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22.2.08

इस पतित औरत को सलाम....पार्ट वन

आगरा में बस से ज्यों उतरा, आटो पकड़ने कि लए आगे बढ़ा। चौराहे पर आटो स्टैंड। दूसरी ओर पुलिस चौकी। आटो में बैठा ही था कि एकदम से शोर मचा। पीछे मुड़ा तो एक 35-40 की उम्र की गरीब सी, साड़ी पहने महिला अपने चप्पलों से एक 30 वर्ष के युवक की पिटाई कर रही थी। एकदम से हल्ला हुआ कि फलाना पिट रहा है। सभी आटो ड्राइवर दौड़े, उसे बचाने को। उधर से पुलिस वाले भी चल पड़े। देखते ही मजमा इकट्ठा हो गया। मालूम हुआ मामला छेड़खानी का है। महिला गरियाये जा रही थी। वो युवक बचाव में पीछे खिसक रहा था। उसके मुंह पर चप्पलें गिरती जा रहीं थीं। आटो वाले महिला को मिलकर गरियाने लगे और उसके चप्पलों की चंगुल से अपने साथी को बचाने लगे। पुलिस वाले खरामा खरामा आ रहे थो सो तब तक ढेर सारी चप्पलें उस युवक रूपी आटो ड्राइवर पर गिर चुकी थीं। पुलिस ने उसे पकड़ कर अपने कब्जे में लिया। महिला बोले जा रही थी। छेड़ रहा था। पीछे से उंगली की। एक बार तो चुप रही। फिर ये दूसरी बार आकर उंगली कर रहा था। समझता है कि वेश्या हूं। अकेले हूं तो इसका मतलब हुआ वेश्या हूं। अपने मां को जाकर उंगली कर। हरामजाते, कुत्ते, कमीने, सुअर की औलाद....।

आटो वालों में रोष व्याप्त था। मैंने अपने ड्राइवर को घुड़की लगाई....अबे चल, यहीं झगड़ा सुलझाता रहेगा। अपना ड्राइवर आया और गाड़ी स्टार्ट कर दी। गाड़ी के साथ आटो वाले का भी मुंह चल रहा था.....साली, धंधा करती है। कई दिनों से इसी चौराहे पे दिखती है। देखने पे मुस्करा भी देती है। इसने आज भाई को फंसा दिया।

मैं चुपचाप उसकी बात सुनता रहा। वह आगे बोला, एक झटके में मेरी शक्ल देखने के बाद सामने सड़क पर निगाह केंद्रित करते हुए....बताओ भाई साहब आप, शरीफ घर की औरत किसी को मारने की हिम्मत कर सकती है। ये साली खुद ही बेइज्जत औरत है। शरीफ महिला तो यह कहने में संकोच करेगी कि उसके साथ क्या हुआ। वह तो चुपचाप चली जायेगी। लेकिन ये जो धंधे वाली होती हैं ना, ये किसी को भी फंसा देती हैं।

बिना चेहरे पर कोई भाव लाये उसकी बात सुनता रहा, सोचता रहा। मेरे बगल में बैठे पुरुष सहयात्री आटो चालक की हां में हां मिलाते हुए बोले...बेचारा अच्छा खासा पिट गया। देखो, वो पीट रही थी तो वो चुपचाप पिट रहा था, कुछ नहीं बोला।

मैंने भी वाणी को शब्द दिया....असल में उस साले को यह अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि छेड़ने के बाद इस तरह उसे चप्पल खाने पड़ेंगे। और जब चप्पल गिरने लगे तो एकदम से उसे अवाक होना पड़ा, अपनी इज्जत जाती दिखी तो उसे चुपचाप रहने में ही भलाई समझ में आई होगी।

आटो ड्राइवर फिर बोल उठा....भाई साहब, आप जानते नहीं हैं। यहां धंधेवालियों की पूरी बस्ती है। वे सब ऐसे ही घूमती रहती हैं। आप बताओ, उसकी शक्ल और उसकी आवाज से आप उसे शरीफ घर की मान रहे थे।

मैंने जवाब दिया...भाई, वो जो तुम्हारा दोस्त था, वो भी शरीफ नहीं दिख रहा था। क्या तुम लोगों की यूनियन का अध्यक्ष था क्या?

उसने कहा...नहीं अध्यक्ष तो नहीं, लेकिन दबंग लड़का है। ड्राइवरों की हर दिक्कत में साथ रहता है।

आटो ड्राइवर की बात से समझ में आ गया कि वो आटो ड्राइवर जो पिट रहा था, चौराहे के आटो ड्राइवरों का रहनुमा टाइप का था, इसलिए वो बिना आटो चलाए, सिर्फ आटो स्टैंड की उगाही से अच्छा खासा पैसा बना लेता था और जिस फिल्मी स्टाइल में गोविंदा मार्का कपड़े व चेहरे की स्टाइल बना रखी थी, उसमें उसके अंदर एक ठीकठाक डान दिख रहा था। पुलिस वाले भी उसे जिस कूल तरीके से ले गये, उससे लगा कि उनका भी चहेता होगा क्योंकि चौराहे कि पुलिस चौकी है, सो ट्रकों से वसूली में और दारू मुर्गा की व्यवस्था में ये साथ देता होगा।

मैंने ये सच्ची घटना आगरा के कई पत्रकार मित्रों के साथ शेयर की और उस औरत के हिम्मत की दाद दी, जिस वहां चौराहे पर खड़े बहुतायत ड्राइवरों व यात्रियों ने बुरी औरत, पतित औरत घोषित कर दिया था। मैं और मेरी सोच अल्पमत में लेकिन इस पतित औरत ने जो साहस का काम किया, उससे ढेर सारी शरीफ औरतों को सबक मिलेगा। जैसा कि मेरे आटो का ड्राइवर कह रहा था, शरीफ औरतें छेड़खानी होने के बाद भी नहीं बोलतीं, ये साली तो बिना कुछ हुए चिल्ला रही थी।

मायने ये है...पहली बात तो वो औरत धंधेवाली होगी, ये मैं नहीं मानता क्योंकि हर सक्रिय लड़की के साथ मर्द कई आरोप व रहस्य मढ़ देते हैं, दूसरी बात अगर वो धंधे वाली होगी भी तो उसने जो साहस किया, सिर्फ यही साहस उन तमाम शरीफजादियों के चेहरे पर तमाचा हैं जो सिर्फ कला कला के लिए में विश्वास करती हैं और बातें बघारती हैं। मैं इस पतित औरत को इन शरीफ औरतों से महान का दर्जा देता हूं जो छिड़ने के बाद भी चुपचाप शर्म से गाल लाल किये चली जाती हैं। तीसरी बात अगर ये औरतें, जो धंधा करती हैं या नहीं करती हैं, खुलकर अपने साहस के साथ आगे आती हैं और मर्दों से भरे चौराहे पर खड़े एक लफंगे को जूतियाती है तो उसने संदेश दे दिया है, हे प्रगतिशीलों, हे वाचालों, हे गाल बजाने वालों, देखो....हम जो करते हैं ना, अपनी मर्जी से करते हैं। धंधा करते भी हैं तो अपनी मर्जी से, चप्पल मारते भी हैं तो अपनी मर्जी से.....। तुम साले, अपनी दुनिया में नियम कानून व मुक्ति के मैराथन की दौड़ की तैयारियों में लगे रहो.....।

इस महिला को मैंने उस समय भी मन ही मन सलाम किया था। सोचा था, लिखूंगा पर लिख नहीं पाया। लेकिन अब जब कुछ लोग झंडाबरदार होकर महिलाओं को कथित मसीहा बनकर उभरी हैं और बहस को अपने हिसाब से चलाने पर आमादा हैं, उन्हें मैं उदाहरणों के जरिए समझाने की कोशिश करूंगा कि जिस पतनशीलता की बात कर रहा हूं वो क्या है भड़ासी भोंपू का राग क्या है।

जय चोखेरबालियां, जय भड़ास
यशवंत सिंह

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,आप तो चोखेरबालियों के पीछे ही पड़ गये क्या इरादा है । आप उनसे पतन के पत्तन पर लंगर डलवा कर ही मानेंगे । मैं कहता हूं कि ये लोग तो प्रगतिशीलता को ही जहाज का चलना मानते हैं तो लेकिन ये पतवार अपने पूर्वाग्रहों के हाथ में ही रखना चाहती हैं अगर लहरों के हवाले कर पाएंगी तब भड़ास की सरलता समझ पाएंगी । एक बात कान में चुप्पे से कि क्या बात है कहीं कोई किरकिरी आंखों को भा तो नहीं गई है ?
लग रहा है कि आप भड़ास धर्म के प्रचार के ऐसे प्रयत्न करेंगे तो भी लोग आप पर धर्मान्तरण का आरोपी बना देंगे ...
जय जय भड़ास

राज भाटिय़ा said...

यसबंत जी, आप ने जो लिखा हे ,वो शयाद सब के दिलो की आवाज हे, एक दम सच,ओर यह लाईन तो *सिर्फ यही साहस उन तमाम शरीफजादियों के चेहरे पर तमाचा हैं जो सिर्फ कला कला के लिए में विश्वास करती हैं और बातें बघारती हैं। मैं इस पतित औरत को इन शरीफ औरतों से महान का दर्जा देता हूं जो छिड़ने के बाद भी चुपचाप शर्म से गाल लाल किये चली जाती हैं।**
धन्य्वाद

Unknown said...

yshvnt bhaiya lge rho...ek din sb aurton ko hi bhadasi bhpu bajana hi hoga... kyonki unki chaht ka rasta idhar se hi jata hai aakhirkar..

दिनेशराय द्विवेदी said...

पुरुषों की यह मान्यता कि "शरीफ औरतें छेड़खानी होने के बाद भी नहीं बोलतीं" औरतों को ही बदलनी होगी।