ छल कर दिया है। मेरे जैसे सीधे साधे दिलवाले बंदे को जाने किस दुश्मन के कान भरने के कारण अपने साये से जुदा कर दिया। अब तो सिर्फ वियोग, जुदाई और आह है जुबां पर। इसी वक्त में गीता का वो वचन याद आता है....वत्स, जो हुआ, वो अच्छे के लिए हुआ, जो हो रहा है, अच्छे के लिए हो रहा है, जो होगा, अच्छे के लिए होगा। धन्य हो अपना हिंदू धर्म जो हर हाल में जीने के लिए तर्क मुहैया करा देता है वरना लाखों करोड़ों भारतवासी मारे डिप्रेशन के रोज रोज आत्महत्या कर रहे होते।

आज जो दिन खराब चल रहा है उसके पीछे वजह सिर्फ और सिर्फ स्त्रियां हैं।

सुबह से मेरी पत्नी मेरा भेजा खा रही हैं, पानी पी पी कर गरियाते हुए। हुआ यूं कि कल आधी रात को जब पान खाने चौराहे पर निकला तो एक मरिया सा बच्चा सा देसी पिल्ली कुनकुनाता हुआ मेरे पैरों के पास आ पहुंचा और लगा मेरा पैंट फाड़ने, अपने प्यारे से छोटे से नुकीले दांतों से। फिर लगा पैर की अंगुलियां सूंघने, चूमने। उसके बदन की हड्डियां दिख रही थीं। मैंने उसे गौर से देखा और उसकी हरकत पर मुझे प्यार आ गया। मैंने उसे गोद में उठा लिया और मुंह में पान दबाने के बाद अपने घर पहुंचा। सकल परिवार निद्रा में था, सो उसे एक खाली कमरे में, जहां अतिथि लोगों के रुकने की व्यवस्था है, एक जगह प्यार से बिठा दिया। उसे मुर्गे की टंगड़ी दी जिसे एक बार मैं खुद साफ करके डस्टबीन में रखे हुए था। वो प्यारा पिल्ला यूं पूंछ हिलाते हुए कूं कूं करके खा रहा था कि मेरा रोम रोम पुलकित हो गया। मैंने मन ही मन तय कर लिया कि मुझे अब इस पिल्ले को एक अच्छी जिंदगी प्रदान करनी है।

मैंने अपने एक सीनियर मित्र को फोन किया चंडीगढ़, जिनके छोटे भाई पशुओं के डाक्टर हैं, डाक्टर साहब का नंबर लेने के लिए कि अगर सड़क पर खेला खाया देसी पिल्ला घर ले आया हूं तो उसे कौन कौन सी सुई लगवा दूं ताकि मेरे जैसे शहरी को कोई रोग न हो सके। असल में मेरे अंदर का हेल्थ वाला जिन्न जाग गया था कि कहीं ऐसा न हो जाए, साला जिसे मैं प्यार कर रहा हूं वो पिल्ली मुझे कोई गंभीर रोग दे जाये, दिमागी बुखार, मियादी बुखार, प्लेग टाइप का। सो, मैंने उनसे नंबर लिया पर डाक्टर साहब का फोन लगातार बिजी जा रहा था। खैर, पिल्ले को खिला पिलाकर बढ़िया से एक स्टूल के नीचे बिछौन बिछाकर सुला दिया और मैं भी खुशी खुशी दूसरे कमरे में सो गया। सुबह मेरी नींद तब खुली जब श्रीमती जी चिल्ला रहीं थीं, कि ये आदमी तो सुधरेगा नहीं। रोज कोई न कोई बवाल। पता नहीं कहां से यह सड़ा पिल्ला लाकर रख दिया घर में, पूरा हग मूत के गंदा कर दिया। बाप रे....रात का नशा वैसे ही सुबह होने के कारण हिरन हो चुका था, रही सही ऊर्जा श्रीमती जी की चिल्लाहट के चलते खत्म हो गई। सो, सुबह के वक्त इतनी बुरी बुरी बातें कान तक न पहुंचने देने के लिए मैंने रजाई को चारों तरफ से खींचकर भींचकर उसके भीतर मुंह छिपा लिया। और गंभीर नींद में होने, सोने का नाटक करने लगा।

पर....बच न पया।

खुद मुझे उस कमरे की सफाई करनी पड़ी ताकि मणिमाला दीदी (श्रीमती जी का नाम है भइया) का गुस्सा कम हो सके। सच्ची बताऊं, जब मैं पिल्ले का गुह साफ कर रहा था तो उसकी बदबू से मुझे उबकाई आते आते रह गई, लगा आज असली में उलटी कर दूंगा (भड़ास पर तो शाब्दिक उलटी करते हैं)। पर जय भगवान जी, सांस रोकककर, करेजा मजबूत कर साफ सूफ किया। इस दरम्यान मैं यह तक पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया कि मेरा प्यारा पिल्ला है कहां। मुझे खुद समय़ में आ चुका था कि प्यारे पिल्ले के मुझ जैसे मालिक की इस कदर घिग्घी बंधी हुई है तो पिल्ला महोदय को जाने कब गांड़ पर दो लात मारकर सड़क का रास्ता दिखा दिया गया होगा।

सबसे दुखद यह रहा कि सोचकर पिल्ला यह लाया था कि बच्चे खुश होंगे। पर बच्चे सुबह से ही मेरे खिलाफ हो चुके थे और माला दीदी के सुर में सुर मिला रहे थे। उस साले पिल्ले ने बच्चों की किताबों पर सू सू कर दी थी सो बच्चों का नाराज होना लाजिमी था।

भइया....किसी तरह जान छुड़ाकर आफिस पहुंचा तो यहां चोखेरबाली को अपने से गायब पाया। हे भगवान, कहीं किसी ने तंत्र मंत्र तो नहीं कर दिया कि इस फागुन में तुझे स्त्रियों का बैर झेलना होगा। अगर कोई भड़ासी ज्योतिषी या तांत्रिक हो तो कृपया मेरी कुंडली वुंडली देखकर बताये कि कौन सा ग्रह किस ग्रह की गांड़ में घुसा है जिससे ये सारी दिक्कतें आ रही हैं।

जय भड़ास
यशवंत

8 comments:

PD said...

ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे.. बस.. :)

बालकिशन said...

यशवंत जी
आपके ब्लॉग की टैग लाइन " अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा..." देखकर ही ये लिखने की हिम्मत कर पाया हूँ.
आपके साथ जो हुआ उसके जिम्मेदार आप स्वयं है. वो कहावत सुनी है की नही " बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय"
दोनों के दोनों काम आपने बगैर सोच-विचार के किए उसकी परिणिति यही होनी थी इसलिए खामखा किसी पर दोषारोपण मत कीजिये.
जो हुआ उससे कुछ ग्रहण करे और भगवान् का धन्यवाद करे की सस्ते मे छुट गए.

बालकिशन said...

यशवंत जी
आपके ब्लॉग की टैग लाइन " अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा..." देखकर ही ये लिखने की हिम्मत कर पाया हूँ.
आपके साथ जो हुआ उसके जिम्मेदार आप स्वयं है. वो कहावत सुनी है की नही " बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय"
दोनों के दोनों काम आपने बगैर सोच-विचार के किए उसकी परिणिति यही होनी थी इसलिए खामखा किसी पर दोषारोपण मत कीजिये.
जो हुआ उससे कुछ ग्रहण करे और भगवान् का धन्यवाद करे की सस्ते मे छुट गए.

चंद्रभूषण said...

एवरी डॉग हैज हिज डे
मन रे
तू काहे ना धीर धरे!

चंद्रभूषण said...

एवरी डॉग हैज हिज डे
मन रे
तू काहे ना धीर धरे!

Unknown said...

कुछ दिनों बाद न घर के रहेंगे न घाट के...

Anonymous said...

आप अगर ओशो बना चाहते है तो आश्रम खोल कर रहे । पर ओशो बनने से पहले ओशो का साहित्य बार फिर पढ़ ले ।

Unknown said...

are yshvan bhai aapke post pr aapko itne updeshk mile bhadhai...ye sadhvi hain ya sant...?