Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

23.2.08

वो पतिता फिर भाग गई.....!!! पार्ट-2

मेरठ की वो लड़की। बेहद सुंदर। जीभर के जिसे देख ले, उसे प्यार हो जाये। परिवार की सबसे बड़ी लड़की। हायर मिडिल क्लास की लड़की। शहरी परिवेश के परिवार की लड़की। स्मार्ट और अक्लमंद लड़की।

स्कूल आते जाते एक नौजवान से उसे प्यार हो गया। नौजवान भी कोई खास नहीं। टपोरी टाइप। वो भी यंग स्मार्ट और फौलादी बदन वाला। दिन के वक्त का ज्यादातर हिस्सा सड़क पर बाल संवारते, बाइक भगाते बिताता था। वह अपने कौशल और स्किल से उस लड़की पर डोले डालने लगा। लड़की को अच्छा लगता था। कभी गुस्साने का दिखावा करती तो कभी मुस्करा कर आगे बढ़ जाती। बकौल कवि हरिप्रकाश उपाध्याय की कविता के शब्दों में कहें तो सबसे सतही मुंबइया फिल्मों ने प्रेम करने के जो तरीके सिखाये, इन दोनों नौजवान दिलों ने उनसे सबक लेकर प्रेम करना सीख लिया।

और एक दिन.............!!!!

लड़की उस लड़के संग भाग गई।

मचा हल्ला। कोहराम। जितने मुंह उतनी बातें। प्रेम में दुनियादारी घुस गई। पकड़ो, मारो, हिंदु, मुस्लिम, आईएसआई, धर्म परिवर्तन, शादीशुदा....। मतलब आप लोग समझ गए होंगे। लड़का मुसलमान था। शादीशुदा था। आईएसआई का एजेंट था। ये मैं नहीं कह रहा हूं, लड़की के परिजनों ने जिन हिंदुवादी नेताओं को पकड़ा उन लोगों ने सड़क पर उतरकर ये सारी बातें माइक से कहीं।

और एक दिन लड़की पकड़ ली गई।

ज्यादा दूर नहीं भागे थे वो। यहीं गाजियाबाद में एक फ्लैट लेकर रह रहे थे। लड़की को मां की याद आई, फोन किया। परिजनों ने उसे पुचकारा। सब कुछ स्वीकारने और बढ़िया से शादी करने का लालच दिया। लड़के फंस गई, उसने अपना एड्रेस बता दिया। घर वाले हिंदुवादी नेताओं और पुलिस के साथ आए और लड़की को उठा ले गए। लड़के को खूब मारा पीटा और उसे छोड़ दिया।

मेरठ में यह मुद्दा सिर्फ प्रेम विवाह और भागने के कारण नहीं बल्कि हिंदू बनाम मुस्लिम के मुद्दे के कारण खूब चर्चित हुआ। हिंदू व मुस्लिम नेताओं के मैदान में आ जाने से मामला ला एंड आर्डर तक जाता दिखा।

दैनिक जागरण के सिटी चीफ के बतौर मैंने खुद उस लड़की से बात करने की ठानी और उसके दिल की राय प्रकाशित करने का निर्णय लिया। एक संपर्क द्वारा उस लड़की के घर पहुंचे जहां वह लगभग कैद में रखी गई थी। मैंने सबसे विनती की कि मुझे अकेले में बात करने दिया जाए। और उस लड़की से बातें करने के बाद मेरा माथा भन्ना गया। सिर्फ वह बेहद खूबसूरत ही नहीं थी बल्कि बेहद बौद्धिक और समझदार भी थी। उसने जो बातें कहीं उसे मैंने एज इट इज छाप दिया।

उसके जो कहा, उसका लब्बोलुवाब ये था...

मुझे पहले से पता था कि वो शादीशुदा है लेकिन अब वो तलाक दे चुका है। जो आदमी तलाकनामा मुझे दिखा चुका है और उसे मेरे ही साथ रहना है तो फिर क्या दिक्कत है।

वो बेहद शरीफ लड़का है। उसे लोग फर्जी तौर पर आईएसआई का एजेंट बता रहे हैं। मैं उसके साथ रहना चाहती हूं क्योंकि वो मुझे अच्छा लगता है। मुझे नहीं चाहिए ये सुख। मैं उसके साथ गरीबी में जी लूंगी।

ये देखिए तस्वीरें, जो छिपाकर ले आई हूं। हम लोगों ने बाकायदा निकाह किया है और निकाह मैंने अपनी मर्जी से किया है।

ये देखिए तस्वीरें जिसमें उनके घर के सारे लोग हैं और कितने प्यार से मुझे घर में ले जाया गया। रखा गया। पार्टी हुई। वहां के जो छोटे बच्चे हैं वो मुझे इतने प्यारे लगते हैं, कि मैं उन्हें याद करके रोती हूं। हम लोगों को उनका घर छोड़कर इसलिए गाजियाबाद जाना पड़ा क्योंकि पुलिस हम लोगों को गिरफ्तार कर लेती।

मैं तो मां की ममता में पकड़ ली गई। इन्होंने (मां ने) मेरे साथ धोखा किया है। ये समझा रही हैं कि मुस्लिम से शादी करने से नाक कट गई। मैं कहती हूं कि क्या सुनील दत्त ने नरगिस से शादी करके अपने खानदान की नाक कटा ली। मुझे समझ में नहीं आता, इतने पढ़े लिखे होने के बावजूद लोग इतनी घटिया बातों को क्यों जीते रहते हैं।


-----उस कम उम्र की लड़की (मेरे खयाल से ग्रेजुएशन सेकेंड इयर में थी वो) के इतने मेच्योर व शानदार विजन को देखकर मैं दंग रह गया। उसने मेरी राय इस बारे में जानने की कोशिश की तो मैंने कहा कि तुमने सौ फीसदी ठीक किया है। अगर तुम उसके साथ खुश हो और तुम्हें उस पर भरोसा है तो बाकी किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।

मैंने उसकी कही हुई सारी बातें उसकी तीन तस्वीरों के साथ दैनिक जागरण पहले पन्ने पर बाटम में प्रकाशित किया। और मामला फिर गरम हो गया।

पूरे मेरठ में एक बात का जमकर प्रचार किया जाता है कि मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को सायास तरीके से फंसाते हैं और शादी कर लेते हैं। ऐसे वो अपने मजहब के विस्तार व हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मकसद से करते हैं। पर मैं ये बात नहीं मानता। पहली बात तो हम ये क्यों मान लेते हैं कि हिंदू लड़कियां गाय बकरी हैं जिनके पास कोई दिमाग नहीं है और वो जो फैसला ले रही हैं उसमें उनका दिमाग नहीं बल्कि मुस्लिम लड़कों का हिप्पोनेटिज्म काम आता है। अरे भाई, लड़कियां दिमाग रखती हैं। उन्हें अपने फैसले लेने दो। ये तो तुम्हारे अपने धर्म और संस्कार की दिक्कत है ना कि वो लड़कियां तुम्हारे वर्षों के रटाये जिलाये संस्कारों को प्रेम के धागे के चलते झटके में तोड़ डालती हैं। इसका मतलब तु्म्हारे संस्कारों व सिखाये विचारों में दम नहीं है, तुम्हारी ट्रेनिंग में कमजोरी है।

खैर, बहस भटक रही है। वापस लौटता हूं मुद्दे पर।

इंटरव्यू छपने के बाद उस लड़की पर पहरा और बढ़ा दिया गया और किसी भी मीडिया से मिलने पर एकदम से पाबंदी लगा दी गई क्योंकि उसके खुले विचारों को मैंने हू ब हू जागरण में प्रकाशित कर दिया था। कहां उसकी मां ये मानकर चल रही थीं कि उनके पक्ष में सब छपेगा, और कहां इंटरव्यू ने लड़की के पक्ष को मजबूत कर दिया।

वो लड़की हिंदूवादियो और परिजनों के लिए विलेन बन चुकी थी। उधर लड़के ने कोर्ट में याचिका दायर कर दी कि मेरी पत्नी को जबरन ले गये हैं वो लोग। खैर, लड़की को रोज दर्जन भर लोग समझाने पहुंचने लगे उसके घर। शुरू में तो वो चीखती चिल्लाती उनसे बहस करती रही, जबान लड़ाती रही। लेकिन समझानों वालों की बेहिसाब संख्या देखकर वो मौन हो गई। वो केवल सामने बोलते लोगों को निहारती और शांत रहती।

धीरे धीरे ये मामला शांत हो रहा था। लोग लगभग इस प्रकरण को भूलने लगे थे। वो लड़की गंदी लड़की, खराब लड़की, पतित लड़की घोषित की जा चुकी थी। न सिर्फ परिवार द्वारा समाज द्वारा बल्कि पूरे शहर के हिंदुओं द्वारा।

उस लड़की के चेहरे की रौनक गायब हो चुकी थी। हां, मुझे याद आया। उसकी मां अध्यापिका थीं। उन्होंने बेटी को खुले माहौल में पाला था और कभी किसी चीज के लिए बंदिश नहीं लगाई। अब उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था। वो ये नहीं सोच पा रही थी कि चलो बेटी ने गलत ही सही, फैसला ले लिया है तो उसका साथ दें। समझाया बुझाया फिर भी नहीं मान रही है तो उसे उसकी मन की करने दो। बहुत बिगड़ेगा तो क्या बिगड़ेगा। वो मुस्लिम युवक उसे छोड़ देगा, जैसी की आशंका परिजनों द्वारा जताई जा रही थी। तो इससे क्या होगा? क्या किसी के छोड़ने से किसी की ज़िंदगी खत्म हो जाती है। मैं तो मानता हूं कि मुश्किलें और चुनौतियां हमेशा आदमी की भलाई के लिए ही आती हैं। ज्यादातर महान लोगों ने जीवन के हर मोड़ पर मुश्किलों का सामना किया और उससे जीतकर या हारकर, उससे सबक लेकर और आगे बढ़ गए। हो सकता है, वो लड़की खुद अपने जीवन के अऩुभवों से जो सबक लेती उससे वो समझ पाती कि उसने जो निर्णय लिया है वो सही या गलत है।

बात फिर भटक रही है। मैं कह रहा था कि समय बीतने के साथ माहौल लगभग शांत हो चुका था।

और एक दिन फिर खबर आई। वो लड़की उस लड़के के साथ फिर भाग गई।

हुआ यूं कि समय बीतने के साथ लड़की ने थोड़ा नाटक किया। उसने मां के सामने झुकने का नाटक किया। बाहर निकलने की थोड़ी थोड़ी आजादी उसे मिलने लगी। उसे भागते न देखकर उसे थोड़ी और आजादी दे दी गई। नौंचदी मेले में घूमने के लिए भी कह दिया गया। उसके साथ कोई घर का हमेशा होता था। मेले में वो भाई के साथ गई और जाने कब भाई को महसूस हुआ कि उसकी बहन उसके साथ नहीं है। खूब ढूंढा तलाशा गया पर वो नहीं मिली। बाद में मालूम चला, दोनों फिर भाग गये। इस बार बेहद दूर चले गए।

उसके बाद क्या हुआ, मुझे कोई खबर नहीं मिली। पर मैं उस लड़की के चेहरे को आज भी नहीं भूल पाता हूं।

सच्ची कहूं तो मैं उसे अंदर ही अंदर प्यार करने लगा था। वो लड़की पतित घोषित कर दी गई थी, समाज के द्वारा, शहर के द्वारा, परिवार के द्वारा। उस लड़की का नाम दूसरे घरों की लड़कियों के सामने इसलिए लिया जाता था ताकि बताया जा सके कि पतित, गंदी, बुरी लड़कियां होती कैसी हैं और वो कितना नुकसान कर देती हैं, अपना, खानदान का और समाज का। उन दिनों मेरठ के बाकी घरों की लड़कियों को उनकी माएं उस जैसी कभी न बनने की नसीहत देती थीं। मुझे खुद याद है कि मेरे मोहल्ले पांडवनगर में कई घरों की माएं अपनी बच्चियों से हंसते हुए बतियाती थीं और उस बेशरम लड़की के किस्से पढ़कर, सुनाकर ईश्वर से अनुरोध करती थीं कि हे ईश्वर ऐसी पतित लड़कियां किसी मां-पिता को न देना।

मैं उस लड़की का नाम भूल चुका हूं। मेरे मेरठ के साथी अगर इसे पढ़ रहे हों तो जरूर बतायें उसका नाम, कमेंट के रूप में लिखकर। पर उस पतिता प्यारी गुड़िया को मैं आज भी दिल से प्यार करता हूं। उसके लिए दुवा करता हूं कि वो जहां रहे, सुखी रहे।

जय भड़ास
यशवंत

5 comments:

Ashish Maharishi said...

यशवंत भईया आप तो पीछे पड़ गए

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,हो सकता है कि आपको मेरी ये टिप्प्णी हटानी पड़ जाए क्योंकि जो लिख रहा हूं वो मेरा देखा सच है,आपने लिखा मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को सायास तरीके से फंसाते हैं और शादी कर लेते हैं। ऐसे वो अपने मजहब के विस्तार व हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मकसद से करते हैं ;मैं दीन ए इस्लाम का दिल से सम्मान करता हूं लेकिन जो लोग इस्लाम की समझ नहीं रखते और उन्हें लगता है कि बस नाम सलीम या सुलेमान होने से वो मुसलमान हैं तो ये सर्वथा गलत है ऐसे ही कुछ बेवकूफ़ों को धर्मांधता के जाल में फंसा कर मुसलिमों के बहत्तर फ़िरकों में से एक फिरका जिन्हें खुद अधिकांश मुसलमान ही मुस्लिम नहीं मानते हैं । यह तबका खुद को अत्यंत प्रगतिवादी मानता है ,ये लोग इस्लामिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते पूरे देश में घूमते हैं शायद हममें से हर पत्रकार का इस जमात से कभी न कभी सामना हुआ होगा । ये लोग कु़रान शरीफ़ को अपने तरीके से व्याख्यायित करते हैं और नबीसल्लेसल्लाम की बातों को सिरे से खारिज करते हैं । ऊपर कहे उद्देश्य के लिये सचमुच इन लोगों ने इस्लाम को बिना किसी झंझट के फैलाने का एक ये भी तरीका माना है और बाकायदा संगठन है जिसका नाम है "तंज़ीमे अल्लाहोअकबर" । दरअसल मेरी नजरों में ये बातें मूर्खतापूर्ण हैं क्योंकि ऐसा तो नहीं कि किसी खास मजहब या धर्म से संबंधित स्त्री की कमर के नीचे कुछ खास होगा ,वही होगा जहां से हम सब बाहर आए हैं यानि "गेट वे ओफ़ वर्ल्ड" । इन बातों से सिवाय मन में क्लेष के और कुछ नहीं होता इसलिये इन्हें भड़ास में जगह न दें । प्यार इन छोटी और ओछी बातों से कहीं ज्यादा ऊंचा हैं जीवनमूल्यों में...
मनीषा की ओर आपने ध्यान नहीं दिया......
जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आशीष भाई,छिः छिः गन्दी बात मत करिए यशवंत दादा कैसे भी हों लेकिन हमेशा आगे की सोचते हैं और आप बोलते हैं कि वो पीछे पड़े हैं ,भड़ासियों को तो ’आगे’की सोचना होता है....
अगर आपको लगता है कि पीछे भी सिंहावलोकन करते रहना चाहिए तो ठीक है पीछे भी देख लेंगे....
ही ही ही ही.......):
जय जय भड़ास

Ashish Maharishi said...

डॉक्‍टर साहब हम भड़ा‍सियों की एक सबसे बडी खासियत यही है कि जब किसी के पीछे पड़ते हैं तो बुरी तरह पड़ जाते हैं,

जय भड़ास

Unknown said...

उस प्रेमी जोड़े को हमारी शुभकामनायें।